Atmadharma magazine - Ank 084
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: २५८ : : आत्मधर्म : ८४
नं. विषय अंक–पृष्ठ नं. विषय अंक–पृष्ठ
(६) उपाध्याय भगवान ७३–३ (१०) सम्यग्द्रष्टि बालिका ७३–१४
(७) साधु भगवान ७३–३ (११) महावीर प्रभुजी ७९–१३०
(८) महावीर भगवान ७३–१० (१२) दसलक्षण धर्म ८३–२३०
(९) सिद्ध भगवान ७३–१० “ लेख १७४ पाना २६० “
गृहस्थोनो धर्म
(श्री पद्मनन्दीपचीसी: उपासक–संस्कार–अधिकार उपर पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनोमांथी पहेलां प्रवचननो टूंक सार)
[वीर सं. २४७६ श्रावण वद १२. श्लोक १ थी ६]
श्री पद्मनंदी आचार्य दिगंबर संत मुनि हता, तेमणे जंगलमां आ शास्त्रनी रचना करी छे; आमां
श्रावकना धर्मनुं वर्णन कर्युं छे. गृहस्थदशामां रहेला सम्यग्द्रष्टि श्रावकने रागरहित धर्मना संस्कार केवा होय, ने
शुभरागनी भूमिका केवी होय तेनुं आमां वर्णन छे.
आ चोवीसीमां सौथी प्रथम चारित्रधर्म अंगीकार करीने श्रीऋषभनाथ प्रभुए ‘व्रततीर्थ’ चलाव्युं, अने तेमने
सौथी प्रथम विधिपूर्वक आत्मज्ञान सहित आहारदान आपीने श्री श्रेयांसकुमारे ‘दान तीर्थ’ प्रवर्ताव्युं. एथी ते बंने
महात्माओने आ अधिकारनी शरूआतमां मंगळ तरीके याद कर्या छे. ते बंने महात्माओ ते ज भवे मोक्ष पाम्या छे.
बीजा श्लोकमां धर्मनुं स्वरूप बताव्युं छे; सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्रनी एकता ते धर्म छे–ते ज मोक्षमार्ग
छे. ते मोक्षमार्ग पूर्णपणे तो मुनिवरोने होय छे. गुहस्थोने चारित्र सहित पूर्ण मोक्षमार्ग होतो नथी, छतां तेने
पण सम्यग्दर्शनज्ञान सहित अंशे चारित्ररूप एकदेश मोक्षमार्ग होय छे; एटले गृहस्थने पण धर्म होय छे.
वेपारधंधामां पडेला गृहस्थने बिलकुल धर्म होई शके नहि–एम नथी. ए खास ध्यान राखवुं के गृहस्थने जे
शुभराग होय ते कांई धर्म नथी. धर्म तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ज छे, तेथी गृहस्थने पण रागरहित,
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रना जेटला अंशो छे ते ज धर्म छे, जे राग छे ते धर्म नथी. गृहस्थदशामां धर्मीने
जिनेन्द्रदेवनी पूजा, मुनि वगेरेनी भक्ति, शास्त्रस्वाध्याय संयम, तप अने दान, वगेरे शुभभाव आव्या वगर
रहेता नथी तेथी तेने पण उपचारथी गृहस्थनो धर्म कहेवाय छे. पण खरेखर तेमां जे राग छे ते धर्म नथी.
खरेखर गृहस्थनो धर्म तो तेने जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान तथा अंशे वीतरागभाव छे ते ज छे.
सम्यक्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने ज मोक्षमार्ग जाणीने, तेवा मोक्षमार्गमां जे गमन करता नथी ने रागने धर्म माने छे
तेवा जीवोने संसार ज दीधॅ थाय छे, तेमने मोक्ष घणो दूर छे. ने जे जीवो रागने मोक्षमार्ग तरीके नथी मानता, रागरहित
शुद्धात्मस्वभावनी श्रद्धा, ज्ञान, चारित्रने ज मोक्षमार्ग जाणीने तेमां प्रवर्ते छे तेने मोक्ष अत्यंत नजीक छे ने संसारनो
अंत आववानी तैयारी छे. सम्यग्द्रष्टि गृहस्थ होय तो ते पण मोक्षमार्गे चालनारो छे. तेने मोक्ष नजीक वर्ते छे.
जेवुं सम्यग्दर्शन मुनिवरोने होय छे तेवुं ज सम्यग्दर्शन श्रावकोने पण होय छे. सम्यग्दर्शनधर्ममां तेमने फेर नथी.
भान नथी, ने व्रतादिना शुभ रागथी धर्म माने छे ते त्यागी होय तोपण धर्मी नथी पण अधर्मी ज छे.
आ काळमां धर्मी गृहस्थो धर्मनुं कारण छे; धर्मी गृहस्थो जिनमंदिर बंधावे छे, अने ज्यां जिनमंदिर होय
त्यां मुनिओ आवीने वसे छे. तेमज मुनिओने आहारदान आपीने श्रावको तेमने धर्मसाधनमां स्थित करे छे.
ए रीते वीतरागी देव–गुरुना भक्त गृहस्थो पण निमित्त तरीके धर्मनुं कारण छे.
आ रीते आत्मभान सहितनो आवो श्रावकधर्म पण उत्तम छे. माटे गृहस्थपणामां रहेला जीवोए
पोतानी भूमिका अनुसार सम्यग्दर्शन–ज्ञान सहित रागनी मंदता करीने गृहस्थधर्मने दीपाववो जोईए.