Atmadharma magazine - Ank 084
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४७६ : २४३ :
श्री देव–गुरु–शास्त्रने नमस्कार “ भगवती रत्नत्रयी माताने नमस्कार
सुख विषे विचार
(श्री प्रवचनसार गा. २२ उपरना प्रवचनमांथी)
हे भाई, तारे सुखी तो थवुं छे ने! तो सुखना स्वरूप विषे तें कदी विचार कर्यो छे? तुं एटलो विचार
करी जो, के तें जे जे पर विषयमां सुख मान्युं छे ते ते विषयमां आगळ ने आगळ जतां छेवटे शुं परिणाम
आवे छे? –शुं तने सुख मळे छे? के तेमां कंटाळो आवी जाय छे? खावा–पीवा वगेरे कोई पण विषयमां छेवटे
तो कंटाळो ज आवे छे, ने ते छोडीने बीजा विषय तरफ उपयोग जाय छे. ए रीते, जो विषयोना भोगवटामां
अणगमो ज आवी जाय छे तो तुं समजी ले के तेमां खरेखर तारुं सुख हतुं ज नहि, पण तें मात्र कल्पनाथी ज
सुख मान्युं हतुं. जो खरेखर सुख होय तो ते भोगवतां भोगवतां कदी कोईने कंटाळो आवे नहीं. जुओ,
सिद्धभगवंतोने आत्मानुं साचुं सुख छे, तो तेने ते सुख भोगवतां भोगवतां अनंतकाळे पण कंटाळो आवतो
नथी.
हे आत्मार्थी! आत्मा सिवाय कोई पण बाह्य विषयमां सुख नथी, ए वात जो तुं जराक विचार करीने
जो तो तने प्रत्यक्ष अनुभवगम्य थाय तेवी छे. जेम के–लाडवा खावामां तें सुख मान्युं, –एक लाडवो खाधो... बे
खाधा, त्रण.... चार.... खाधा.... छेवटे एम थाय छे के हवे बस, हवे लाडवा खावामां सुख लागतुं नथी. तो
समजी ले के पाछळथी जेमां सुखनो अभाव भास्यो तेमां पहेलेथी ज सुखनो अभाव छे. ए रीते लाडवाना
स्थाने कोई पण पर विषय लईने विचार करतां नक्की थशे के ए विषयोमां सुख नथी पण आत्मस्वभावमां ज
सुख छे. ए स्वभावसुख नक्की करीने तेनी हा पाड, ने विषयोमां सुखनी बुद्धि छोड.
जेमां खरेखर सुख होय तेमां गमे तेटलुं आगळ ने आगळ जतां क्यारेय पण कंटाळो न आवे;
स्वभावमां सुख छे तो तेमां जेम जेम आगळ वधे छे तेम तेम सुख वधे छे.... तेमां कंटाळो आवतो नथी. ने
विषय सुखोमां कंटाळो आव्या विना रहेतो नथी.
पर विषयो बे प्रकारना छे–शुभ, अशुभ: पापना भावमां तो कंटाळे छे ने मंदिर, भक्ति, दया वगेरे
शुभना भावमां पण लंबातां लंबातां छेवटे थाके छे, ने त्यांथी खसवानुं मन थाय छे. जो ते शुभमां सुख होय
तो त्यांथी खसवानुं मन केम थाय? अज्ञानी जीव शुभथी खसीने शुद्धमां जतो नथी पण शुभथी खसीने पाछो
अशुभमां जाय छे, एटले पर तरफना विषयमां ज रहीने शुभ ने अशुभमां ज बदले छे; पण, ‘अत्यार सुधी
पर वलणमां रह्यो पण क्यांयथी सुख अनुभवमां आव्युं नहि, माटे पर तरफना वलणमां सुख नथी एटले
ईन्द्रिय–विषयोमां सुख नथी पण स्व तरफना अंर्तमुख अवलोकनमां ज सुख छे–अतीन्द्रिय ज्ञानमां ज सुख
छे–’ एम निर्णय करीने जो स्व तरफ वळे तो सिद्धभगवान जेवा आत्माना सुखनो अनुभव प्रगटे, ने
विषयोमांथी रुचि टळी जाय. –आ दशानुं नाम धर्म छे.
हे भाई! छेवटे लांबे काळे पण तारे विषयोमां (–शुभ के अशुभमां) कंटाळीने तेमां सुखनी ना पाडवी
पडे छे, तो वर्तमानमां ज स्वभावना सुखनी हा पाडीने विषयोमां सुखनी ना पाड ने! विषयोना लक्षे
विषयोना सुखनी ना पाडे छे तेथी ते ‘ना’ टकती नथी, ने पाछो बीजा ईन्द्रियविषयोमां ज तुं लीन थाय छे. जो
स्वभावना अतीन्द्रिय सुखनी रुचिथी हा पाडीने ते विषयसुखनी ना पाडे तो ते ‘हा’ अने ‘ना’ बंने यथार्थ
टकशे, ने आगळ जतां पूर्ण अतीन्द्रिय केवळसुख प्रगटशे. ए रीते आत्मार्थीने पहेलेथी ज स्वलक्षे ईन्द्रिय
तरफना वलणमांथी आदरबुद्धि टळी जवी जोईए, ने अतीन्द्रिय सुखनी परम आदरपूर्वक श्रद्धा थवी जोईए, ते
ज अतीन्द्रिय सुख प्रगटवानो उपाय छे.
आपनुं लवाजम आ अंके पूरुं थाय छे. जो नवावर्षनुं लवाजम हजी सुधी न मोकलाव्युं होय तो वहेली
तके मोकलावी आपशो.