Atmadharma magazine - Ank 085
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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धर्मनुं मूळ सम्यक्दर्शन
कारतक : संपादक : वर्ष: आठमुं
२४७ रामजी माणेकचंद दोशी अंक: पहेलो
वकील
क्षण लाखेणी जाय छे
हे जीव! मिथ्याबुद्धिनां खोळीए तुं अनादिनो
सूतो छे, हवे श्री आचार्यदेव तने तारा प्रभुत्वनो
महिमा गाईने जागृत करे छे, तुं तारा प्रभुत्वनी ना
पाड ए नहि चाले. आ कोनी मांडी छे? त्रिलोकनाथ
सिद्ध भगवान जे पद पाम्या तेवो तुं छे, एम तारा
गाणां गवाय छे. शास्त्र पण तारा गाणां गाय छे;
जाग रे जाग! क्षण लाखेणी जाय छे.
[जुओ, समयसार प्रवचनो भाग १ पृ. ७८]
छूटक नकल वार्षिक लवाजम
चार आना त्रण रूपिया
जैन स्वाध्याय मंदिर – सोनगढ – सौराष्ट्र