महिमा गाईने जागृत करे छे, तुं तारा प्रभुत्वनी ना
पाड ए नहि चाले. आ कोनी मांडी छे? त्रिलोकनाथ
सिद्ध भगवान जे पद पाम्या तेवो तुं छे, एम तारा
गाणां गवाय छे. शास्त्र पण तारा गाणां गाय छे;
जाग रे जाग! क्षण लाखेणी जाय छे.
Atmadharma magazine - Ank 085
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).
PDF/HTML Page 2 of 21