।। धर्मनुं मूळ सम्यक्दर्शन।।
मागशर संपादक वर्ष आठमुं
२४७७ रामजी माणेकचंद दोशी अंक बीजो
वकील
श्रेणिक राजा तीर्थंकर थशे
–ए कोना प्रतापे?
श्रेणिक राजाने कोई व्रत के चारित्र न हतुं,
छतां ‘हुं परनो कर्ता नथी, ज्ञाता ज छुं’ एवी
सम्यक्श्रद्धाना जोरे तेओ एकावतारी थया,
भविष्यमां तीर्थंकर भगवान थशे. तेमने अंतरमां
निश्चयस्वनुं यथार्थ भान हतुं, परनुं स्वामित्व न
हतुं. तेथी ज एकावतारीपणुं थयुं.–ए मात्र
सम्यग्दर्शननो ज महिमा छे. तेना विना
अनंतवार धर्मना नामे व्रतादि क्रियाओ करी,
शरीरे कांटा वींटी बाळी नांखे तो पण क्रोध न करे
एवी क्षमा राखी छतां धर्म न थयो, मात्र
शुभभाव थयो. आटलुं कर्यां छतां आत्मा मन–
वाणी–देहथी पर छे, पुण्य–पापना विकल्पथी
रहित छे–एवी श्रद्धा बेठी नहि; तेथी जीव
संसारमां रखडयो.
–समयसार–प्रवचनो भाग १ पृ. ९३–९४
छूटक नकल शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक पत्र वार्षिक लवाजम
चार आना
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त्रण रूपिया
जैन स्वाध्यायमंदिर–सोनगढ–सौराष्ट्र