ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
आत्मा अनादिथी अज्ञानपणे बहारना क्रियाकांडमां ने विकारमां भटकतो, त्यां तेने कदी अनुभवमां आत्माना
आनंदनुं अमी झरतुं न हतुं, अनादिथी ऊंधा ऊपाय कर्या, छेवटे तेने ज्ञानी मळ्या, ज्ञानीए तेने कह्युं–भाई!
आत्माना आनंदनो उपाय सहज छे, बहारनुं वलण छोडीने तुं तारा स्वभावसन्मुख था.’ ज्यां यथार्य भान
करीने अंर्तस्वभावसन्मुख वळ्यो त्यां आत्माना अनुभवनुं अमृत झर्युं. जे मुनिओ एवा आत्माना अमृतना
अनुभवमां लीन थया छे ते मुनिओ ज खरेखर मोक्षतत्त्व छे.
अहीं स्वरूपनी रमणतामां वर्तता, स्वरूपमां ठर्या तेवा साक्षात् श्रमणने ज मोक्षतत्त्व कही दीधा;
वर्तमान साधक छे छतां मोक्षतत्त्व कही दीधा. मोक्षनुं साक्षात् कारण प्रगट्युं त्यां मोक्षतत्त्व ज कही दीधुं. आवी
दशा भगवान श्री कुंदकुंदमुनिनी हती, तेम ज भगवान श्री पुष्पदंत अने भूतबली वगेरे संत–मुनिओनी पण
एवी दशा हती. आजे अहींना [–लाठीना] जिनमंदिरनी प्रतिष्ठानो वार्षिक महोत्सव छे, तेम ज श्रुतपंचमीनो
दिवस छे, ठेठ महावीर प्रभुना दिव्यध्वनि साथे संबंध धरावनारा महान षट्खंडागमनी पूजानो आजनो दिवस
छे. श्री भूतबली अने पुष्पदंत आचार्यदेवोए तेनी रचना करी हती. तेमने उपर कही तेवी दशा हती. स्वरूपना
आनंदमां लीन थतां ते दशा प्रगटी छे.
संसारतत्त्वना वर्णनमां द्रव्यलिंगी मुनिने नित्यअज्ञानी अने ब्मणाभास कह्यो हतो, अहीं मोक्षनी
तैयारीवाळा भावलिंगी साधुने नित्यज्ञानी अने साक्षात् श्रमण कह्या छे. शुद्धोपयोगमां ठर्या ते साक्षात् श्रमण छे.
ज्यां आवी दशा प्रगटी त्यां, साधक–साध्य वच्चेना भेदने तोडीने कहे छे के, मोक्षतत्त्व ज घरे आवी गयुं, आत्मा
पोते मोक्षतत्त्व थई गयो. साक्षात् मोक्षदशा तो भविष्यमां थवानी छे पण मोक्षना कारणरूप दशा प्रगटी गई त्यां
तेने वर्तमानमां ज मोक्षतत्त्व कहेल छे. केम के ते आत्माए पूर्वनां बधां कर्मोनां फळने लीलाथी नष्ट कर्यां छे,–कष्टथी
नहि पण लीलाथी नष्ट कर्यां छे, जेमां कष्ट लागे ते तो भूंडुं ध्यान छे, तेमां धर्म थाय नहि. अहीं तो कहे छे के
आत्मानो निश्चय करीने तेमां लीन थनारा मुनिवरोए सहजमात्रमां पूर्व कर्मना फळने नष्ट कर्यां छे, आगामी
कर्मफळने ते उपजावता नथी तेथी फरीने प्राणधारणरूप दीनताने पामता नथी ने विकारी भावोरूप परावर्तनना
अभावने लीधे शुद्धस्वभावमां अवस्थितवृत्तिवाळा रहे छे, तेथी ते मुनिओ ज मोक्षतत्त्व छे.
शरीरने धारण करवुं ते दीनता छे ने चैतन्यनी निर्मळ आनंददशा प्रगट करीने तेमां लीन रहेवुं ते
बादशाही छे. सदा नवा नवा विकारभावे आत्मा बदल्या करतो अने तेना फळमां नवा नवा शरीरने धारण
करवारूप दीनताने पामतो ते संसारतत्त्व हतुं, अने आत्मानुं भान प्रगट करीने आत्माना आनंदमां ज
स्थिरताथी आत्मा एक भावरूपे स्वरूपमां ज स्थिर रहे छे ने फरीथी प्राणधारणरूप दीनता पामतो नथी ते जीव
ज मोक्षतत्त्व छे, मुनिनो आत्मा ज अभेदपणे मोक्षतत्त्व छे.
आ रीते २७१ मी गाथामां संसारतत्त्वनुं अने २७२ मी गाथामां मोक्षतत्त्वनुं वर्णन कर्युं. हवे २७३ मी
गाथामां मोक्षतत्त्वना साधनतत्त्वनुं वर्णन करशे. ।।२७२।।
जैन तिथि दर्पण
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी प्रकाशित चालु सालनुं
जैन तिथि दर्पण जेमणे जरूर होय तेमणे सथवारा जोग मंगावी लेवुं.
पूजारी जोईए छे.
श्री सोनगढना जिनमंदिरमां पूजारी तरीकेनुं तथा नामुं वगेरे
कामकाज करी शके तेवा एक उत्साही जैन भाईनुं जरूर छे. पगार
लायकात मुजब–जेमनी रहेवानी ईच्छा होय तेमणे तुरत जणाववुं.
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर सोनगढ (सौराष्ट्र).
मुद्रक : चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय : मोटा आंकडिया [जि. अमरेली] ता. ८–१२–५०
प्रकाशक श्री जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया [जि. अमरेली]