Atmadharma magazine - Ank 087
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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सळंग प्रवाह कांई एक ज परिणाममां तो नथी, एटले सळंगनी–त्रिकाळीद्रव्यनी–धु्रवस्वभावनी द्रष्टि थया
वगर परिणामना उत्पाद–व्यय–धु्रव पण ख्यालमां आवे तेम नथी.
वस्तु एक समयमां पूरी छे; तेना परिणाममां उत्पाद–व्यय–धु्रवपणुं छे. ते उत्पाद–व्यय–धु्रवपणुं नक्की
करतां द्रव्य उपर ज द्रष्टि जाय छे. वर्तमान परिणामथी उत्पाद छे, पूर्व परिणामथी व्यय छे, ने धु्रव तो सळंग
प्रवाह अपेक्षाए छे. एटले सळंग प्रवाहनी द्रष्टिमां ज धु्रवस्वभाव उपर द्रष्टि गई, अने त्यारे ज परिणामना
उत्पाद–व्यय–धु्रव नक्की थया.
आमां पुरुषार्थ क्यां काम करे छे? –के आम नक्की कर्युं त्यां पुरुषार्थ द्रव्यसन्मुख ज काम करवा मांड्यो, ने
वीतरागता ज थवा मांडी. परिणाम तेना स्वकाळमां थाय छे, ते तो थया ज करे छे, पण तेम नक्की करनारनी
द्रष्टि धु्रव उपर पडी छे. द्रव्यद्रष्टि थया वगर आ वात बेसे तेवी नथी.
आ ज्ञेयअधिकारमां एकला परप्रकाशकनी वात नथी, पण स्वसन्मुख स्वप्रकाशकसहित परप्रकाशकनी वात
छे. ज्यां पोताना धु्रवस्वभावनी सन्मुखताथी स्वप्रकाशक थयो त्यां आखा जगतना बधा पदार्थो पण आवा ज
छे एवुं पर प्रकाशकपणुं पण ज्ञानमां खीली ज जाय छे. द्रव्य पण उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यात्मक छे. ते उत्पाद–व्यय–धु्रव
क्यारे नक्की थाय? ज्ञायक चैतन्यद्रव्यनी यथार्थ रुचि अने ते तरफ वलण थतां बधुं नक्की थई जाय छे. जेम
स्वना ज्ञानसहित ज परनुं साचुं ज्ञान थाय छे, तेम धु्रवनी द्रष्टिथी ज उत्पाद–व्ययनुं साचुं ज्ञान थाय छे.
वस्तुस्वरूप एवुं छे के क्यांय पर उपर तो जोवानुं नथी, ने पोतानी एकली पर्याय सामे पण जोवानुं
नथी; विकल्प टाळीने निर्विकल्पता करुं–एवा लक्षे निर्विकल्पता थती नथी पण धु्रवना लक्षे निर्विकल्पता थई
जाय छे. एटले पर्यायना उत्पाद–व्ययनी सामे पण जोवानुं नथी. पर्यायोना प्रवाहक्रममां द्रव्य वर्ती रह्युं छे, कई
पर्याय वखते आखुं द्रव्य नथी?–ज्यारे जुओ त्यारे द्रव्य आखेआखुं वर्तमानमां छे; एवा द्रव्यनी सन्मुखता
थतां प्रवाहक्रम नक्की थाय छे. पछी ते प्रवाहनो क्रम फेरववानी बुद्धि रहेती नथी पण ज्ञातापणानो ज अभिप्राय
रहे छे. त्यां ते प्रवाहक्रम एम ने एम रही जाय छे ने द्रव्यद्रष्टि थई जाय छे. ते द्रव्यद्रष्टिमां क्रमे क्रमे वीतरागी
परिणामोनो ज प्रवाह ऊग्या करशे. आवो आ *९९* मी गाथानो सार छे.
अहो! अपार वस्तु छे, केवळज्ञाननो खजानो भर्यो छे. तेमांथी जेटलुं रहस्य काढो तेटलुं नीकळे तेम छे.
अंदर डोकियुं करे तो पार आवे तेवुं छे.
अहो! आचार्यभगवंतोए अमृतनां ढांकणां खोली नाख्यां छे, –अमृतनो प्रवाह रेलाव्यो छे.
(१) सामान्यमांथी विशेष थाय छे एम कहो,
(२) वस्तु उत्पाद–व्यय–धु्रवयुक्त छे एम कहो, के
(३) द्रव्यमांथी क्रमबद्ध पर्यायनी प्रवाहधारा वहे छे एम कहो, –एनो निर्णय करवामां धु्रवस्वभाव
उपर ज द्रष्टि जाय छे. धु्रवस्वभावनी रुचिमां ज सम्यक्त्व अने वीतरागता थाय छे. आ तो अंर्तरुचिनी ने
अंर्तद्रष्टिनी चीज छे, मात्र शास्त्रनी पंडिताईनी आ चीज नथी.
आ, वस्तुना समय समयना परिणाममां उत्पाद–व्यय–धु्रवनी सूक्ष्म वात छे. कुंभार घडो न करे ने कर्मो
जीवने विकार न करावे–ए तो ठीक, पण आ तो तेनाथी पण सूक्ष्म वात छे. सर्वज्ञतामां जणायेलो
वस्तुस्वभावनो एकदम सूक्ष्म नियम अहीं बतावी दीधो छे. माटी पोते पिंड दशानो नाश थईने घडा दशापणे
ऊपजे छे ने माटीपणाना प्रवाह अपेक्षाए ते धु्रव छे, तेम बधाय पदार्थो उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाववाळां छे.–
आवो उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाव समजतां पोताने पर सामे जोवानुं रहेतुं नथी; केम के परना उत्पाद–व्यय–धु्रवने
पोते करतो नथी ने पोताना उत्पाद–व्यय–ध्रुव परथी थता नथी, तेथी पोताना उत्पाद–व्यय–धु्रवने माटे क्यांय
पर सामे जोवानुं नथी रहेतुं पण पोतानी सामे ज जोवानुं रहे छे. हवे पोते पोताना परिणामने जोवा जतां
ज्ञान अंतरमां परिणामी स्वभाव तरफ वळे छे, ने ते परिणामीना आधारे वीतरागी परिणामनो प्रवाह
नीकळ्‌या करे छे. ए रीते, धु्रवना आश्रये वीतरागी परिणामनो प्रवाह नीकळ्‌या करे–तेनी आ वात छे.
‘आत्मा बीजानुं कांई करी शकतो नथी’ एम कहेतां ज बीजा कोई सामे जोवानुं रहेतुं नथी, पण
पोतानी सामे जोवानुं आवे छे. पोतामां, पोताना परिणाम पोताथी थाय छे–एम नक्की करतां अंदरमां ज्यांथी
परिणामनी धारा वहे छे एवा धु्रव द्रव्य सामे जोवानुं रह्युं. ने धु्रव सामे जोतां ज (–धु्रवस्वभावनी द्रष्टि थतां
ज) सम्यक् पर्यायनो उत्पाद थाय छे. जो धु्रव सामे न जुए तो पर्यायद्रष्टिमां मिथ्या पर्यायनो उत्पाद थाय छे.
माटे वस्तुना आवा उत्पाद–व्यय–धु्रव स्वभावने समजतां धु्रवस्वभावनी द्रष्टिथी सम्यक्–वीतरागी पर्यायोनो
उत्पाद थाय–ते ज सर्वनुं तात्पर्य छे.