वगर परिणामना उत्पाद–व्यय–धु्रव पण ख्यालमां आवे तेम नथी.
प्रवाह अपेक्षाए छे. एटले सळंग प्रवाहनी द्रष्टिमां ज धु्रवस्वभाव उपर द्रष्टि गई, अने त्यारे ज परिणामना
द्रष्टि धु्रव उपर पडी छे. द्रव्यद्रष्टि थया वगर आ वात बेसे तेवी नथी.
छे एवुं पर प्रकाशकपणुं पण ज्ञानमां खीली ज जाय छे. द्रव्य पण उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यात्मक छे. ते उत्पाद–व्यय–धु्रव
क्यारे नक्की थाय? ज्ञायक चैतन्यद्रव्यनी यथार्थ रुचि अने ते तरफ वलण थतां बधुं नक्की थई जाय छे. जेम
स्वना ज्ञानसहित ज परनुं साचुं ज्ञान थाय छे, तेम धु्रवनी द्रष्टिथी ज उत्पाद–व्ययनुं साचुं ज्ञान थाय छे.
जाय छे. एटले पर्यायना उत्पाद–व्ययनी सामे पण जोवानुं नथी. पर्यायोना प्रवाहक्रममां द्रव्य वर्ती रह्युं छे, कई
पर्याय वखते आखुं द्रव्य नथी?–ज्यारे जुओ त्यारे द्रव्य आखेआखुं वर्तमानमां छे; एवा द्रव्यनी सन्मुखता
थतां प्रवाहक्रम नक्की थाय छे. पछी ते प्रवाहनो क्रम फेरववानी बुद्धि रहेती नथी पण ज्ञातापणानो ज अभिप्राय
रहे छे. त्यां ते प्रवाहक्रम एम ने एम रही जाय छे ने द्रव्यद्रष्टि थई जाय छे. ते द्रव्यद्रष्टिमां क्रमे क्रमे वीतरागी
परिणामोनो ज प्रवाह ऊग्या करशे. आवो आ *९९* मी गाथानो सार छे.
(१) सामान्यमांथी विशेष थाय छे एम कहो,
(२) वस्तु उत्पाद–व्यय–धु्रवयुक्त छे एम कहो, के
(३) द्रव्यमांथी क्रमबद्ध पर्यायनी प्रवाहधारा वहे छे एम कहो, –एनो निर्णय करवामां धु्रवस्वभाव
अंर्तद्रष्टिनी चीज छे, मात्र शास्त्रनी पंडिताईनी आ चीज नथी.
ऊपजे छे ने माटीपणाना प्रवाह अपेक्षाए ते धु्रव छे, तेम बधाय पदार्थो उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाववाळां छे.–
आवो उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाव समजतां पोताने पर सामे जोवानुं रहेतुं नथी; केम के परना उत्पाद–व्यय–धु्रवने
पोते करतो नथी ने पोताना उत्पाद–व्यय–ध्रुव परथी थता नथी, तेथी पोताना उत्पाद–व्यय–धु्रवने माटे क्यांय
पर सामे जोवानुं नथी रहेतुं पण पोतानी सामे ज जोवानुं रहे छे. हवे पोते पोताना परिणामने जोवा जतां
ज्ञान अंतरमां परिणामी स्वभाव तरफ वळे छे, ने ते परिणामीना आधारे वीतरागी परिणामनो प्रवाह
नीकळ्या करे छे. ए रीते, धु्रवना आश्रये वीतरागी परिणामनो प्रवाह नीकळ्या करे–तेनी आ वात छे.
ज) सम्यक् पर्यायनो उत्पाद थाय छे. जो धु्रव सामे न जुए तो पर्यायद्रष्टिमां मिथ्या पर्यायनो उत्पाद थाय छे.
माटे वस्तुना आवा उत्पाद–व्यय–धु्रव स्वभावने समजतां धु्रवस्वभावनी द्रष्टिथी सम्यक्–वीतरागी पर्यायोनो
उत्पाद थाय–ते ज सर्वनुं तात्पर्य छे.