जेवा छे. जेम धजानो छेडो जे तरफनो पवन होय ते तरफ उडवा मांडे अने गारमां नाखेलो खीलो जे तरफ गाय
फरे ते तरफ नमी पडे, तेम ते अज्ञानीओ ज्यां जाय त्यां ‘हा जी हा’ करे छे, पण सत्य–असत्यने न्यायथी
समजता नथी. ‘एकने साचुं मानशुं तो बीजा उपर द्वेष आवशे, माटे बधाने सरखा मानवा, साचा–खोटानी
जेनी बुद्धि चालती नथी तेने धर्म थाय नहि. ‘गोळ अने खोळ सरखां मानो, अनाज अने विष्टा सज्जन अने
दुर्जन; बधाने सरखां मानो–एम ते कहे छे पण घेर रोटली के दाळमां फेर पडे त्यां तो विरोध करे छे. भातमां
कांकरो आवे तो त्यां भात अने कांकराने सरखां मानीने एम ने एम खाई जतो नथी पण भात अने कांकरानो
विवेक करीने कांकराने काढी नाखे छे. जो एम न करे तो लोको तेने मूर्ख गणे छे. तेम धर्ममां साचा–खोटानो
बराबर विवेक करीने,–असत्यनुं सेवन छोडवुं जोईए. जो साचा–खोटानो विवेक न करे ने बधुं सरखुं माने तो
ते समभाव नथी पण धर्ममूढता छे. संसारमां–घरमां सारा–नरसानो विवेक करे छे अने परमार्थमां सत्य–
असत्यनो विवेक न करे, असत्यने सत्यमां ने सत्यने असत्यमां खतवे, तो ते मूढता छे, समभाव नथी. बधा
जोईए. झेर अने अमृत, स्त्री अने पुत्री, –बंनेने सरखां मानवा तेमां विवेक शुं रह्यो? दीकरी, स्त्री अने माता–
ए त्रणे ‘स्त्री’ पणे (–नारी जात अपेक्षाए) सरखां छे, पण वर्तमान लोकव्यवहारमां सरखां नथी. जे आम
न समजे तेने लौकिकमां मूर्ख कहेवाय छे; तेम लोकोत्तर आत्मधर्ममां पण जे विवेक न राखे तेने पण मूर्ख
कहेवाय छे. माटे साचा–खोटाने समजी, साचानो ज स्वीकार करवो जोईए. जेनी पासेथी धर्म समजवो छे ते
पोते धर्म पामेल छे के नहि अने तेनामां अलौकिक गुण शुं छे?–वगेरे प्रथम जाणवुं जोईए.
मळवा बंध करवा माटे अनंत तीर्थंकरोए पुण्य–पाप रहित आत्मानी
श्रद्धा, तेनी समजण तथा तेमां स्थिरता–ते उपाय कह्या छे.
अनंतकाळे दुर्लभ मनुष्य जीवन, तथा तेमां महा मोंघपवाळा सत्समागम–
श्रवण मळ अने तारो स्वतंत्र स्वभाव छे तेने तुं न माने ते केम चाले?