Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 33 of 43

background image
: ११० : आत्मधर्म : ८९
वीतराग भगवाननी ओळखाण करीने तेमनां गाणां पात्र जीवो गाय छे... तेमां तेमनी रुचि तो भगवान जेवा
पोताना शुद्ध आत्मस्वभाव उपर ज पोषाय छे.
(३१) ‘ज्यां जोउं त्यां नजरे पडती भक्ति जिनेन्द्र तारी!’
हवे, श्री तीर्थंकरभगवानना समवसरणमां जे अशोकवृक्ष होय छे तेमां अलंकार करीने भगवाननी
स्तुति करतां छठ्ठा श्लोकमां श्री आचार्यदेव कहे छे के–हे नाथ! आ अशोकवृक्ष पण आपनी भक्ति ज करी रह्युं
छे. कई रीते? तेना खीलेलां पुष्पो उपर बेठेला भमराओनो जे गूंजारव छे ते एवो लागे छे के जाणे अशोकवृक्ष
आपना निर्मळयशना गुणगान ज करी रह्युं छे... अने पवनथी कंपती तेनी डाळीओनो अग्रभाग जोतां एम
लागे छे के ते पोताना हाथे फेलावीने आपनी पासे भक्तिथी नृत्य करी रह्युं छे... जुओ! आचार्यदेवने पोताने
भगवान प्रत्ये भक्ति छे एटले अशोकवृक्षने पण भगवाननी भक्ति करतुं भाळे छे. –भाव तो पोतानो छे ने!
वाह रे वाह, मुनि तारी भक्ति! तारी भक्तिए तो अशोकवृक्षने पण भाषा आपीने बोलतुं करी दीधुं! हे
जिनेन्द्र! मन विनानुं आ अशोकवृक्ष पण ज्यां तारी स्तुति करी रह्युं छे तो पछी मनवाळा एवा मुनीन्द्रो ने
देवेन्द्रो आपनी स्तुति करे एमां शुं आश्चर्य?–आम कहीने, जेने भगवान प्रत्ये भक्ति नथी जागती तेना उपर
आचार्यदेवे कटाक्षनो प्रहार कर्यो छे. हे नाथ! तारा ज्ञानादि गुणोनी सुगंधथी आकर्षाईने भमराने पण गूंजारव
वडे तारी स्तुति करवानुं मन थयुं, तो पछी बीजा कोने आपना प्रत्ये भक्ति न जागे? ईन्द्र वगेरे तारा गुणोनी
स्तुति करे तेमां शी नवाई? अंदर एकदम निर्मानतापूर्वक आचार्यदेव स्तुति करे छे. स्तुतिमां पण वीतरागतानुं
ज घोलन चाले छे, अल्प राग छे तेनुं धणीपणुं नथी. स्वरूपनी वीतरागी अवस्था प्रगटी तेमां अभिमान शेनुं
रहे? अभिमान तो मेल छे. निर्मळ अवस्था प्रगटी तेमां मेल होय नहि.
(३२) भक्तिरसमां भींजायेला भक्तोनां हृदय कोण जाणशे?
अहीं तो आचार्यदेवे स्तुति करी छे; ईन्द्र वगेरे पण भगवान पासे एवी भक्ति करे के अत्यारना
साधारण प्राणीथी तो जीरवाय नहि, एने तो एम ज थई जाय के अरे! आ शुं? पण भाई! भक्ति शुं छे
तेनुं तने भान नथी. जगतडां कहे छे के भगतडां घेला छे, पण घेला न जाणशो रे.. ए तो प्रभुने घेर
पहेलांं छे. वळी जगतडां कहे छे के भगतडां काला छे, पण काला न जाणशो रे... ए प्रभुने त्यां वहाला छे.
कोई कहेशे के ‘अरे! आचार्ये केवी स्तुति करी? शुं भमरा ते कोई दी भक्ति करता हशे? –आवी स्तुति तो
एम साधारण पण न करीए; तो अहीं तेने कहे छे के–अरे...जा...जा...नमाला! आचार्य भगवाननी
भक्तिनी तने शी खबर पडे? तारामां अक्कल केटली? आचार्यदेवे समजीने गाणां गायां छे. जेवा
त्रणलोकना नाथ परमात्माना गाणां गाया छे तेवा ज त्रणलोकना नाथ पोते थवाना छे. अरे पाखंडी!
तने धर्मात्माना हृदयनी शी खबर पडे? आत्मतत्त्वनो महिमा तने भास्यो नथी एटले जेणे आत्मतत्त्वनुं
पूरुं सामर्थ्य प्रगटी गयुं छे एवा परमात्माना महिमानी पण तने खबर नथी. अढी हजार वर्ष पहेलांं
अहीं भरतक्षेत्रे पण श्री महावीर परमात्मा बिराजता हता त्यारे आकाशमांथी ईन्द्रो तेमनी स्तुति करवा
ऊतरता. आ वातनी जेने श्रद्धा न बेसे ते नास्तिक छे... तेणे सर्वज्ञदेवनो महिमा जाण्यो नथी तेम ज
आत्माना धर्मना महिमानुं पण तेने भान नथी. भगवाननी भक्तिनो पण जे निषेध करे छे तेने तो
दुर्गतिमां जवानां लक्षण छे... शास्त्रोमां भगवाननी भक्तिनुं जे वर्णन आवे ते तेना काळजामां श्ये
समाय? अहो! आ तो नग्न मुनि... जंगलमां वसनारा... पंच महाव्रतना पाळनारा... माथा साटे सत्यने
राखनारा.. ने आत्मस्वभावमां झूलनारा... महा वीतरागी संत (पद्मनंदी आचार्य) वीतरागनी स्तुतिनुं
वर्णन करे छे. आत्मानो महिमा जाण्या वगर अज्ञानीने वीतरागनो साचो महिमा क्यांथी आवे?
(३३) हे सीमंधरनाथ..! अमने तारा विरह...!
जेमना जन्मे चौद ब्रह्मांडमां आनंदनो खळभळाट फेलाई जाय... जेमना जन्मे आखा लोकमां अजवाळां
थाय... ने ईन्द्रो भक्तिथी नाचे–एवा तीर्थंकर प्रभुना कल्याणक अत्यारे ऊजवाय छे. अहीं तो सीमंधरप्रभुनी
स्थापना छे. सीमंधरप्रभु अत्यारे महाविदेहमां साक्षात्
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)