Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४७७ : ११७ :
प्रसंगनुं वर्णन नीचे मुजब कर्युं छे––
(१)
बहु ऋद्धिधारी कुंदकुंद मुनि हता ए काळमां...
जे श्रुतज्ञान प्रवीण ने अध्यात्मरत योगी हता...
आचार्यने मन एकदा जिनविरहताप थयो महा...
रे! रे! सीमंधर जिनना विरहा पड्या आ भरतमां.
(२)
एकाएक छूट्यो ध्वनि जिनतणो ‘सद्धर्म वृद्धि हजो.’
सीमंधरजिनना समोसरणमां, ना अर्थ पाम्या जनो;
संधिहीन ध्वनि सूणी परिषदे आश्चर्य व्याप्युं महा,
थोडीवार महीं तहीं मुनि दीठा अध्यात्म मूर्ति समा.
(३)
जोडी हाथ ऊभा प्रभु–प्रणमतां शी भक्तिमां लीनता!
नानो देह अने दिगंबर दशा, विस्मित लोको थता.
चक्री विस्मय भक्तिथी जिन पूछे ‘हे नाथ! छे कोण आ?
‘–छे आचार्य समर्थ ए भरतना सद्धर्म वृद्धिकरा.’
(४)
सूणी ए वात जिनवरनी, हर्ष जन हृदये वहे,
नानकडा मुनिकुंजरने ‘एलाचार्य’ जनो कहे.
(प)
प्रत्यक्ष जिनवरदर्शने बहु हर्ष एलाचार्यने,
“ कार सूणतां जिनतणो अमृत मळ्‌युं मुनि हृदयने.
सप्ताह एक सूणी ध्वनि श्रुतकेवळी परिचय करी,
शंका निवारण सहु करी मुनि भरतमां आव्या फरी.
(–ए द्रश्य माटे जुओ सोनगढमां सीमंधर प्रभुनुं समवसरण)
ज्यां श्री सीमंधरादि तीर्थंकरो विचरे छे एवा विदेहक्षेत्रना देशो अतिवृष्टि, अनावृष्टि के मरकी आदि
रोगोथी रहित छे; तेम ज जिनदेव सिवायना कोई कुदेवो, कुलिंग के कुमत पण त्यां होता नथी, ते देशो सदाय
केवळी भगवंतो अने तीर्थंकरो, चक्रवर्तीओ वगेरे श्लाका पुरुषोथी भरेला होय छे.
धन्य हो ते धर्मभूमिना धर्मात्माओने...!
* * * * *
विचरंता वीस जिनने वंदु भावे.
आ दुनियामां अत्यारे जैनधर्मना धुरंधर वीस तीर्थंकर भगवंतो साक्षात् विचरी रह्या छे, तेमनां मंगळ नामो–
१. श्री सीमंधर भगवान ६. श्री स्वयंप्रभ भगवान ११. श्री वज्रधर भगवान १६. श्री नेमप्रभ भगवान
२. श्री युगमंधर भगवान ७. श्री ऋषभानन भगवान १२. श्री चंद्रानन भगवान १७. श्री वीरसेन भगवान
३. श्री बाहु भगवान ८. श्री अनंतवीर्य भगवान १३. श्री चंद्रबाहु भगवान १८. श्री महाभद्र भगवान
४. श्री सुबाहु भगवान ९. श्री सूरप्रभ भगवान १४. श्री भुजंगम भगवान १९. श्री देवयश भगवान
प. श्री संजातक भगवान १०. श्री विशालकीर्ति भगवान १प. श्री ईश्वर भगवान २०. श्री अजितवीर्य भगवान
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)