श्री सीमंधर भगवाननी छे. जेम अढी हजार वर्ष पहेलांं आ भरतभूमि उपर श्री महावीर भगवान
तीर्थंकरपणे विचरी रह्या हता तेम अत्यारे पण आ पृथ्वी उपरना ‘महाविदेह’ नामना क्षेत्रमां श्री
सीमंधर भगवान तीर्थंकरपणे साक्षात् विचरी रह्या छे. तेओ अत्यारे अरिहंतपदे बिराजे छे... ‘नमो
अरिहंताणं’ एम आपणे कहीए तेमां ते सीमंधर भगवानने पण नमस्कार आवी जाय छे. ज्यां श्री
सीमंधर भगवान बिराजे छे ते महाविदेह क्षेत्र अहींथी पूर्व दिशामां एटलुं बधुं दूर आवेलुं छे के कोई
वाहनद्वारा अत्यारे त्यां पहोंची शकाय नहीं. आम छतां, जे जंबुद्वीपमां आपणुं भरतक्षेत्र छे ते ज
द्वीपमां महाविदेह क्षेत्र आवेलुं छे, बंने एक ज द्वीपमां आवेला छे... एटले जे द्वीपमां जे श्री सीमंधर
भगवान विचरे छे ते ज द्वीपमां आपणे रहीए छीए.
लंछन वृषभ छे. तेमनो जन्म सीता नामनी नदीनी उत्तरे आवेला पुष्कलावती देशना पुंडरीकपुर
नगरमां थयो हतो, तेमनुं आयुष्य ८४ लाख पूर्वनुं छे तेमांथी अत्यारे लगभग ८३ लाख पूर्व वीत्या
छे. तेमनुं समवसरण बार योजन व्यासनुं छे; तेमना समवसरणमां मनुष्योनी सभाना नायक श्री
पद्मरथ चक्रवर्ती छे. ज्यारे श्रीकृष्णनी रुकिमणी राणीनो पुत्र प्रद्युम्नकुमार खोवाई गयो हतो त्यारे
अहींथी श्री नारदजी ते प्रद्युम्नकुमारनुं चरित्र सांभळवा माटे महाविदेहक्षेत्रे सीमंधर प्रभु पासे गया
हता. त्यारे ए पद्मरथ चक्रवर्तीए आश्चर्यथी भगवानने पूछयुं हतुं के ‘आ शुं छे... आ कोण छे?’ –आ
प्रकारनुं विस्तारथी वर्णन श्री प्रद्युम्नचरित्रना छठ्ठा सर्गमां छे.
आसक्त छे एवा दशरथ महाराजाना दरबारमां एकवार नारद आवे छे अने दशरथराजा तेमने नवीन
समाचार पूछे छे त्यारे, जिनेन्द्रचंद्रनुं चरित्र प्रत्यक्ष देखवाथी जेने परम हर्ष उपज्यो छे एवा ते नारद
कहे छे के हे राजन! हुं महाविदेहक्षेत्रे गयो हतो; ते क्षेत्र उत्तम जीवोथी भरेलुं छे, त्यां ठेरठेर श्री
जिनराजनां मंदिरो छे ने ठेरठेर महा मुनिओ बिराजे छे; त्यां धर्मनो महान उद्योत छे; श्री तीर्थंकरदेव,
चक्रवर्ती, बळदेव–वासुदेव प्रतिवासुदेव वगेरे त्यां ऊपजे छे; त्यां जईने पुंडरिकिणी नगरीमां में श्री
सीमंधर स्वामीनो तप कल्याणक देख्यो; तथा जेवो अहीं श्री मुनिसुव्रतनाथनो सुमेरूपर्वत उपर
जन्माभिषेक आपणे सांभळ्यो छे तेवो श्री सीमंधर स्वामीना जन्माभिषेकनो उत्सव में सांभळ्यो...
तेमना तपकल्याणकने तो में प्रत्यक्ष ज देख्यो.’
वात तो सुप्रसिद्ध छे. ‘समवसरण–स्तुति’मां ते