Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४७७ : ११५ :
आत्मा उपर पडी छे, –तेने आत्मानुं भान छे, ते भानमां तेने क्षणे क्षणे धर्म थाय छे. साचुं समजे तेने
वीतरागीदेव–गुरु–शास्त्र उपर भक्तिनो प्रशस्त राग आव्या विना रहेशे नहि. भगवाननी भक्तिना भावनो
निषेध करीने जे खावा–पीवा वगेरेना भूंडा रागमां जोडाय ते तो मरीने दुर्गतिमां जशे. वीतरागी आत्मानुं लक्ष
थाय अने आकरा राग न टळे ए केम बने? मारुं स्वरूप ज्ञान छे, राग मारुं स्वरूप नथी एम जे सत्यने जाणे
छे तेने लक्ष्मी वगेरेनी ममता उपर सहेजे काप मूकाई जाय छे, ने भगवाननी भक्ति–प्रभावना वगेरेनो भाव
ऊछळे छे. छतां त्यां ते जाणे छे के आ राग छे, आ कांई धर्म नथी. अंतरमां शुद्ध चिदानंदस्वरूपने जाणीने ते
प्रगट कर्या विना जन्म–मरण टळशे नहि.
(प) सीमंधर भगवाननी साची भक्ति ने ए भक्तिनुं फळ मुक्ति
जुओ... धर्मनी आ यथार्थ वात मळवी बहु मोंघी छे.. बाह्य साधु थईने बधुं छोडी जंगलमां जईने
सूकाई जाय तोय आ वस्तुद्रष्टि मळे तेम नथी... अत्यारे लोकोने सत्य वात सांभळवा मळवी पण दुर्लभ थई
गई छे. जेने स्व उपर द्रष्टि पडी नथी तेने धर्म क्यांथी थाय? धर्म तो आत्मामांथी थाय छे एटले पहेलांं परथी
नीराळा आत्मस्वभावनी श्रद्धा करे तो धर्म थाय; ए सिवाय बहारथी कांई मळे तेम नथी.–आवुं भान करवुं ते
ज सीमंधरभगवाननी साची भक्ति छे ने ए भक्तिनुं फळ मुक्ति छे.
(सोनगढ प्रतिष्ठा महोत्सव प्रसंगे फागण सुद बीजना प्रवचनमांथी वी. सं. २४६७)
भगवानी भावना कोने जागे?
धर्मात्मा पोताना भावने जुए छे, पोताना भावमां राग टळीने वीतरागतानी वृद्धि केम थाय?
ते ज जुए छे. वीतरागताना निमित्त तो निमित्तने कारणे होय छे. अंदर पोते भगवान ज बेठो छे, ते
भगवानपणुं जेने गोठव्युं छे ते बाह्यमां वीतरागी प्रतिबिंबमां भगवानते स्थापे छे. पोताना भावनो
निक्षेप करीने कहे छे के ‘आ भगवान छे.’ त्यां भाव तो पोतानो छे ने! प्रतिष्ठा पछी ज्यारे सीमंधर
भगवान जिनमंदिरमां पधारता हता त्यारे भक्तो कहेता हता के पधारो... भगवान पधारो! हे
भगवान... आपने अमे अहीं पधरावीए छीए... एटले हवे अंदरथी आपना जेवुं स्वरूप छे ते प्रगट्ये
छूटको... बहारमां तो भगवाननी स्थापना छे ने अंदरमां साक्षात् भगवान छे.. जेने भावमां
भगवानपणुं गोठयुं छे ते निमित्तमां ‘आ भगवान छे’ एम स्थापे छे... ते अंदरना भगवानने
स्वीकारतो... भगवानपणुं प्रगट कर्या विना रहेशे नहि. अहो! जे क्षणे आत्मामां भगवानपणुं प्रगटे ते
घडी ने ते पळने धन्य छे... आवी भावना कोने जागे? –के जेने अंतरमां भगवान जेवो पोतानो
स्वभाव भास्यो होय तेने आवी भावना थाय, ने ते अल्पकाळे भगवान थया विना रहे नहि.
(–सोनगढ प्रतिष्ठा महोत्सवनां प्रवचनोमांथी)
प्रकाश पहेलांनी संध्या
चेतन जड न थाय ने जड चेतन न थाय. जडना स्वभावमां चेतनपणुं न होय ने चेतनना
स्वभावमां जडपणुं न होय. जडना संयोगे थतो विकार पण खरेखर चेतननो स्वभाव नथी. जेवा
सर्वज्ञदेव वीतराग बिंब छे तेवो ज आत्मानो स्वभाव छे. –आवा लक्षसहित वीतराग भगवाननी
भक्ति वगेरेनो राग आवे ते सवारनी संध्या जेवो छे. जेम सवारनी संध्या पाछळ सूर्य ऊगे छे ने
सांजनी संध्या पाछळ सूर्य अस्त थई जाय छे. तेम वीतरागताना लक्षपूर्वक भगवाननी भक्ति
वगेरेनो जे शुभराग छे ते सवारनी संध्या जेवो छे, तेनी पाछळ झळहळतो चैतन्य सूर्य ऊगवानो छे.
जेने वीतरागतानुं लक्ष नथी, वीतरागदेवनी भक्ति नथी अने एकला शरीरादि जडना रागने ज पोषे
छे तेने तो ते संध्या पाछळ अंधारुं आवशे, तेनाथी चैतन्यसूर्य ढंकाई जशे. ज्यां स्वभावनुं लक्ष छे
त्यां वर्तमान रागनी रातपनी मुख्यता नथी; पण, आ राग मारुं स्वरूप नथी–एम वीतरागस्वरूपना
लक्षे ते राग टळीने चैतन्यप्रकाश प्रगटशे ने पूर्ण केवळज्ञान थशे.
(–सोनगढ प्रतिष्ठा महोत्सवनां प्रवचनोमांथी)
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)