(१) भगवाननी भक्ति
वीतरागदेव तीर्थंकर भगवाननी साची स्तुति करनार जीव केवो होय! तेनी वात आ समयसारजीनी
तेना विषयभूत बाह्य पदार्थो तेमज ते तरफ वळता खंडखंडज्ञानरूप भावेन्द्रियो–ते मारुं स्वरूप नहि, हुं तो
अखंड ज्ञायक छुं–आम जे समजे ते जीव वीतरागप्रभुनी साची स्तुति करे छे. आ सिवाय परने, विकारने के
खंडखंडरूप ज्ञानने ज जे आत्मानुं स्वरूप माने तेणे वीतरागने ओळख्या नथी. वीतराग भगवाननो आत्मा
तो अतीन्द्रिय अखंडज्ञान–आनंदमय छे, तेमनी साची भक्ति करवा माटे तेवा आत्मस्वरूपने ओळखवुं तो
पडशे ने? ओळख्या विना भक्ति कोनी करशे? शुद्ध आत्मस्वरूपनी श्रद्धा अने ज्ञान करवा ते भगवाननी
पहेली स्तुति छे. जेवा भगवान छे तेना जेवो कांईक भाव पोतामां प्रगट करे तो ते भगवाननो भक्त कहेवाय
ने! भगवान ईन्द्रियोथी जाणता नथी माटे ईन्द्रियोथी भिन्न छे, रागरहित छे ने पूर्णज्ञानमय छे, एवो ज
पोतानो आत्मा छे, पोते भगवानथी जराय ऊणो के अधूरो नथी एवी श्रद्धाथी धर्मनी शरूआत थाय छे ने ते
ज भगवाननी भक्ति छे.
जे जीव धर्म करवा मागे छे तेने धर्म करीने पोतामां टकावी राखवो छे, पोते ज्यां रहे त्यां धर्म साथे ज
जाय. –माटे एवो धर्म न होय. धर्म तो अंतरमां आत्माना ज आश्रये छे, आत्मा सिवाय बहारना कोई
पदार्थना आश्रये आत्मानो धर्म थतो नथी. लोको भगवानना दर्शन करवा जाय त्यां एम मानी ल्ये छे के अमे
धर्म करी आव्या... केम जाणे भगवान पासे एनो धर्म होय! अरे भाई! जो बहारमां भगवानना दर्शनथी ज
तारो धर्म होय तो तो ते भगवानना दर्शन करे तेटलो वखत धर्म रहे ने त्यांथी खसी जतां तारो धर्म पण खसी
जाय.. एटले घरमां तो कोईने धर्म थाय ज नहि! जेवा भगवान वीतराग छे तेवो ज भगवान हुं छुं एम भान
करीने अंतरमां चैतन्यमूर्ति भगवानना सम्यक् दर्शन करे तो ते भगवानना दर्शनथी धर्म थाय छे, ने ए
भगवान तो ज्यां जाय त्यां साथे ज छे एटले ते धर्म पण सदाय रह्या ज करे छे. जो एकवार पण एवा
भगवानना दर्शन करे तो जन्म–मरण टळी जाय.
भगवाननी स्तुतिमां घणा कहे के ‘हे नाथ! हे जिनेन्द्र! आप पूर्ण वीतराग छो, सर्वज्ञ छो;’ परंतु
भगवाननी स्तुति करे तो ज ते साची स्तुति छे. अहीं भगवाननी प्रतिष्ठा थाय छे तेमां पण भगवाननी
भक्तिमां आवुं लक्ष राखवुं जोईए, जे आवुं लक्ष राखे तेणे ज खरेखर भगवानने स्थाप्या कहेवाय... तेणे
पोताना आत्मामां भगवाननी प्रतिष्ठा करी कहेवाय... ते अल्पकाळे साक्षात् भगवान थई जशे.
लोको धर्म करवानुं माने छे पण ज्ञानी तेने आत्मानी ओळखाण करवानुं कहे त्यारे ते कहे छे के कोण
तेने जाण्या वगर तुं धर्म कई रीते करीश? आत्माने जाण्या विना आत्मा तरफ वळीश कई रीते? अने आत्मा
तरफ वळ्या विना तने धर्म क्यांथी थशे? समज्या विना पुण्यमां धर्म मानी लईश तेमां तो ऊंधी द्रष्टिनुं पोषण
थशे. ज्ञानी धर्मात्माने भगवाननी भक्ति वगेरेनो भाव आवशे पण तेनी द्रष्टि