हृदयकमलमां दया अनंत उभराय जो...
वदनकमल पर प्रसन्नता प्रसरी रही...
चरणकमलमां भक्तिरस रेलाय जो...
अमारा आंगणे पधार्या... प्रतिष्ठा पछी भगवान ज्यारे जिनमंदिरमां पधारता हता त्यारे भक्तो कहेता हता के
‘पधारो.. हे नाथ! पधारो...’ ए भक्तो कांई गांडपणथी कहेतां न हता पण भक्तिना भावथी कहेता हता. –हे
नाथ! आप त्यां बिराजो अने अमे अहीं भरतमां रह्या... पण हे नाथ! अम भक्तोनी विनंति सूणीने आप
अहीं पधार्या... आम भावनाथी भगवान साथे वातुं करे! भगवानने ज्यारे मंदिरमां स्थापे छे त्यारे भक्तो
भावना करे छे के हे भगवान आत्मा! हवे अंदरमांथी तुं प्रगट था... आत्मामां भगवानने स्थाप्या हवे
भगवानपणुं प्रगट्ये ज छूटको... पोताना आत्मामां जेणे भगवानपणुं स्थाप्युं ते एक क्षण पण भगवानने केम
भूले? हे नाथ! हे. चैतन्यमूर्ति भगवान! आखी दुनिया भूलाय पण एक तने केम भूलाय? तारी
वीतरागताने एक क्षण पण न भूलुं. अज्ञानी जीव पोतानी वीतरागताने भूलीने साक्षात् तीर्थंकर भगवानना
समवसरणमां गयो, पण तेने कांई लाभ न थयो. पोते तत्त्वने न समजे तो भगवान पण शुं करे? जेम,
पारसमणिनो तो स्वभाव एवो छे के तेनो स्पर्श थतां लोढामांथी सोनुं थई जाय. पण जो लोढामां उपर काट
होय तो पारसमणि शुं करे? अहीं कुंदकुंदभगवान कहे छे के हे नाथ! आपनी पवित्रता पासे पुण्य तो धोया छे...
पुण्यवडे आपनी परमार्थस्तुति थई शकती नथी. शुद्ध ज्ञायक आत्मानी श्रद्धा, ज्ञान ने रमणता वडे ज आपनी
परमार्थस्तुति थाय छे. हे भगवान! आप तो पवित्र ने आपनी स्तुति पण पवित्र. जे जीव आत्माना
पवित्रस्वभावने ओळखे छे ते ज केवळीभगवाननां साचा गाणां गाय छे ने ते ज परमार्थस्तुति करे छे. जेने
पोताना गुणनी ओळखाण थई छे ते बीजा विशेष गुणवंतने देखीने तेना गुणनुं बहुमान करे छे ने पोते पण
तेवा गुण प्रगट करीने पूर्ण परमात्मा थाय छे; ए रीते भगवाननी साची भक्तिनुं फळ मुक्ति छे. –सोनगढ
प्रतिष्ठा महोत्सवना प्रवचनोमांथी.