Atmadharma magazine - Ank 090
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 20 of 21

background image
(अनुसंधान टाईटल पान २ थी चालु)
परने अने विकारने जाणे, तो परथी भिन्नपणानुं भान करीने अने क्षणिक विकारनो आश्रय छोडीने,
अभेद–स्वभावना आश्रये भेदज्ञान (–आत्मज्ञान) अने सम्यक्चारित्र थईने मुक्ति थाय छे. ‘आत्मानुं
हित करवुं छे’ एमां आ बधी वात आवी जाय छे. आ बधुं स्वीकार्या वगर आत्मानुं हित करवानी वात
रहेती नथी.
जगतमां जे छ द्रव्यो अथवा नव तत्त्वो स्वयंसिद्ध छे ते ज भगवाने ज्ञानमां जाणीने कह्यां छे,
पण भगवाने कांई कोई तत्त्वने नवा बनाव्या नथी. तेम ज भगवाने कह्यां माटे ते तत्त्वो छे एम पण
नथी. अने ते तत्त्वो छे माटे तेने लईने भगवानने ज्ञान थयुं एम पण नथी. जगतना तत्त्वो स्वतंत्र छे
ने भगवाननुं ज्ञान पण स्वतंत्र छे. फक्त ज्ञेयज्ञायकस्वभाव एवो छे के जेवो ज्ञेय पदार्थोनो स्वभाव
होय तेवो ज ज्ञानमां जणाय. एक तत्त्व बीजा तत्त्वनुं कांई करे नहि. भगवान आत्मा चिदानंद शुद्ध
स्वभाव छे. ते परनुं कांई करतो नथी
जो ‘जीव’ न होय तो कल्याण कोनुं करवुं?
जो ‘अजीव’ न होय तो जीवनी पर्यायमां भूल केम थाय?
जो जीवनी पर्यायमां पराश्रये थतो ‘विकार’ न होय तो कल्याण करवानुं केम रहे?
जो स्वाश्रये ते विकारदशा टळीने ‘अविकारीदशा’ न थती होय तो कल्याण क्यांथी थाय!
माटे जीव छे, अजीव छे, अजीवना आश्रये जीवनी पर्यायमां विकार छे, ने पोताना स्वभावना आश्रये
ते विकार टळीने निर्मळदशा थाय छे. ए रीते जीव, अजीव, विकार अने स्वभाव–ए चारे पडखांने बराबर
जाणीने स्वभावनो आश्रय करे तो अधर्म टळीने धर्म थाय छे. –आमां नवे तत्त्वो समाई जाय छे.
* * * * *
(अनुसंधान टाईटल पान ४ थी चालु)
(३) मोक्षमार्ग प्रकाशकनां किरणो : पं. टोडरमल्लजी कृत मोक्षमार्ग प्रकाशकना पहेला छ अध्याय
उपरनां पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनोनो केटलोक सार आमां प्रसिद्ध करवामां आव्यो छे. तद्न नवा अभ्यासीने
पण अनुकूळ पडे तेवुं आ पुस्तक छे. पू. गुरुदेवश्रीनी चमकदार वाणीमांथी लेवायेला विधविध प्रकारना १६३
लेखोथी आ पुस्तक एक सुंदर पाठय पुस्तक जेवुं बनी गयुं छे. तद्न नवी शरूआतवाळा के अभ्यासी, सर्वे
जिज्ञासुओए आ पुस्तकनो अभ्यास करवा जेवो छे. पृ. २०० किंमत : ०–१२–०
[हिंदीमां पण आ पुस्तक
छपायुं छे. तेनी किंमत १–६–० छे.]
(४) सम्यग्दर्शन: अनंतकाळथी कदी एक सेकंड पण प्राप्त नहि करेल एवुं अपूर्व सम्यग्दर्शन, –के जेने
एक सेकंड मात्र पण धारण करे तो जीवना अनंत जन्म मरणनो नाश थई जाय, तेने प्रगट करवानी रीत
बतावनारां जुदा जुदा प्रवचनोनो संग्रह आ पुस्तकमां छे. सम्यग्दर्शन शुं चीज छे ने केटलो अपूर्व तेनो महिमा
छे–ए वात समजवा माटे आ पुस्तक अति उपयोगी छे. ऊंडा जिज्ञासुओए जरूर स्वाध्याय करवा योग्य छे. पृ.
२१७ किं : १–४–० (हिंदीमां पण छपाय छे.)
(प) मुक्तिनो मार्ग : दरेक जैनोए जरूर वांचवा योग्य छे; साचुं जैनत्व क्यारे कहेवाय? पोताने ‘जैन’
एटले के ‘जैनेन्द्रनो भक्त’ कहेवडावनारनी जवाबदारी केटली?–ए वात पू. गुरुदेवश्रीनी तेजस्वी वाणी द्वारा
आ पुस्तक दर्शावे छे. आ पुस्तक घणुं ज सहेलुं छे, कोई पण प्राथमिक अभ्यासी सहेलाईथी वांची–समजी शके
तेवुं छे. बीजी आवृत्ति पृ. ७६ किंमत ०–९–०
[हिंदीमां पण छपायुं छे. किंमत ०–१०–० छे.)
उपरना बधा गुजराती पुस्तकोनी एकंदर किंमत रूा. २०–१–० थाय छे. आ बधां (नव)
पुस्तकोनो सेट एक साथे खरीद करनारने मात्र रूा. १६–०–० मां आपवामां आवशे. आ योजनानो लाभ
लेनार ‘आत्मधर्म’नो ग्राहक होवो जोईए. एक साथे पांच सेट खरीद करनारने रूा. ७५–०–० मां
आपवामां आवशे.
आ शास्त्रो द्वारा पवित्र तत्त्वज्ञानना अभ्यास वडे जिज्ञासुओ पोताना जीवननी पळोने सफळ
बनावे. श्री जैन स्वाध्याय मंदिर : सोनगढ सौराष्ट्र