: १३८ : आत्मधर्म : ९०
व्यवहारनुं साचुं ज्ञान थाय.
–एक सिद्धांतमां आ बधाय बोल समाई जाय छे.
पहेला बोलमां उत्पाद व्यय विना होतो नथी–एम कह्युं.
बीजा बोलमां व्यय उत्पाद विना होतो नथी–एम कह्युं.
‘मिथ्या श्रद्धानो नाश थयो छे पण हजी निःशंकता थई नथी’–एम न बने; केम के मिथ्याश्रद्धानो नाश
निःशंकतानी उत्पत्ति वगर होतो नथी. जे क्षणे परनी रुचि गई ते ज क्षणे स्वनी रुचि थई. अल्पज्ञतानो
अभाव ते सर्वज्ञताना उत्पादरूप छे.–ए प्रमाणे एकनो व्यय बीजाना उत्पाद सहित ज होय छे. नास्ति
अपेक्षाए मिथ्यात्वनो व्यय, अने अस्ति अपेक्षाए सम्यक्त्वनी उत्पत्ति; एकनी नास्ति थई ते बीजा भावनी
अस्ति बतावे छे. माटीमां पिंड अवस्था टळी अने त्यार पछीनी घडारूप अवस्था थई, ते बंने वच्चे भेद नथी;
एक भावनो अभाव ते त्यारपछीना भावनी उत्पत्तिवाळो छे. बीजा भावनी उत्पत्ति वगरनो विनाश होतो
नथी. एटले, कर्मनो नाश थाय तो मिथ्यात्वभाव टळे–एम कर्म सामे जोवानुं न रह्युं पण पोतानी पर्यायमां
सम्यक्त्वना उत्पाद वगर मिथ्यात्वनो व्यय नथी,–एटले पोताना परिणाममां जोवानुं आव्युं.
उत्पाद व्यय विना नहि ने व्यय उत्पाद विना नहि. पछीना भावनो जे उत्पाद छे ते ज पहेलांंना
भावनो विनाश छे; ने पहेलांना भावनो जे विनाश छे ते ज पछीना भावनो उत्पाद छे. –ए प्रमाणे बे
प्रकारथी उत्पाद–व्ययनुं अविनाभावीपणुं बताव्युं. हवे ‘उत्पाद–व्यय साथे धु्रवनुं अविनाभावीपणुं बतावे छे.
[३] जे उत्पाद अने व्यय छे ते ज धु्रव छे
माटीमां पिंडनो व्यय अने घडानो उत्पाद थाय छे ते ज माटीनी स्थिति छे, कारण के व्यतिरेको द्वारा ज
अन्वय प्रकाशे छे. व्यतिरेको एटले उत्पाद–व्यय; अने अन्वय एटले धु्रव, पिंडना व्ययथी ने घडाना उत्पादथी
माटीनुं सद्रश होवापणुं जणाय छे. पिंड अवस्था मटीने घडो थयो पण माटी देखाती नथी–एम न बने. माटीनी
धु्रवता विना घडानी उत्पत्ति अने पिंडनो व्यय शेमां थाय? धु्रवता वगर उत्पाद–व्यय थई शकता नथी.
अहीं तो कह्युं के उत्पाद–व्यय द्वारा ते पदार्थनी धु्रवता प्रकाशे छे. घडाना उत्पाद वडे माटीनी धु्रवता प्रकाशे छे,
पण घडाना उत्पाद वडे ‘कुंभारे घडो कर्यो’–एम प्रकाशतुं नथी. पुद्गलमां कर्म अवस्थानो व्यय अने बीजी
अवस्थानो उत्पाद थाय ते द्वारा पुद्गल–परमाणुनुं धु्रवपणुं जणाय छे, तेना द्वारा आत्मानो भाव जणातो नथी.
आत्मामां मिथ्यात्वनो व्यय अने सम्यक्त्वनो उत्पाद थयो ते द्वारा आत्मानी धु्रवता जणाय छे; पण कर्मनो नाश
थयो ते द्वारा आत्मानी धु्रवता जणाती नथी. दरेक वस्तुमां पोताना उत्पाद–व्यय–धु्रव एक साथे ज होय छे.–आ
समजे तो पदार्थनुं भेदज्ञान थई जाय छे, अने क्यांय परमां घालमेल करवानुं मिथ्या–अभिमान टळी जाय छे.
वस्तुमां उत्पाद–व्यय ने धु्रव ए त्रणे एक साथे छे; पूर्व पर्यायथी व्ययरूप, वर्तमान पर्यायपणे उत्पादरूप
अने पहेला–पछीना सळंग प्रवाहमां द्रव्यपणानी धु्रवता छे. उत्पाद अने व्यय बंनेनो समय भिन्न नथी, पण एकनो
व्यय ते बीजानो उत्पाद छे–एम तेमनामां व्यतिरेकपणुं छे; ने ते व्यतिरेकोमां अन्वयपक्षे रहेलुं द्रव्य ध्रुव छे. ‘आ ते
ज छे, एवुं धु्रवपणुं उत्पाद–व्यय द्वारा जणाय छे.
त्रण प्रकार कह्या, हवे चोथा प्रकारमां धु्रव साथे उत्पाद–व्ययनुं अविनाभावीपणुं बतावे छे.
[४] जे धु्रव (–स्थिति) छे ते ज उत्पाद अने व्यय छे.
माटीनी जे धु्रवता छे ते ज घडानो उत्पाद अने पिंडनो व्यय छे, कारण के धु्रवने छोडीने उत्पाद व्यय थता
नथी. धु्रव उत्पाद–व्यय वगरनुं होतुं नथी. ज्यां धु्रवता होय त्यां एक पर्यायनो उत्पाद ने पूर्वपर्यायनो व्यय
थाय छे. धु्रव वस्तु छे पण कोई अवस्था नथी–एम न बने. धु्रव टकती वस्तुमां कोई नवी अवस्थानो उत्पाद
अने जुनी अवस्थानो व्यय थाय ज. उत्पाद–व्यय वगर एकलुं धु्रव न होय. धु्रवने छोडीने–धु्रवथी जुदा एकला
उत्पाद–व्यय न थाय. द्रव्यनी ध्रुवता रहीने उत्पाद–व्यय थाय छे. *
ए प्रमाणे उत्पाद व्यय ने धु्रव त्रणे एक साथे ज छे. जो एम न मानवामां आवे ने उत्पाद–व्यय–धु्रव
ए त्रणेने एक बीजा वगरना–भिन्न भिन्न ज मानवामां आवे तो तेमां दोषो आवे छे. शुं दोष आवे छे ते हवे
बतावशे.