Atmadharma magazine - Ank 090
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४७७ : १३७ :
परिणामना उत्पाद–व्यय–धु्रवनो आधार जे द्रव्य छे ते द्रव्य उपर रुचि जाय छे, तेनी आ वात छे.
कोई माणस एम कहे के ‘अमुक माणस पहेलांं मारुं नहोतो मानतो अने हवे माने छे.’ तो त्यां ते
माणसमां मानवानी पर्यायनो भाव थयो, तेमां ‘नहि मानवाना भाव’ नो अभाव थयो, अने माणसपणे ते
धु्रव रह्यो. ए रीते वस्तुमां उत्पाद–व्यय–धु्रव त्रणे एक बीजानी साथे ज होय छे.
एक पदार्थना उत्पाद–व्ययने लीधे बीजा पदार्थनी पर्यायना उत्पाद–व्यय थाय–एम नथी.
पुद्गलमां मिथ्यात्व कर्मनो व्यय थयो माटे अहीं जीवनी पर्यायमां मिथ्यात्व टळ्‌युं–एम नथी. पण पोतानी
पर्यायमां सम्यक्त्वनो उत्पाद थयो ते ज मिथ्यात्वना व्यय स्वरूप छे; सम्यक्त्वनो उत्पाद मिथ्यात्वना व्यय
विना होतो नथी. एक साथे बे अवस्था रहेती नथी, पण बीजी अवस्था थतां पहेली अवस्थानो अभाव
थई जाय छे. सिद्ध पर्याय थाय ने संसार पर्याय पण रहे एम न बने, पण सिद्ध पर्याय थतां संसार
पर्यायनो ते ज वखते व्यय थई जाय छे. वीतराग पर्याय थाय ने रागपर्याय पण रहे–एम न बने,
वीतराग पर्यायमां रागपर्यायनो अभाव छे.
कोई कहे के–‘थोडोक राग ने थोडीक वीतरागता एम तो साधकने बने छे? ’ –तो तेनुं समाधान: त्यां
उत्पादरूप पर्याय एक ज छे, ने ते पर्यायमां पूर्वनी पर्यायनो अभाव छे. एकली रागपर्याय ल्यो तो ते
रागपर्यायमां पण तेनी पहेलांना रागनो तो अभाव ज छे. जे नवी पर्याय उत्पन्न थई ते पूर्व पर्यायनो व्यय
थईने थई छे; एटले के वर्तमान पर्यायनो उत्पाद पूर्वपर्यायना व्यय स्वरूप छे.
स्वभावनी रुचि उत्पन्न थतां विभावनी रुचि टळी ज जाय छे. ए प्रमाणे बीजा भावनो उत्पाद
पहेला भावना व्यय वगर होतो नथी. स्वभावनी सम्यक् रुचिना उत्पाद वखते तेनी साथे विकारनी
रुचिनो पण उत्पाद भेगो न होई शके. रुचि तो सम्यक्त्व गुणनी पर्याय छे ने आसकितनो राग ते तो
चारित्र गुणनी पर्याय छे,–एम गुण भेद छे; ने दरेक गुणनो उत्पाद स्वतंत्र छे; माटे परिणामना उत्पादमां
स्वभावनी रुचि अने आसकितनो राग–ए बंने तो साधकने एक साथे होई शके; पण सम्यकरुचि अने
मिथ्यारुचि–एम एक ज गुणनी बे पर्यायो एक साथे उत्पादरूप न होय. पण एकनो व्यय थईने बीजी
पर्यायनो उत्पाद थाय छे. सम्यक्त्वगुणनी पर्यायमां सवळी रुचि अने ऊंधी रुचि ए बंनेनो उत्पाद एक
साथे न होय, पण ऊंधी रुचिना व्ययपूर्वक सवळी रुचिनो उत्पाद होय छे. आ रीते एकनो उत्पाद ते
बीजानो (–पूर्वनो) व्यय छे. माटीमां घडारूपी अवस्थानी जे उत्पत्ति छे ते ज पिंडरूप अवस्थानो विनाश
छे. घडानी उत्पत्ति अने पिंडनो विनाश–ए बंने जुदा जुदा नथी. एटले पछीनी पर्यायनो जे उत्पाद छे ते
पहेलांंनी पर्यायना व्यय स्वरूप ज छे.
आ रीते, उत्पाद साथे व्ययनुं अविनाभावीपणुं बतावीने पहेलो बोल कह्यो.
हवे बीजा बोलमां, व्यय साथे उत्पादनुं अविनाभावी पणुं बतावे छे.
[] जे व्यय छे ते ज उत्पाद छे
व्यय उत्पाद विना होतो नथी. पूर्वनी पर्यायनो व्यय नवी पर्यायना उत्पाद वगरनो होय नहि. पहेली
पर्यायनो व्यय ते बीजी पर्यायना उत्पाद स्वरूप छे. माटीना पिंडनो जे व्यय छे ते ज घडानो उत्पाद छे. कोई कहे
के ‘आत्मामांथी अज्ञाननो नाश तो थयो छे पण हजी साचुं ज्ञान प्रगट्युं नथी.’–तो तेनी ए वात खोटी छे;
तेणे वस्तुना उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावने जाण्यो नथी.
आ उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावना निर्णयमां तो समय समयना उपादाननी स्वतंत्रतानुं ज्ञान छे. अहीं
घडो थवानी वातमां कुंभारने तो याद पण कर्यो नथी; केम के अहीं वस्तुस्वभावनी वात छे, तेथी घडो माटीना
उत्पाद स्वभावथी थाय छे ए ज वात लीधी. आम उपादाननी स्वतंत्रताने जाणे तो ज संयोगरूप निमित्तने
जाणी शके.
जो पोताने जोवानी आंख ऊघडे तो पछी बीजाने जोई शके; तेम जो उपादानने ओळखे तो ज निमित्तने
ओळखे;स्वप्रकाशक ज्ञान थाय तो ज ते परने जाणी शके; स्वभावने जाणे तो ज संयोगने जाणी शके; द्रव्य तरफ
वळे तो ज पर्यायने जाणी शके. निश्चयने जाणे तो ज