: १३६ : आत्मधर्म : ९०
व्यय ने धु्रव एक बीजा वगर होतां नथी. परंतु परनी साथे तो तेने कांई संबंध नथी.
आ तो समय समयना उत्पाद–व्यय–धु्रवनी सूक्ष्म वात छे. वस्तुना उत्पाद–व्यय–धु्रव स्वभावने
समजतां, पोताने पर सामे जोवानुं रहेतुं नथी; पोते पोताना परिणामने जोवा जतां ज्ञान अंतरमां परिणामी
स्वभाव तरफ वळे छे; ने ते परिणामी–धु्रवद्रव्यना आश्रये वीतरागी–परिणामोनो प्रवाह थया करे छे.
दरेक द्रव्य पोते ज सत् छे एटले तेना स्वभावथी ज ते उत्पाद–व्यय–धु्रववाळुं छे,–आम नक्की कर्युं त्यां, एक
द्रव्य बीजा द्रव्यमां कांई न करी शके–ए वात पण आवी ज गई. आत्मा बीजानुं कांई करी शकतो नथी एम समजतां
ज बीजानी सामे जोवानुं रहेतुं नथी पण पोताना द्रव्य सामे जोवानुं आवे छे. परनी सामे जोईने ‘हुं परनुं करी
शकतो नथी’–एम यथार्थ न मानी शकाय, पण परनी सन्मुखताथी खसीने पोताना तरफ वळे त्यारे ज ‘परनुं हुं
नथी करी शकतो’–एम खरेखर मान्युं कहेवाय. ‘परनुं हुं नथी करतो ने मारा परिणामने पर नथी करतुं, तो मारा
परिणामने कोण करे छे?–क्यांथी परिणामो आवे छे?’–एम नक्की करतां अंदरमां ज्यांथी परिणाम आवे छे एवा
धु्रव सामे जोवानुं रह्युं. एटले, पोताना परिणाम पोताथी ज थाय छे–एम माननारनी द्रष्टि धु्रवद्रव्य उपर पडी छे.
धु्रव सामे जोतां ज सम्यक् पर्यायनो उत्पाद थाय छे, ने ते उत्पाद मिथ्यापर्यायनो व्ययस्वरूप छे. जो धु्रव सामे न
जुए तो मिथ्यापर्यायनो उत्पाद थाय छे. वस्तुस्वभाव समजतां धु्रवस्वभावनी द्रष्टिथी सम्यक्–वीतरागी पर्यायोनो
उत्पाद थाय ते ज तात्पर्य छे.
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दरेक पदार्थ समये समये उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वरूप छे; जो ते उत्पाद–व्यय–धु्रव त्रणेने एक साथे ज न
मानो तो वस्तु ज सिद्ध थती नथी. वस्तुना पोताना उत्पाद–व्यय ने धु्रव एक बीजा वगर न होय, पण पर
वस्तुना उत्पाद–व्यय–धु्रवनी साथे तेने कांई संबंध नथी.–आम समजे तो पर साथेना कर्तापणानी मान्यता छूटी
जाय ने पोताना समय समयना परिणामनी स्वतंत्रता माने; अने, समय समयना परिणाम परिणामी–
द्रव्यमांथी आवे छे एटले परिणामी–द्रव्य उपर द्रष्टि जतां सम्यक्त्वनो उत्पाद तथा मिथ्यात्वनो व्यय थई जाय
छे. ते धर्म छे.–ए रीते धर्मनी आ वात चाले छे.
उत्पाद व्यय वगर होतो नथी,
व्यय उत्पाद वगर होतो नथी,
उत्पाद अने व्यय धु्रव वगर होता नथी,
धु्रव उत्पाद अने व्यय वगर होतुं नथी.
जे उत्पाद छे ते ज व्यय छे,
जे व्यय छे ते ज उत्पाद छे,
जे उत्पाद अने व्यय छे ते ज धु्रव छे.
जे धु्रव छे ते ज उत्पाद अने व्यय छे.
ए प्रमाणे वस्तुमां उत्पाद–व्यय ने धु्रव त्रणे एक साथे ज होय छे.–कई रीते? ते बताववा माटे अहीं
माटीनुं द्रष्टांत आपे छे.
माटीमां जे घडानो उत्पाद छे ते ज पूर्वनी पिंडदशानो व्यय छे; जे पिंडनो व्यय छे ते ज घडानो उत्पाद
छे; जे घडानो उत्पाद ने पिंडनो व्यय छे ते ज माटीनी धु्रवता छे; अने जे माटीनी धु्रवता छे ते ज घडानो उत्पाद
अने पिंडनो व्यय छे.–ए रीते दरेक द्रव्यमां उत्पाद–व्यय ने धु्रव एक साथे ज वर्ती रह्यां छे.
अहीं आचार्यदेव ते वात विस्तारथी समजावे छे.
[१] जे उत्पाद छे ते ज व्यय छे : माटीमां घट अवस्थानो जे उत्पाद छे ते ज पिंड अवस्थानो व्यय छे;
कारणके भावनुं भावांतरना अभाव स्वभावे अवभासन छे. भावनुं एटले के वर्तमान उत्पादनुं भावांतरना
एटले के पूर्व पर्यायना, अभाव स्वभावे एटले के व्ययरूपे अवभासन थाय छे–जणाय छे; एक भावनी उत्पत्ति
थई ते तेनी पहेलांना भावनो नाश थईने थाय छे. अहीं ए ध्यान राखवुं के वर्तमान पर्यायनो उत्पाद ते वर्तमान
पर्यायना ज व्ययरूप नथी, पण वर्तमान पर्यायनो उत्पाद ते पूर्व पर्यायना व्ययरूप छे. मोक्षभावनो उत्पाद थयो ते
संसार भावना अभाव स्वरूप छे: सम्यग्ज्ञानरूप भाव प्रगट्यो ते अज्ञानभावना अभाव स्वरूपे छे; ज्ञान
पर्यायनो उत्पाद थाय अने तेमां पूर्वनी अज्ञान पर्याय पण रहे–एम कदी बनतुं नथी. दरेक परिणाम उत्पाद–व्यय–
धु्रव स्वरूप छे.
आ प्रमाणे एकेक समयना दरेक परिणामना उत्पाद–व्यय–धु्रवनी स्वतंत्रताने समजे तो, समय समयना