Atmadharma magazine - Ank 090
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४७७ : १३५ :
उत्पाद व्यय
धु्रव स्वभाव
कारतक वद १३ गुरुवार प्रवचनसार गा. १०० उपर पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन
९९ मी गाथामां वस्तुना उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावने अलौकिक रीते सिद्ध कर्यो. हवे, ते उत्पाद–व्यय–धु्रव
एक बीजा वगर होता नथी, पण एक साथे ज त्रणे होय छे–ए वातने १०० मी गाथामां द्रढ करे छे–
उत्पाद भंग विना नहि, संहार सर्ग विना नहि;
उत्पाद तेमज भंग, ध्रोव्य–पदार्थ विण वर्ते नहि. १००
उत्पाद भंग विनानो होतो नथी;
भंग उत्पाद विनानो होतो नथी; अने उत्पाद तेम ज भंग ए बंने, धु्रव पदार्थ विना होता नथी.
वस्तुना समय समयना परिणाममां उत्पाद–व्यय–धु्रवनी आ वात छे. आत्मामां सम्यक्त्वनो उत्पाद
मिथ्यात्वना व्यय वगर होतो नथी, मिथ्यात्वनो नाश सम्यक्त्वना उत्पाद वगर होतो नथी; अने सम्यक्त्वनो
उत्पाद तथा मिथ्यात्वनो व्यय–ए बंने, आत्मानी धु्रवता वगर होता नथी. आत्मवस्तुमां सम्यक्त्वनो उत्पाद,
मिथ्यात्वनो व्यय अने सळंग प्रवाह अपेक्षाए आत्मानी धु्रवता छे, ए प्रमाणे दरेक वस्तुमां उत्पाद–व्यय–धु्रव
त्रणे साथे ज होय छे.
आत्मामां साची समजणनो उत्पाद थाय ने भ्रमणानो व्यय न थाय–एम न बने. स्वभावनी साची
समजण अत्यारे थाय ने भ्रमणा पछी टळे–एम बनतुं नथी. स्वभावनी रुचि थाय ने परनी रुचि न टळे एम
बने नहि. मिथ्यात्वना व्यय वगर सम्यक्त्वनो उत्पाद होतो नथी. संसार दशाना नाश वगर सिद्ध दशानो
उत्पाद होतो नथी. सिद्धदशानो उत्पाद ते संसारदशाना व्ययस्वरूप छे. स्वभावनी रुचिनो उत्पाद थतां पुण्य–
पापनी रुचिनो व्यय थाय छे एटले जे सम्यक् रुचिनो उत्पाद छे ते ज मिथ्या रुचिनो व्यय छे. अने बधाय
परिणाम वखते द्रव्य अपेक्षाए धु्रवता छे. आ प्रमाणे वस्तुमां दरेक समये उत्पाद–व्यय–धु्रव एक साथे ज होय
छे, उत्पाद, व्यय ने धु्रव एक बीजा वगर होतां नथी.
द्रव्यना जे परिणाममां सम्यक्त्वनो उत्पाद छे ते ज परिणाममां मिथ्यात्वनो व्यय छे. सम्यक् श्रद्धापणे
द्रव्यनो जे उत्पाद छे ते ज मिथ्यात्वपणे विनाश छे; ए रीते जे उत्पाद छे ते ज व्यय छे. जे वखते जे परिणाम
उत्पाद रूप छे ते वखते तो ते उत्पादरूप ज छे, ते पोते कांई व्ययरूप नथी, पण पूर्व परिणाम अपेक्षाए ते
व्ययरूप छे. एकने एक अपेक्षाए एक परिणाममां उत्पाद–व्यय न कहेवाय. वर्तमान परिणाम अपेक्षाए
द्रव्यनो जे उत्पाद छे ते ज पूर्व परिणाम अपेक्षाए द्रव्यनो व्यय छे, अने द्रव्यपणानी अपेक्षाए द्रव्य धु्रव छे,–ए
रीते, द्रव्यना उत्पाद–व्यय ने धु्रव त्रणे भिन्न भिन्न नथी पण अविनाभावी छे.
अहीं उत्पाद–व्यय ने धु्रव त्रणेनुं अविनाभावीपणुं कहीने द्रव्य अपेक्षाए एकता बतावे छे, ने १०२ मी
गाथामां उत्पाद–व्यय–धु्रवने समयभेद नथी एम कहीने काळ अपेक्षाए तेमनी एकता बतावशे. अहीं कहे छे के
जे उत्पाद छे ते ज व्यय छे, ने जे उत्पाद–व्यय छे ते ज स्थिति छे. गाथा १०२मां कहेशे के जे क्षणे उत्तर
पर्यायनो उत्पाद छे ते ज क्षणे पूर्व पर्यायनो व्यय छे, ने ते ज क्षणे द्रव्यपणानी धु्रवता छे.
परिणाम परिणामीनां छे; परिणामीने जोया विना परिणामने जोवाय नहि; परिणामना उत्पाद–व्यय–
धु्रवने जोनारनी द्रष्टि परिणामी द्रव्य उपर जाय छे. अने द्रव्य–द्रष्टिमां वीतरागी तात्पर्य सिद्ध थई जाय छे.
दरेक पदार्थ सत् छे, ते पदार्थ पोते पोताना उत्पाद व्यय–धु्रवने करे छे, बीजो कोई पदार्थ तेना उत्पाद–
व्यय–धु्रवने करतो नथी. कुंभार घडानी उत्पत्ति करे ए तो वात ज नथी केम के घडो ते माटीनो उत्पाद छे, तेमां
माटी वर्ते छे, कांई कुंभार तेमां नथी वर्ततो, कुंभारना उत्पाद–व्यय–धु्रव कुंभारमां छे, ने घडो वगेरेना उत्पाद–
व्यय–धु्रव माटीमां छे. घडानी रचनापणे कोण ऊपज्युं?–माटी के कुंभार? घडानी रचनापणे माटी ज ऊपजी छे,
कुंभार कांई घडानी रचनापणे नथी ऊपज्यो. ‘कुंभार न होय तो घडो न थाय’ एम अहीं कुंभार अने घडानुं
अविनाभावीपणुं नथी लीधुं, केम के ते तो बंने स्वतंत्र सत् छे. अहीं तो, माटीमां घडानी उत्पत्ति पिंडना व्यय
वगर होय नहि एम कहीने सत्मां उत्पाद–व्यय धु्रवनुं अविनाभावीपणुं बतावे छे. ए प्रमाणे जगतना बधा
सत् पदार्थोमां पोताना उत्पाद,