जे जीवननी एकेक पळ आत्मार्थ खातर ज वीतती होय, जेनी एकेक पळ
थवानी नजीक लई जती होय ते जीवन धन्य छे....कृतकृत्य छे.
–एवुं कृतकृत्य जीवन संतना शरण वगर बनतुं नथी; जे परम संतोना शरणे
Atmadharma magazine - Ank 091
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).
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