Atmadharma magazine - Ank 091
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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९१
: संपादक:
वकील रामजी माणेकचंद दोशी
“धन्य ते जन्म”
जन्मरहित थवा माटे जे जन्म थयो ते जन्म सफळ छे.
जे जीवननी एकेक पळ आत्मार्थ खातर ज वीतती होय, जेनी एकेक पळ
संसारने छेदवा माटे छीणीनुं कार्य करी रही होय, जेनी एकेक पळ आत्माने सिद्ध
थवानी नजीक लई जती होय ते जीवन धन्य छे....कृतकृत्य छे.
अहा! संतो एवुं कृतकृत्य जीवन जीवे छे.
–एवुं कृतकृत्य जीवन संतना शरण वगर बनतुं नथी; जे परम संतोना शरणे
एवुं जीवनघडतर थाय छे ते संतो जयवंत हो....तेमने परम भक्तिथी नमस्कार हो.