थई, एक भवमां जे तारी स्त्री हती ते ज बीजा भवे तारी माता थई, एक भवे जे तारो बंधु हतो ते ज बीजा
भवे तारो दुश्मन थयो....अहो! धिक्कार छे आवा संसारने....आवो संसार हवे अमारे स्वप्नमां पण जोतो नथी....
आ संसारभावने धिक्कार छे के जेमां, जेने पेटे सवा नव महिना रहीने माता तरीके स्वीकारी होय तेने ज बीजा
भवमां स्त्री तरीके भोगववानुं थाय... अरे! आ संसार! अनंतकाळ आत्मभान वगर आवा संसारमां
रखड्या....हवे अमे आ संसारमां फरीथी अवतरवाना नथी. अमे आत्माना भान सहित तो अवतर्या ज छीए ने
हवे आ भवे मोक्ष पामवाना छीए....हवे फरीथी आ संसारमां नवो देह धारण करवाना नथी....
क्यांथी होय? चैतन्यस्वरूप तरफ वलणना जोरमां शांतिनाथ भगवान भव–तन ने भोगथी उदास–उदास
थई गया छे; स्मशाननी चेहमां पडेला मडदानी शोभानी जेम उदास छे अर्थात् जेम स्मशाननी चेहमां
पडेला मडदाने कोई हार वगेरेथी शणगारे तो त्यां कांई मडदुं प्रसन्न थतुं नथी, केम के मोह करनारो अंदरथी
चाल्यो गयो छे. तेम भगवाननो आत्मा आखा संसारथी उदासीन थई गयो छे, केम के अंदरना मोहनुं
मृत्यु थई गयुं छे. अमारा चैतन्यना आनंद पासे अमने आ पुण्य–पाप के शरीर भोग वगेरे सारा लागता
नथी, जागृत चैतन्यनी सत्ता पासे तो ए बधा मडदां जेवां लागे छे.–आवा भानसहित भगवान
एवा त्रण गुण छे. जेम अग्नि पाचकगुण वडे
अनाजने पकावे छे तेम आत्मा पोताना श्रद्धा गुण वडे
शके छे. जेम अग्नि पोताना प्रकाशगुण वडे स्व–परने
प्रकाशे छे तेम आत्मा पोताना ज्ञानगुणवडे स्व–परनो
प्रकाशक छे–स्व–परने जाणे छे. अने जेम अग्नि
पोताना दाहक गुणवडे दाह्यने बाळे छे तेम आत्मा
पोताना चारित्रगुणवडे विकारी भावोनो सर्वथा नाश
करे छे. आ प्रमाणे अग्निना द्रष्टांते आत्माना श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्रस्वभावने समजवो. सम्यक् श्रद्धा, ज्ञान
अने अंर्तचारित्रनी एकताथी ज धर्म छे.
रागनुं–विकारनुं–संसारपक्षनुं बहुमान करशे. स्वरूपना
भानवाळो तो निःशंकपणे पूर्णने (साध्यने) नमस्कार
पूर्णने पहोंची जाय छे. एक समयमां त्रणकाळ त्रणलोकने
जाणवानुं सामर्थ्य शक्तिरूपे एकएक आत्मामां छे; एवा
अनंत आत्मा छे, दरेक आत्मा परथी जुदो, एकलो सर्वज्ञ
छे. त्रिकाळी द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावमय अनंत पदार्थोने सर्व
रीते जाणे एवुं दरेक जीवद्रव्यनुं सामर्थ्य छे. एकएक
समयमां त्रणेकाळ त्रणेलोक केवळज्ञानमां सहेजे
जणाय....सर्वज्ञस्वभावनी हा पाडनार, वर्तमान अधूरा
ज्ञान उपरथी आखानो निर्णय निःसंदेह तत्त्वमांथी लावे छे.