Atmadharma magazine - Ank 091
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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संसारनी स्थिति अने
धर्मात्मानी निःशंकता
(दीक्षाकल्याणकना प्रवचनमांथी)
आ संसारमां अज्ञानपणे रखडतां पूर्व भवनी माताने स्त्री तरीके तें अनंतवार भोगवी,–अरे जीव! स्वर्ग–
नरकनां ने कीडा–कूतरानां अनंत भवो तें कर्यां. तेमां एक भवमां जे तारी माता हती ते ज बीजा भवमां तारी स्त्री
थई, एक भवमां जे तारी स्त्री हती ते ज बीजा भवे तारी माता थई, एक भवे जे तारो बंधु हतो ते ज बीजा
भवे तारो दुश्मन थयो....अहो! धिक्कार छे आवा संसारने....आवो संसार हवे अमारे स्वप्नमां पण जोतो नथी....
आ संसारभावने धिक्कार छे के जेमां, जेने पेटे सवा नव महिना रहीने माता तरीके स्वीकारी होय तेने ज बीजा
भवमां स्त्री तरीके भोगववानुं थाय... अरे! आ संसार! अनंतकाळ आत्मभान वगर आवा संसारमां
रखड्या....हवे अमे आ संसारमां फरीथी अवतरवाना नथी. अमे आत्माना भान सहित तो अवतर्या ज छीए ने
हवे आ भवे मोक्ष पामवाना छीए....हवे फरीथी आ संसारमां नवो देह धारण करवाना नथी....
जुओ तो खरा, आ धर्मात्मानी निःशंकता! भगवान शांतिनाथ प्रभु कहे छे के आ संसारना रागने छोडीने
आजे अमे अमारा चारित्रधर्मने अंगीकार करीशुं.....ने आ ज भवे पूर्ण परमात्मा थईशुं....हवे अमे बीजो भव
करवाना नथी. जीवने अनंत संसारमां रखडतां नहि पामेल एवी एक मुक्तिदशा ज छे, तेने हवे अमे प्राप्त करशुं.
जुओ, अंतरमां चैतन्यस्वभाव तरफ जोरपूर्वकनी आ भावना छे. सम्यग्द्रष्टि सिवाय बीजाने तो,
तीर्थंकर भगवाने केवी भावना भावी हती ते भावनानुं स्वरूप समजवुं पण मुश्केल छे, तेने साची भावना
क्यांथी होय? चैतन्यस्वरूप तरफ वलणना जोरमां शांतिनाथ भगवान भव–तन ने भोगथी उदास–उदास
थई गया छे; स्मशाननी चेहमां पडेला मडदानी शोभानी जेम उदास छे अर्थात् जेम स्मशाननी चेहमां
पडेला मडदाने कोई हार वगेरेथी शणगारे तो त्यां कांई मडदुं प्रसन्न थतुं नथी, केम के मोह करनारो अंदरथी
चाल्यो गयो छे. तेम भगवाननो आत्मा आखा संसारथी उदासीन थई गयो छे, केम के अंदरना मोहनुं
मृत्यु थई गयुं छे. अमारा चैतन्यना आनंद पासे अमने आ पुण्य–पाप के शरीर भोग वगेरे सारा लागता
नथी, जागृत चैतन्यनी सत्ता पासे तो ए बधा मडदां जेवां लागे छे.–आवा भानसहित भगवान
चारित्रदशा अंगीकार करे छे.
अग्नि अने आत्मा
अग्निमां पाचक, प्रकाशक अने दाहक एवा
त्रण गुण छे तेम आत्मामां श्रद्धा, ज्ञान अने चारित्र
एवा त्रण गुण छे. जेम अग्नि पाचकगुण वडे
अनाजने पकावे छे तेम आत्मा पोताना श्रद्धा गुण वडे
पोताना आखा शुद्धस्वभावने पचावी शके छे–जीरवी
शके छे. जेम अग्नि पोताना प्रकाशगुण वडे स्व–परने
प्रकाशे छे तेम आत्मा पोताना ज्ञानगुणवडे स्व–परनो
प्रकाशक छे–स्व–परने जाणे छे. अने जेम अग्नि
पोताना दाहक गुणवडे दाह्यने बाळे छे तेम आत्मा
पोताना चारित्रगुणवडे विकारी भावोनो सर्वथा नाश
करे छे. आ प्रमाणे अग्निना द्रष्टांते आत्माना श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्रस्वभावने समजवो. सम्यक् श्रद्धा, ज्ञान
अने अंर्तचारित्रनी एकताथी ज धर्म छे.
जुओ, समयसार–प्रवचनो भाग १ पृ. ८१.
परमात्मानी भक्ति
पूर्ण स्वाधीनस्वरूपना भान विना परमात्मानी
भक्ति थई शके नहि; परमात्मानी ओळखाण विना
रागनुं–विकारनुं–संसारपक्षनुं बहुमान करशे. स्वरूपना
भानवाळो तो निःशंकपणे पूर्णने (साध्यने) नमस्कार
करतो, अखंडपणे अखंड सत्ना बहुमान (–भक्ति) वडे
पूर्णने पहोंची जाय छे. एक समयमां त्रणकाळ त्रणलोकने
जाणवानुं सामर्थ्य शक्तिरूपे एकएक आत्मामां छे; एवा
अनंत आत्मा छे, दरेक आत्मा परथी जुदो, एकलो सर्वज्ञ
छे. त्रिकाळी द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावमय अनंत पदार्थोने सर्व
रीते जाणे एवुं दरेक जीवद्रव्यनुं सामर्थ्य छे. एकएक
समयमां त्रणेकाळ त्रणेलोक केवळज्ञानमां सहेजे
जणाय....सर्वज्ञस्वभावनी हा पाडनार, वर्तमान अधूरा
ज्ञान उपरथी आखानो निर्णय निःसंदेह तत्त्वमांथी लावे छे.
–समयसार–प्रवचनो भाग–१ पृ. १०–११.