Atmadharma magazine - Ank 091
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARM Regd. No. B 4787
प्राथमिक भूमिकाना जिज्ञासुओने खास उपयोगी
धार्मिक साहित्य
आ दुर्लभ मानव–जीवन पामीने जे जीवोने अंतरमां आत्मकल्याणनी कंई पण जिज्ञासा जागी छे एवा
पात्र जीवोनुं सौथी पहेलुं कर्तव्य ए छे के ज्ञानी पुरुषना सत्समागमे सत्य तत्त्वज्ञाननो निर्णय करवो. जे जीवो
सत्समागममां कायम रही न शकता होय ते जीवोए प्रतिदिन सत्पुरुषनी वाणीनुं मंथन करवुं जोईए,
गृहावासमां फसेला जीवोने माटे सत्पुरुषना वचनोनुं अंतर्मंथन ए संजीवनी समान छे.
सत्पुरुषनी वाणीना श्रवणनुं सौभाग्य प्राप्त थवुं बहु ज दुर्लभ छे... आ काळे जिज्ञासुओना प्रबळ पुण्योदये
पू. गुरुदेवश्रीनी परमकल्याणकारी देशनानो लाभ मुमुक्षुओने निरंतर मळी रह्यो छे. आत्मस्वभावने दर्शावनारी
ए पवित्र वाणीनो लाभ भारतना अने भारतनी बहारना, हजारो जिज्ञासुओ मेळवी शके ते माटे ते पवित्र
वाणी श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी प्रकाशित थाय छे. अत्यार सुधीमां पप उपरांत पुस्तकोनुं प्रकाशन थई
गयुं तेमांथी प्राथमिक भूमिकावाळा जिज्ञासुओने उपयोगी केटलांक प्रकाशनोनी विगत अहीं आपी छे–
(१) समयसार–प्रवचनो
दरेक आत्मा स्वभावसामर्थ्यथी अत्यारे ज सिद्ध भगवान जेवो छे, तेनुं ए स्वरूप समजावीने सिद्ध–
पणाना लक्षे धर्मनी शरूआत करावनारी पू. गुरुदेवश्रीनी वाणी आ प्रवचनो रूपे छपाई छे. धर्मनी शरूआत
करवाना कामी दरेक जिज्ञासुओए समयसार प्रवचनो अवश्य वांचवा जोईए. समयसार प्रवचनोना चार भाग
छपाया छे, पांचमो भाग छपाय छे. बीजा भागनी किंमत रूा. २–०–० छे. बाकीना दरेक भागनी किंमत ३–०–० छे.
समयसार–प्रवचनोना चोथा भागमां कर्ताकर्म अधिकार उपरनां प्रवचनो छे. जीव शुं कार्य करी शके छे ने
शुं नथी करी शकतो? धर्मी जीव केवी क्रियानो कर्ता थाय छे ने अधर्मी जीव केवी क्रियानो कर्ता थाय छे?–ए
बाबतनो अति स्पष्ट खुलासो आ प्रवचनोमां भरेलो छे. जडपदार्थोनी क्रिया तो कोई आत्मा करी ज नथी
शकतो. विकारी क्रियानो कर्ता अधर्मी जीव थाय छे ने धर्मी जीव तो पोताना निर्मळ भावनी क्रियाने ज करे छे.–
ए वात आ प्रवचनो लोकोत्तर शैलीए सचोटपणे समजावे छे. क्रियानुं खरुं स्वरूप समजवा माटे आ कर्ताकर्म
अधिकार उपरनां प्रवचनोनी स्वाध्याय करवा योग्य छे.
समयसार प्रवचनो
भाग. १ गाथा १ थी १३ पृ. ५६६ किं. ३–०–० भाग. २ गाथा १४ थी २२ पृ. २४१ किं. २–०–०
भाग. ३ गाथा २३ थी ६८ पृ. ६४८ किं. ३–०–० भाग. ४ गाथा ६९ थी १४४ पृ. ५२० किं. ३–०–०
भाग. प....[बंधअधिकार].....................छपाय छे.
[समयसार प्रवचनोना पहेला बे भाग हिंदी भाषामां पण छपाया छे. भाग. १ किंमत रूा. ६–०–०
भाग बीजो : किंमत रूा. ५–०–०]
(२) आत्मसिद्धि–प्रवचनो
(श्रीमद्राजचंद्र कृत आत्मसिद्धि, उपरना प्रवचनो)
आत्मानुं स्वरूप नहि समजवाथी ज जीव अनंत दुःख पाम्यो छे, ने हवे आत्मानी साची समजण
करवाथी ज ते दुःख टळे; आत्मानुं स्वरूप समजवानी जेने जिज्ञासा जागी होय तेने, तेनी शंकाओनुं निवारण
करीने आत्मानुं स्वरूप आमां समजाव्युं छे. आ आत्मसिद्धि प्रवचनोमां लौकिकथी तद्न भिन्न वातने पण
अत्यंत सहज अने सादी शैलीथी समजावी छे. प्राथमिक जिज्ञासुओने आ पुस्तक वांचवानी भलामण करवामां
आवे छे. बे आवृत्ति खलास थई गई छे. त्रीजी आवृत्ति पृ. ६३० किं. ३–८–०
(अनुसंधान टाईटल पान ३)
प्रकाशक:–श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली)
मुद्रक:–चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली) ता. ७–५–५१