Atmadharma magazine - Ank 092
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ: २४७७ आत्मधर्म : १६५:
उत्पाद, व्यय, ध्रुव कोनां होय? –के पर्यायनां.
पर्यायो शेमां होय? –के द्रव्यमां.
ए रीते बधाने एक द्रव्यमां ज समावी दीधा छे.
घडो, पिंड ने माटीपणुं ए त्रणे अंशोना समुदायस्वरूप माटी छे. ते त्रण अंशो वगर माटी सिद्ध नहि
थाय. तेमां उत्पाद ते घडाना आश्रये छे, व्यय ते पिंडना आश्रये छे ने ध्रुवता ते माटीपणाना आश्रये छे. वळी
ते घडो, पिंड ने माटीपणुं ए त्रणे अंशो माटीना आश्रये छे. ए रीते एक माटीमां बधुं समाई जाय छे.
जीवमां रागादि उदयभाव थयो, ते उदयभाव कोनो?–द्रव्यनो, पर्यायनो के परनो? तो कहे छे के, ते
उदयभाव परनो नथी, ते उदयभाव द्रव्यनो नथी, पण ते उदयभाव ते वखतनी आत्मानी पर्यायनो छे.
उदयभाव ते स्वज्ञेयनी पर्याय छे.
(१) उत्पाद, व्यय, ध्रुव त्रणे एक साथे छे, ए वात १०० मी गाथामां साबित करी.
(२) हवे अहीं, उत्पाद, व्यय, ध्रुव ते अंशना (पर्यायना) छे अने
(३) ते पर्यायो (अंशो) द्रव्यना छे,–एम कहीने ते बधाने एक द्रव्यमां ज समावी द्ये छे.
कोई भावनो उत्पाद थतां आखुं द्रव्य ज नवुं उत्पन्न थतुं नथी पण पर्याय नवी ऊपजे छे; ते पर्याय द्रव्यना
आश्रये छे.
कोई भावनो व्यय थतां आखुं द्रव्य ज नाश पामी जतुं नथी पण पर्याय नाश पामे छे, ने ते पर्याय द्रव्यना
आश्रये छे.
परिणामोना प्रवाहमां ध्रुवतापणे द्रव्य ज ध्रुव नथी पण अंश अपेक्षाए ध्रुवता छे; ध्रुवपणुं ते पण द्रव्यनो एक
अंश छे, आखुं द्रव्य नथी. पण ते ध्रुवअंश द्रव्यना आश्रये छे.
–ए रीते उत्पाद–व्यय ने ध्रुव अंशना छे, ने ते अंशोनो समूह ते द्रव्य छे. ए रीते ‘द्रव्य’ मां बधुं
समाई जाय छे.
उत्पाद, व्यय के ध्रुव द्रव्यना ज आश्रये नथी एटले के द्रव्यनां ज उत्पाद, व्यय के ध्रुव नथी, पण
पर्यायनां छे, अने ते पर्यायो द्रव्यना छे. उत्पाद, व्यय के ध्रुव तेमांथी कोई एकमां ज आखुं द्रव्य समाई जतुं
नथी पण ते तो एकेक पर्यायना छे. उत्पाद ते आखा द्रव्यने बतावतो नथी पण उत्पाद ते ऊपजती पर्यायने
बतावे छे, व्यय पण आखा द्रव्यने बतावतो नथी पण ते पूर्वपर्यायने बतावे छे, तथा ध्रुव पण आखा द्रव्यने
बतावतुं नथी पण ते पर्यायने (–अंशने) ज बतावे छे. ए रीते ते दरेक एकेक पर्यायने बतावे छे, ने ते त्रणे
पर्यायोनो समूह द्रव्यने बतावे छे,–द्रव्य ते पर्यायोना समूहस्वरूप छे.
कोई पण द्रव्यनो कोई पण एक समय ल्यो तो तेमां उत्पाद–व्यय ने ध्रुव त्रणे एक साथे पर्यायोना
आश्रये छे. एकला उत्पादमां, व्ययमां के ध्रुवमां आखुं द्रव्य आवी जतुं नथी माटे, तेओ द्रव्यना आश्रये नहि
पण पर्यायोना आश्रये छे एम कह्युं. उत्पादधर्म कोई पर्यायना आश्रये छे, व्ययधर्म पण कोई पर्यायना आश्रये
छे ने ध्रौव्यपणारूप धर्म पण कोई पर्याय (अंश) ना आश्रये छे, माटे तेमने पर्यायोना धर्म कह्या, अने पर्यायो
द्रव्यना आश्रये छे. ए रीते अभेदपणे द्रव्य्मां बधुं समाई जाय छे.
ए वात वृक्षनो दाखलो आपीने समजावशे.
मागसर सुद २ – ३ सोमवार
(प्रवचनसर ग. १०१ चल)
उत्पाद, व्यय ने ध्रुव अंशोना आश्रये छे ने ते अंशो द्रव्यने आलंबे छे. उत्पाद पण अंशनो छे, व्यय पण
अंशनो छे ने ध्रुवपणुं पण अंशनुं छे; ते एकेक अंशमां आखी वस्तु समाई जती नथी पण अंशोना पिंडरूप वस्तु
छे. वस्तु अंशी छे ने उत्पादादिथी आलंबित पर्यायो तेना अंशो छे.–बीज, अंकुर अने वृक्षत्वनी माफक.
‘जेम अंशी एवा वृक्षना बीज–अंकुर–वृक्षत्वस्वरूप त्रण अंशो भंग–उत्पाद–ध्रौव्यस्वरूप निजधर्मो वडे
आलंबित एकी साथे ज भासे छे, तेम अंशी एवा द्रव्यना, नष्ट थतो भाव, ऊपजतो भाव अने अवस्थित
रहेतो भाव ए स्वरूप त्रण अंशो भंग–उत्पाद–ध्रौव्यस्वरूप निजधर्मो वडे आलंबित एकी साथे ज भासे छे.’
वस्तुमां उत्पाद पण अंशनो छे, व्यय पण अंशनो छे ने ध्रुवता पण अंशनी छे. ते एकेक अंशमां आखी