Atmadharma magazine - Ank 092
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: १६६: आत्मधर्म २४७७: जेठ:
वस्तु समाई जती नथी, एटले के द्रव्यनी ज उत्पत्ति, द्रव्यनो ज नाश के द्रव्यनी ज ध्रुवता नथी. जेम एक
झाडमां बीज, अंकुर ने वृक्षपणुं–एवा त्रण अंशो छे, तेमां बीज–अंशनो व्यय, अंकुर–अंशनो उत्पाद ने वृक्षत्व–
अंशनी ध्रुवता छे, ते त्रणे अंशो थईने झाडनुं अस्तित्व छे. तेम आत्मवस्तुमां–सम्यकत्वअंशनो उत्पाद,
मिथ्यात्वअंशनो व्यय ने श्रद्धापणानी ध्रुवता छे. ए रीते उत्पाद–व्यय ने ध्रुव अंशोनां छे, अंशीना नहि. द्रव्यनी
अपेक्षाए ज उत्पाद नथी पण द्रव्यमां ऊपजताभावनी अपेक्षाए उत्पाद छे, द्रव्यनी अपेक्षाए ज विनाश नथी
पण पूर्वना नष्ट थता भावनी अपेक्षाए व्यय छे, ने आखा द्रव्यनी ज अपेक्षाए ध्रुवता नथी पण द्रव्यना
सळंग टकता भावनी अपेक्षाए (द्रव्यत्व अपेक्षाए) ध्रुवता छे. ए रीते उत्पाद–व्यय ने ध्रुव प्रत्येक, अंशने
आश्रित छे. जे क्षणे वस्तु नवीन भावे ऊपजे छे ते ज क्षणे पूर्वभावथी व्यय पामे छे ने ते ज क्षणे द्रव्यपणे ध्रुव
रहे छे;–ए रीते उत्पाद–व्यय–ध्रुव त्रणे एक साथे ज अंशोना अवलंबने छे. पण अंशीनां ज उत्पाद, व्यय के ध्रुव
नथी.
[अहीं ध्रुवने पण अंश अपेक्षाए पर्याय कीधी छे, पण तेमां द्रव्यनो सामान्य भाग छे. परंतु ते एकला
ध्रुवमां ज आखी वस्तु समाती नथी माटे तेने पण अंश कह्यो, ने अंश होवाथी पर्याय कह्यो. ए अपेक्षाए
ध्रुवता पण पर्यायने आश्रित कहेवामां आवी छे.
]
जो अंशी–वस्तुनां ज उत्पाद, व्यय के ध्रुव मानवामां आवे तो तेमां दोष आवे छे, ने अंधाधूंधी थई जाय
छे. कई रीते दोष आवे छे ते समजावे छे.
१. द्रव्यनो ज व्य मानवामां आवे तो –
जो व्यय पूर्वना अंशनो न मानतां द्रव्यनो ज मानवामां आवे तो (१) द्रव्य एक क्षणमां नाश पामी
जनारुं थई जाय, एटले एक क्षणमां ज बधा य द्रव्योनो सर्वथा नाश थई जाय, अथवा तो (२) सत् होय
तेनो ज नाश थई जाय.
जो मिथ्यात्वपर्यायनो नाश न मानतां आत्मद्रव्यनो ज नाश मानवामां आवे तो आत्मा एक क्षणमां ज
नाश पामी जाय, पहेली क्षणना सत्नो बीजी क्षणे नाश थई जाय. अंशनो नाश छे तेने बदले अंशीनो ज नाश
मानतां एक क्षणमां ज बधां द्रव्योनो अभाव ज थई जाय, एटले द्रव्योनी शून्यता थई जाय; अथवा सत्
पदार्थोनो ज नाश थई जाय.
द्रव्यनो ज व्यय मानवाथी (१) पहेलांं तो द्रव्योनो सर्वथा अभाव ठरे ए दोष कह्यो, अथवा तो (२)
‘भाव’नो अभाव थई जाय–ए बीजो दोष कह्यो. पहेलामां तो ‘एकलो अभाव’ कह्यो ने बीजामां ‘भावनो
अभाव’ थवानुं कह्युं. माटे द्रव्यनो ज व्यय नथी पण द्रव्यना अंशनो ज व्यय छे. ने ते अंश अंशीनो छे.
उत्पाद–व्यय–ध्रुव ते अंशोना आश्रये छे, ने ते अंशो अंशी पदार्थना आश्रये छे. पण कोई द्रव्यनो कोई अंश
बीजा द्रव्यने आश्रित नथी, तेम ज विकारी के निर्विकारी कोई पण भावनो उत्पाद–व्यय पण बीजाना आश्रये
नथी, पण ते ते पर्यायना ज आश्रये छे. रागनो उत्पाद कर्मना आश्रये नथी पण ते समयनी पर्यायना आश्रये
छे. आ जीवना मिथ्यात्वनो व्यय देव–गुरुना आश्रये नथी पण पूर्वपर्यायना आश्रये ज छे. ए रीते पर्यायो
पोते ज उत्पाद–व्यय–ध्रुवनो आश्रय छे.
२. द्रव्यनो ज उत्पाद मानवामां आवे तो –
उत्पाद जो अंशनो न मानतां द्रव्यनो ज मानवामां आवे तो क्षणिक पर्याय ते ज द्रव्य थई जाय एटले
क्षणे क्षणे नवां नवां द्रव्यो ज उत्पन्न थवा मांडे. द्रव्यनी अनंत पर्यायोमांथी एकेक पर्याय पोते द्रव्य थई जाय
एटले एक द्रव्यने ज अनंत द्रव्यपणुं आवे. अथवा वस्तु वगर असत्नो ज उत्पाद थवा मांडे. माटीमां घट
अवस्था ऊपजे छे पण माटी पोते ऊपजती नथी, तेम वस्तुमां तेना नवा परिणाम ऊपजे छे पण वस्तु पोते
ऊपजती नथी. एक अंशना उत्पादने जो द्रव्य ज मानवामां आवे तो एक पर्याय पोते ज आखुं द्रव्य थई जशे
एटले द्रव्यनी अनंती पर्यायो ते अनंत द्रव्य थई जशे. ए रीते एक द्रव्यने ज अनंत द्रव्यपणुं थई जशे.–ए
दोष आवे छे. हा, एक द्रव्यमां अनंत गुणो होय, तेम ज एक द्रव्यनी अनंत पर्यायो थाय, पण एक द्रव्यनां
अनंत द्रव्यो न थाय. द्रव्यनी पर्याय नवी ऊपजे छे पण द्रव्य पोते नवुं ऊपजतुं नथी. जो द्रव्य पोते नवुं ऊपजे
तो असत्नी ज उत्पत्ति थाय.–ए रीते द्रव्यनो ज उत्पाद मानवामां बे दोष आवे छे. प्रथम तो, एक ज द्रव्य
अनंत द्रव्यपणे थई जाय; अने बीजुं, असत्नी ज उत्पत्ति थाय. माटे