ATMADHARM Regd. No. B 4787
जिनराजनी आज्ञा–
वी त रा ग भा व ए ज ध र्म
“सराग भाव में धर्म कदाचि न होय यह जिनराजकी आज्ञा है। तातैं
सर्व जीवा सराग भाव ने छोड वीतराग भाव ने भजो। वीतराग भाव है सो
ही धर्म है, और धर्म है सो ही दया है। दया में अरु वीतराग भाव में भेद
नाहीं। सराग भाव है सो ही अधर्म है। और धर्म मांही यह नेम है–सराग
भाव सो हिंसा जाननी। और जेता धर्म का अंग है सो वीतराग भाव ने
अनुसरता है, वा वीतराग भाव ने कारन है। ताहीं तें धर्म नाम पावे है।
और जेता सराग भाव है सो पाप का अंग है वा सराग भाव ने कारन है। ते
अधर्म नाम पावे हैं। और अन्य जीव की दया आदि बाह्य कारन विषें धर्म
होय वा न होय। जो वा क्रिया विषें वीतराग भाव मिलें तो ता विषें धर्म
होय, और वीतराग भाव नाहीं मिलें तो धर्म नाहीं। अरु हिंसा असत् आदि
बाह्य क्रिया विषे कषाय अंस मिलें तो पाप उपजे, और कषाय अंस नाहीं
मिलें तो पाप नाहीं। तातैं यह नेम ठहरया––वीतराग भाव ही धर्म है।”
[ज्ञानानन्द श्रावकाचारः पृ० १५३]
* उपरना कथनो गुजराती अर्थ
सराग भावमां धर्म कदी पण न होय–एवी जिनराजनी आज्ञा छे; माटे
सर्वे जीवो सराग भावने छोडी वीतरागभावने भजो. जे वीतरागभाव छे ते ज
धर्म छे, अने धर्म छे ते ज दया छे. दयामां अने वीतरागभावमां भेद नथी. जे
सराग भाव छे ते ज अधर्म छे. अने धर्ममां तो आवो नियम छे के सराग भाव
ते हिंसा जाणवी. तथा जेटला धर्मना अंग छे ते बधा वीतराग भावने
अनुसरनारा छे अथवा वीतराग भावनुं कारण छे, तेथी ज ते धर्म एवुं नाम
पामे छे. अने जेटलो सराग भाव छे ते पापनुं (अधर्मनुं) अंग छे, अथवा
सराग भावनुं कारण छे, ते अधर्म एवुं नाम पामे छे. अने अन्य जीवनी दया
वगेरे बाह्य कारणो विषे तो धर्म थाय के न थाय. –जो ते क्रिया विषे वीतराग
भाव मळे तो ते विषे धर्म थाय. अने जो वीतराग भाव न मळे तो धर्म न
थाय. तेम ज हिंसा, असत् वगेरे बाह्य क्रियाओ विषे जो कषायनो अंश मळे तो
पाप ऊपजे, अने जो कषायनो अंश न मळे तो पाप न थाय. तेथी आ नियम
नक्की थयो के–वीतराग भाव ते ज धर्म छे.
प्रकाशक:– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली)
मुद्रक:– चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली) ता. ५–७–५१