Atmadharma magazine - Ank 093
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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जीवने संसारपरिभ्रमण अने दुःख
शा कारणे थाय छे?
[जैनदर्शन शिक्षण वर्गनी परीक्षामां पहेलां प्रश्नना उत्तर रूपे आवेला निबंधोमांथी]

जीव अनादि काळथी तिर्यंच–नरक–मनुष्य ने देव एवी चार गतिरूप संसारमां रखडे छे ने तेमां
अनंतदुःख भोगवे छे. ते संसार परिभ्रमणनुं दुःख टाळवा माटे प्रथम ते दुःखनां कारणो शुं छे ते जाणवुं जोईए.
दुःखनां जे कारणो होय तेने बराबर ओळखे तो तेने टाळीने सुखनो उपाय करे.
कोई पर चीज आत्माने संसार परिभ्रमण करावती नथी तेम ज पर चीज आत्माने दुःख देती नथी, पण
आत्मा पोते पोताना आत्मस्वरूपने भूलीने मिथ्यादर्शन–मिथ्याज्ञान ने मिथ्याचारित्रनुं सेवन करे छे तेथी ज ते
संसारमां रखडे छे ने अनंतदुःख अनुभवे छे.
* * *
जीवने पोताना स्वरूपनुं अज्ञान एटले के अगृहीत मिथ्यात्व तो अनादिनुं छे अने ते उपरांत कुदेव–
कुगुरु–कुशास्त्रना सेवनथी गृहीतमिथ्यात्व सेवे छे एटले मिथ्यात्वने वधारे द्रढ करे छे. मिथ्यात्वने लीधे सात
तत्त्वने पण ते विपरीत माने छे; ते संसार परिभ्रमणना दुःखनुं कारण छे. जीव साचा देव–गुरु–शास्त्रने
ओळखे अने तेमना सत्य उपदेश वडे सात तत्त्वोनुं तथा पोताना आत्मानुं स्वरूप समजीने अनादिना
मिथ्यात्वने टाळे ने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट करे तो तेने मोक्षना अनंतसुखनो अनुभव थाय ने तेनुं
संसार परिभ्रमणनुं दुःख टळी जाय.
जीवने पोताना आत्मस्वरूपना अज्ञानथी अने सात तत्त्वोना विपरीत श्रद्धानथी अनादिकाळथी संसार
परिभ्रमण अने दुःख थाय छे. दुःख ए कोई बहारनी चीज नथी पण जीवना मिथ्याभावथी थता राग–द्वेष–मोह
ते ज दुःख छे. ते दुःख कोई बहारना साधनथी टळतुं नथी पण पोतानी साची समजणथी ज टळे छे.
जीवनुं पोतानुं स्वरूप तो देहथी भिन्न अरूपी चैतन्यमय छे, पण अज्ञानी तेने भूलीने देहने ज पोतानुं स्वरूप
माने छे एटले के देह ते ज हुं छुं–एम ते माने छे. तेथी देहनो संयोग थतां ते पोताना आत्मानो जन्म माने छे
ने देहनो वियोग थतां ते आत्मानो ज नाश माने छे एटले जन्मथी मरण सुधीनो ज आत्मा छे एम ते माने
छे. वळी देहना काम हुं करुं छुं, देहनी सगवडअगवडथी हुं सुखी–दुःखी छुं–एम ते अज्ञानी माने छे. मोक्षना
कारणरूप जे संवर–निर्जरा छे तेमां तो ते प्रीति करतो नथी ने तेने कठण मानीने ईन्द्रियविषयोमां प्रीति करे छे.
आवी ऊंधी श्रद्धा ते मिथ्यात्व छे ने ते मिथ्यात्वना प्रभावथी जीव अनादिथी संसारमां रखडे छे. क्यारेक दुर्लभ
मनुष्यपणुं मळे त्यारे पण कुदेव–कुगुरु अने कुधर्मना सेवनथी मिथ्यात्वने पुष्ट करे छे एटले तेनुं संसारभ्रमण
मटतुं नथी, ने पोताना दुर्लभ मनुष्यजीवनने नष्ट करीने पोताना ज हाथे पोतानुं अकल्याण करीने अनंतदुःख
भोगवे छे. माटे दुर्लभ मनुष्यभव पामीने, साचा देव–गुरु धर्मने ओळखीने सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान अने
सम्यक्चारित्रनुं सेवन करवाथी मोक्षसुख प्रगटे छे, ने संसारपरिभ्रमणनुं दुःख टळे छे.
* * *
कुदेव कुगुरु अने कुधर्मनुं सेवन करवाथी जीव संसारसमुद्रमां डूबे छे. जेने जीव अने शरीर वच्चे
भेदविज्ञान न होय, जे विकारथी धर्म मनावे, विषयकषायोनुं पोषण करे ते बधा कुदेव–कुगुरु ने
(अनुसंधान पान १९८ पर)