जीव अनादि काळथी तिर्यंच–नरक–मनुष्य ने देव एवी चार गतिरूप संसारमां रखडे छे ने तेमां
दुःखनां जे कारणो होय तेने बराबर ओळखे तो तेने टाळीने सुखनो उपाय करे.
संसारमां रखडे छे ने अनंतदुःख अनुभवे छे.
तत्त्वने पण ते विपरीत माने छे; ते संसार परिभ्रमणना दुःखनुं कारण छे. जीव साचा देव–गुरु–शास्त्रने
ओळखे अने तेमना सत्य उपदेश वडे सात तत्त्वोनुं तथा पोताना आत्मानुं स्वरूप समजीने अनादिना
मिथ्यात्वने टाळे ने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट करे तो तेने मोक्षना अनंतसुखनो अनुभव थाय ने तेनुं
संसार परिभ्रमणनुं दुःख टळी जाय.
ते ज दुःख छे. ते दुःख कोई बहारना साधनथी टळतुं नथी पण पोतानी साची समजणथी ज टळे छे.
माने छे एटले के देह ते ज हुं छुं–एम ते माने छे. तेथी देहनो संयोग थतां ते पोताना आत्मानो जन्म माने छे
ने देहनो वियोग थतां ते आत्मानो ज नाश माने छे एटले जन्मथी मरण सुधीनो ज आत्मा छे एम ते माने
छे. वळी देहना काम हुं करुं छुं, देहनी सगवडअगवडथी हुं सुखी–दुःखी छुं–एम ते अज्ञानी माने छे. मोक्षना
कारणरूप जे संवर–निर्जरा छे तेमां तो ते प्रीति करतो नथी ने तेने कठण मानीने ईन्द्रियविषयोमां प्रीति करे छे.
आवी ऊंधी श्रद्धा ते मिथ्यात्व छे ने ते मिथ्यात्वना प्रभावथी जीव अनादिथी संसारमां रखडे छे. क्यारेक दुर्लभ
मनुष्यपणुं मळे त्यारे पण कुदेव–कुगुरु अने कुधर्मना सेवनथी मिथ्यात्वने पुष्ट करे छे एटले तेनुं संसारभ्रमण
मटतुं नथी, ने पोताना दुर्लभ मनुष्यजीवनने नष्ट करीने पोताना ज हाथे पोतानुं अकल्याण करीने अनंतदुःख
भोगवे छे. माटे दुर्लभ मनुष्यभव पामीने, साचा देव–गुरु धर्मने ओळखीने सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान अने
सम्यक्चारित्रनुं सेवन करवाथी मोक्षसुख प्रगटे छे, ने संसारपरिभ्रमणनुं दुःख टळे छे.