(२) मिथ्याज्ञान अने सम्यग्ज्ञान ए बंने, जीवना ज्ञानगुणनी पर्यायो छे; ज्यारे मिथ्याज्ञान टळीने सम्यग्ज्ञान
प्रगटे छे त्यारे ज्ञानगुणमां सम्यग्ज्ञान पर्यायनो उत्पाद् थाय छे, पूर्वनी मिथ्याज्ञानपर्यायनो व्यय थाय छे अने
ज्ञानगुण ध्रुवपणे रहे छे.
जे गुण होय ते कया द्रव्यनो–केवी जातनो गुण छे ते लखो, अने जे पर्याय होय ते क्या द्रव्यना क्या गुणनो
केवो (विकारी के अविकारी) पर्याय छे ते जणावो.
(१) खटाश (२) सम्यग्दर्शन (३) रात
(प) स्थितिहेतुत्त्व ते गुण छे:– अधर्मास्तिकायद्रव्यनो विशेषगुण.
(६) काळाणु ते द्रव्य छे:– परिणमनहेतुत्त्व तेनो विशेषगुण छे.
(७) मृगजळ ते पर्याय छे:– पुद्गलद्रव्यना रंग गुणनी. (विकारी)
(८) केवळज्ञान ते पर्याय छे:– जीवद्रव्यना ज्ञानगुणनी. (अविकारी)
(९) समुद्घात ते पर्याय छे:– जीवद्रव्यना प्रदेशत्वगुणनी. (विकारी)
(१०) अरिसामां देखातुं अग्निनी ज्वाळानुं प्रतिबिंब ते पर्याय छे:– पुद्गलद्रव्यना रंगगुणनी. (विकारी) *
(२) वसाणी हसमुखलाल वेलसीभाई राणपुर मार्क ८९
(३) शाह वसंतराय मगनलाल बरवाळा मार्क ८६
(४) शाह राजेन्द्र प्रेमचंद सुरत मार्क ८६
(प) शाह अनिलकुमार हिंमतलाल भावनगर मार्क ८६
(६) शाह भाईलाल ईश्वरलाल महेसाणा मार्क ८प
दंभी गुरु एटले के कुगुरु छे. कुगुरुओ पत्थरनी नौका समान छे. जेम पत्थरनी नौका पोते तो डूबे छे ने तेमां
बेसनार पण डूबे छे, तेम कुगुरु पोते तो संसारमां डूबे छे ने तेनुं सेवन करनार पण संसारमां डूबे छे. माटे हे
जीवो! जो तमे आ संसारसमुद्रथी बचवा चाहता हो तो कुदेव–कुगुरु–कुधर्मना सेवनने छोडी दईने साचा देव–
चारित्र ते ज आ भवसमुद्रथी तरवानो उपाय छे.