Atmadharma magazine - Ank 093
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 19 of 21

background image
: १९८: आत्मधर्म: ९३
उत्पाद् थाय छे, पूर्वनी भाषावर्गणारूप पर्यायनो व्यय थाय छे, अने पुद्गल ध्रुवपणे रहे छे.
(२) मिथ्याज्ञान अने सम्यग्ज्ञान ए बंने, जीवना ज्ञानगुणनी पर्यायो छे; ज्यारे मिथ्याज्ञान टळीने सम्यग्ज्ञान
प्रगटे छे त्यारे ज्ञानगुणमां सम्यग्ज्ञान पर्यायनो उत्पाद् थाय छे, पूर्वनी मिथ्याज्ञानपर्यायनो व्यय थाय छे अने
ज्ञानगुण ध्रुवपणे रहे छे.
प्रश्न: ७
नीचे लखेला पदार्थोमांथी द्रव्य, गुण, पर्यायने ओळखी काढो. तथा तेमां जे द्रव्य होय तेनो विशेष गुण लखो,
जे गुण होय ते कया द्रव्यनो–केवी जातनो गुण छे ते लखो, अने जे पर्याय होय ते क्या द्रव्यना क्या गुणनो
केवो (विकारी के अविकारी) पर्याय छे ते जणावो.
(१) खटाश (२) सम्यग्दर्शन (३) रात
(४) ताव (प) स्थितिहेतुत्व (६) काळाणु
(७) मृगजळ (८) केवळज्ञान (९) समुद्घात (१०) अरिसामां देखातुं अग्निनी ज्वाळानुं प्रतिबिंब
उत्तर: ७
(काळद्रव्यनी पर्यायमां अविकारी के विकारी–एवा भेद पडता नथी.)
(४) ताव ते पर्याय छे:– पुद्गलद्रव्यना स्पर्श गुणनी. (विकारी)
(प) स्थितिहेतुत्त्व ते गुण छे:– अधर्मास्तिकायद्रव्यनो विशेषगुण.
(६) काळाणु ते द्रव्य छे:– परिणमनहेतुत्त्व तेनो विशेषगुण छे.
(७) मृगजळ ते पर्याय छे:– पुद्गलद्रव्यना रंग गुणनी. (विकारी)
(८) केवळज्ञान ते पर्याय छे:– जीवद्रव्यना ज्ञानगुणनी. (अविकारी)
(९) समुद्घात ते पर्याय छे:– जीवद्रव्यना प्रदेशत्वगुणनी. (विकारी)
(१०) अरिसामां देखातुं अग्निनी ज्वाळानुं प्रतिबिंब ते पर्याय छे:– पुद्गलद्रव्यना रंगगुणनी. (विकारी) *
परीक्षामां ८० करतां वधारे माकर्स मेळवनार छ विद्यार्थीओ नीचे मुजब छे:
(१) शाह जगदिशचंद्र नवलचंद मुंबई मार्क ९४
(२) वसाणी हसमुखलाल वेलसीभाई राणपुर मार्क ८९
(३) शाह वसंतराय मगनलाल बरवाळा मार्क ८६
(४) शाह राजेन्द्र प्रेमचंद सुरत मार्क ८६
(प) शाह अनिलकुमार हिंमतलाल भावनगर मार्क ८६
(६) शाह भाईलाल ईश्वरलाल महेसाणा मार्क ८प
[अनुसंधान टाईटल पान त्रीजा परथी चालु]
कुधर्म छे. जे शस्त्र, वस्त्र के स्त्री वगेरे राखे ते साचा देव नथी पण कुदेव छे. जेने अंतरमां मिथ्यात्व
वगेरेनो परिग्रह होय ने बहारमां वस्त्र–पैसा–स्त्री वगेरेनो परिग्रह होय छतां पोताने मुनि वगेरे मनावे ते
दंभी गुरु एटले के कुगुरु छे. कुगुरुओ पत्थरनी नौका समान छे. जेम पत्थरनी नौका पोते तो डूबे छे ने तेमां
बेसनार पण डूबे छे, तेम कुगुरु पोते तो संसारमां डूबे छे ने तेनुं सेवन करनार पण संसारमां डूबे छे. माटे हे
जीवो! जो तमे आ संसारसमुद्रथी बचवा चाहता हो तो कुदेव–कुगुरु–कुधर्मना सेवनने छोडी दईने साचा देव–
गुरु–धर्मने स्वीकारो अने आत्मानी ओळखाण करीने सम्यग्दर्शन ज्ञान–चारित्रने आराधो. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र ते ज आ भवसमुद्रथी तरवानो उपाय छे.