
पोतानी पर्याय थवानुं माने नहि, पण द्रव्यना आश्रये ज पर्याय थवानुं माने, एटले तेने परथी लाभ–नुकसान
पर्यायधर्मने खरेखर जाण्यो नथी.
छे, कोई बीजी चीजने लीधे तेनो पर्यायधर्म थतो नथी. जो बीजो पदार्थ आत्मानी पर्याय करे तो आत्माना
पर्यायधर्मे शुं कर्युं? जो निमित्तथी पर्याय थई एम होय तो आत्मानो पर्यायधर्म ज न रह्यो! पोतानी अनादि
अनंत पर्यायो पोताथी ज थाय छे–एम जो पोताना पर्यायधर्मने न जाणे तो ज्ञान प्रमाण थाय नहि. स्वभाव
तरफ ढळतुं ज्ञान प्रमाणपूर्वक ज ढळे छे; वस्तुस्थिति जाणीने ज्ञान प्रमाण थया वगर ते वस्तुस्वभावमां ढळे ज
नहि एटले तेने आत्मानो स्वानुभव थाय ज नहि.
जोईए. द्रव्यनयथी जो आत्मद्रव्यमां संसार होय तो ते टळे क्यांथी? अने पर्यायमां संसार छे, ते पर्यायना
अवलंबने टळे क्यांथी? द्रव्यनये तो आत्माने संसार–मोक्ष नथी, संसारपर्यायमां के मोक्षपर्यायमां सदाय
आत्मा चिन्मात्र ज छे; परंतु पर्यायमां संसार–मोक्ष छे तेने पर्यायनय जाणे छे. पण ते पर्यायना आश्रये संसार
टळतो नथी, द्रव्यनो आश्रय करतां संसारपर्याय टळीने मोक्षपर्याय थई जाय छे; एटले पर्यायनयवाळो पण
पर्यायबुद्धि राखीने पर्यायने नथी जाणतो पण द्रव्य उपर द्रष्टि राखीने पर्यायनुं ज्ञान करे छे. द्रव्यनी द्रष्टि
वगर एकली पर्यायने जाणवा जाय तो तेने पर्यायबुद्धिनुं मिथ्यात्व थई जाय छे. आखा द्रव्यना ज्ञानपूर्वक तेना
पर्यायधर्मने पर्यायनय जाणे छे, ते पर्यायनयथी आत्मद्रव्य गुण–पर्यायना भेदवाळुं जणाय छे.
शके, अथवा विशेष बदलतां सामान्य जुदुं रही जाय एटले सामान्य अने विशेष सर्वथा जुदा थई जाय. पण
एम बने ज नहि, केमके सामान्य कदी विशेष वगर न होय अने विशेष कदी सामान्य वगर न होय. वस्तु
अनेक धर्मात्मक छे, सामान्य विशेष बंनेने एक साथे न मानो तो वस्तु ज सिद्ध न थाय.
करीने अभेद चैतन्यस्वभाव उपर द्रष्टि करतां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगटे छे. ज्यां अभेदस्वभावना
अनुभवमां वळ्यो त्यां आवा धर्मना भेदना विचार रहेता नथी.
एक धर्मने मुख्य करीने वस्तुने लक्षमां ल्ये छे, ते धर्म वस्तुनो छे ने वस्तु अनंतधर्मवाळी छे, एटले नयनी
साथे ज ते अनंतधर्मवाळी वस्तुनुं प्रमाणज्ञान पण साथे ज छे. नय तो अंशने जाणे छे, अंश कोनो?–के
अंशीनो. अंशीना ज्ञान वगर अंशनुं ज्ञान यथार्थ न थाय. आखी वस्तुना प्रमाणज्ञानपूर्वक तेना एक अंशनुं
ज्ञान होय तो ज तेने नय कहेवाय. ए रीते नय भेगुं प्रमाण पण साथे ज छे.