
विषय नथी; ते निश्चयनयनो विषय तो वर्तमान अंशने तथा भेदने गौण करीने आखो अनंत गुणनो पिंड छे,
ने आ द्रव्यनय तो अनंत धर्मोमांथी एक धर्मनो भेद पाडीने विषय करे छे.
श्रुतप्रमाणना अनंत नयो कह्या छे. अहीं कहेला नयोनो विषय एकेक धर्म छे ने समयसारादिमां कहेल द्रव्या
र्थिकनयनो विषय तो धर्मनो भेद पाड्या वगरनी अभेद वस्तु छे. अहीं जेने द्रव्यनय कह्यो छे ते अध्यात्म–
द्रष्टिना कथनमां तो पर्यायार्थिक नयमां अथवा व्यवहारनयमां जाय छे.
जुदी जुदी अपेक्षाथी जेम कह्युं छे तेम बराबर समजवुं जोईए.
वगेरे गुण–पर्यायना भेदवाळो पण जणाय छे, एवो आत्मानो स्वभाव छे. पर्यायनयथी ज्ञानादि अनंत गुण–
पर्यायना भेदरूपे आत्मा भासे छे, ने द्रव्यनये एक अभेदरूप चैतन्यस्वभावमात्र आत्मा जणाय छे. वस्तु एक
छे पण तेमां पडखां अनेक छे. चीजने जेम छे तेम बधा पडखाथी जाणीने नक्की करे त्यार पछी ज ज्ञान तेमां ठरे
ने? वस्तुना स्वरूपने जाण्या विना शेमां एकाग्र थईने ध्यान करे? जेम कोईए हाथमां बाण तो लीधुं पण ते
बाण मारवुं छे कोने? जेने बाण मारवुं छे ते लक्ष्यने नक्की न कर्युं होय तो बाण लीधुं शा कामनुं? पहेलांं जेना
उपर बाण छोडवुं होय ते लक्ष्यने बराबर नक्की कर्या पछी ज बाण छोडे छे; तेम आत्मानुं ध्यान करवा माटे
पहेलांं तेनुं बराबर ज्ञान करवुं जोईए. आत्मा जेवो छे तेवो लक्षमां लीधा विना ध्यान कोनुं करशे? घणा लोको
कहे छे के अमारे ध्यान करवुं छे. पण कोनुं? ध्यानमां लेवा योग्य आत्मानो स्वभाव शुं छे ते जाण्या विना तेनुं
ध्यान कई रीते करीश? वस्तुने यथार्थज्ञानथी जाण्या पछी ते वस्तुमां ज्ञाननी एकाग्रता थाय तेनुं नाम ध्यान
छे. जेने वस्तुनुं साचुं ज्ञान ज नथी तेने तो ज्ञाननी एकाग्रतारूप ध्यान पण होतुं नथी.
अनंत धर्मो भर्या छे एटले पर्यायनये ते दर्शन–ज्ञानादि भेदरूप छे. द्रव्यनये जोतां भेदो गौण थईने एकरूप
चिन्मात्र भासे छे अने पर्यायनये जोतां दर्शन–ज्ञान–चारित्रादि गुणपर्यायोना भेदरूप पण भासे छे–एवो
आत्मानो स्वभाव छे. आत्मामां ज्ञान–दर्शन वगेरे भेदो छे ते कांई कल्पनारूप नथी पण सत् छे, वस्तुमां
कथंचित् गुणभेद पण छे; वस्तु सर्वथा अभेद नथी पण भेदाभेदरूप छे.–एवी वस्तु ते ज प्रमाणनो विषय छे.
तेनामां त्रणकाळे नवी नवी अवस्था थया करे छे एवो तेनो स्वभाव छे. आत्मानी कोई पर्याय परने लीधे थती
नथी पण पोताना पर्यायस्वभावथी ज तेनी पर्याय त्रणेकाळे