Atmadharma magazine - Ank 094
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४७७ : २२३ :
ए रीते बंनेना विषयमां घणो फेर छे. समयसारमां कहेला शुद्ध निश्चयनयनो जे विषय छे ते आ द्रव्यनयनो
विषय नथी; ते निश्चयनयनो विषय तो वर्तमान अंशने तथा भेदने गौण करीने आखो अनंत गुणनो पिंड छे,
ने आ द्रव्यनय तो अनंत धर्मोमांथी एक धर्मनो भेद पाडीने विषय करे छे.
अध्यात्मद्रष्टिना नयोमां तो निश्चय अने व्यवहार (अथवा द्रव्यार्थिक अने पर्यायार्थिक) एवा बे ज
भाग पडे छे ने अहीं तो अनंत नयो लेवा छे. त्यां बे नयोमां आखुं प्रमाण समाई जाय छे ने अहीं तो
श्रुतप्रमाणना अनंत नयो कह्या छे. अहीं कहेला नयोनो विषय एकेक धर्म छे ने समयसारादिमां कहेल द्रव्या
र्थिकनयनो विषय तो धर्मनो भेद पाड्या वगरनी अभेद वस्तु छे. अहीं जेने द्रव्यनय कह्यो छे ते अध्यात्म–
द्रष्टिना कथनमां तो पर्यायार्थिक नयमां अथवा व्यवहारनयमां जाय छे.
आ परिशिष्टमां ज्ञानप्रधान वर्णन छे, प्रमाणथी वर्णन छे एटले बंध–मोक्ष पर्यायने पण निश्चयमां
गणशे, ज्यारे समयसारादिमां कहेला निश्चयनयना विषयमां तो आत्माने बंध–मोक्ष छे ज नहि. आ प्रमाणे
जुदी जुदी अपेक्षाथी जेम कह्युं छे तेम बराबर समजवुं जोईए.
द्रव्यनयथी आत्मा चैतन्यमात्र छे ए वात करी, हवे ते द्रव्यनयनी सामे पर्यायनयनी वात करे छे.
× × ×
[२] पर्यायनये आत्मानुं वर्णन
अनंत धर्मात्मक आत्मद्रव्य छे ते पर्यायनये, तंतुमात्रनी माफक, दर्शनज्ञानादिमात्र छे; जेम वस्त्र
तंतुमात्र छे तेम आत्मा पर्यायनये दर्शन–ज्ञान–चारित्रादिमात्र छे.
पर्यायनय ते श्रुतज्ञाननो प्रकार छे, ते पर्यायनयथी जोतां आत्मद्रव्य दर्शन–ज्ञान–चारित्रादिमात्र जणाय
छे. द्रव्यनयथी अभेद एकरूप चैतन्यस्वभावमात्र जणाय छे ने पर्यायनयथी ते आत्मा ज्ञान–दर्शन–चारित्र
वगेरे गुण–पर्यायना भेदवाळो पण जणाय छे, एवो आत्मानो स्वभाव छे. पर्यायनयथी ज्ञानादि अनंत गुण–
पर्यायना भेदरूपे आत्मा भासे छे, ने द्रव्यनये एक अभेदरूप चैतन्यस्वभावमात्र आत्मा जणाय छे. वस्तु एक
छे पण तेमां पडखां अनेक छे. चीजने जेम छे तेम बधा पडखाथी जाणीने नक्की करे त्यार पछी ज ज्ञान तेमां ठरे
ने? वस्तुना स्वरूपने जाण्या विना शेमां एकाग्र थईने ध्यान करे? जेम कोईए हाथमां बाण तो लीधुं पण ते
बाण मारवुं छे कोने? जेने बाण मारवुं छे ते लक्ष्यने नक्की न कर्युं होय तो बाण लीधुं शा कामनुं? पहेलांं जेना
उपर बाण छोडवुं होय ते लक्ष्यने बराबर नक्की कर्या पछी ज बाण छोडे छे; तेम आत्मानुं ध्यान करवा माटे
पहेलांं तेनुं बराबर ज्ञान करवुं जोईए. आत्मा जेवो छे तेवो लक्षमां लीधा विना ध्यान कोनुं करशे? घणा लोको
कहे छे के अमारे ध्यान करवुं छे. पण कोनुं? ध्यानमां लेवा योग्य आत्मानो स्वभाव शुं छे ते जाण्या विना तेनुं
ध्यान कई रीते करीश? वस्तुने यथार्थज्ञानथी जाण्या पछी ते वस्तुमां ज्ञाननी एकाग्रता थाय तेनुं नाम ध्यान
छे. जेने वस्तुनुं साचुं ज्ञान ज नथी तेने तो ज्ञाननी एकाग्रतारूप ध्यान पण होतुं नथी.
जेम वस्त्र सामान्यपणे एक होवा छतां ते लांबु–पहोळुं, रंगवाळुं तथा ताणावाणा वाळुं–एवा भेदरूपे
पण ख्यालमां आवे छे, तेम चैतन्यबिंब भगवान आत्मा द्रव्यरूपे एक होवा छतां तेनामां दर्शन–ज्ञानादि
अनंत धर्मो भर्या छे एटले पर्यायनये ते दर्शन–ज्ञानादि भेदरूप छे. द्रव्यनये जोतां भेदो गौण थईने एकरूप
चिन्मात्र भासे छे अने पर्यायनये जोतां दर्शन–ज्ञान–चारित्रादि गुणपर्यायोना भेदरूप पण भासे छे–एवो
आत्मानो स्वभाव छे. आत्मामां ज्ञान–दर्शन वगेरे भेदो छे ते कांई कल्पनारूप नथी पण सत् छे, वस्तुमां
कथंचित् गुणभेद पण छे; वस्तु सर्वथा अभेद नथी पण भेदाभेदरूप छे.–एवी वस्तु ते ज प्रमाणनो विषय छे.
त्रणे काळे पर्याय थवानो आत्मानो स्वभाव छे. वस्तुमां गुणभेद पडे तेने पण पर्याय कहेवाय छे अने
विशेष अवस्था थाय तेने पण पर्याय कहेवाय छे. द्रव्यनयथी वस्तु नित्य एकरूप होवा छतां पर्यायनयथी
तेनामां त्रणकाळे नवी नवी अवस्था थया करे छे एवो तेनो स्वभाव छे. आत्मानी कोई पर्याय परने लीधे थती
नथी पण पोताना पर्यायस्वभावथी ज तेनी पर्याय त्रणेकाळे