वर्ष ८ मुं अंक ११ मो, वीर सं. २४७७ भाद्रपद (वार्षिक लवाजम रूा. ३–०–०)
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: संपादक:
वकील रामजी माणेकचंद दोशी
अहो, रत्नत्रय–महिमा!
‘आ रत्नत्रय ज सिद्धांतनुं सर्वस्व छे तथा ते ज मुक्तिनुं कारण छे; वळी
जीवोनुं हित ते ज छे अने प्रधान पद ते ज छे.
जे संयमी मुनिओ पूर्वे मोक्ष गया छे, वर्तमानमां जाय छे अने भविष्यमां
जशे तेओ खरेखर आ अखंडित रत्नत्रयने सम्यक् प्रकारे आराधीने ज गया छे,
जाय छे अने जशे.
आ सम्यक् रत्नत्रयने प्राप्त कर्या वगर करोडो–अबजो जन्म धारण करवा
छतां पण कोई जीव मोक्षलक्ष्मीना मुखकमळने साक्षात् देखी शकता नथी. ’
–श्री शुभचन्द्राचार्यदेव.