Atmadharma magazine - Ank 095
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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सुवर्णपुरी समाचार
* श्रावण वद ८ *
* परम पूज्य गुरुदेवश्री सुखशांतिमां बिराजे छे.
* प्रवचनमां सवारे प्रवचनसार वंचातुं हतुं ते श्रावण वद ३ ना रोज पूर्ण थयुं छे अने श्रावण
वद प थी श्री पंचास्तिकायना वांचननी शरूआत थई छे. बपोरे समयसार वंचाय छे.
* श्रावण सुद १३ ना रोज शेठ काळीदास राघवजीना सुपुत्रोना मकानोनुं वास्तु सोनगढमां हतुं,
ते प्रसंगे तेमणे पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन पोताने घेर कराव्युं हतुं; अने आ प्रसंग निमित्ते रूा. ६०१–श्री
जैन स्वाध्याय मंदिरने तथा रूा. १०१– ‘श्री सद्गुरु–प्रवचन–प्रसाद कार्यालय’ ने अर्पण कर्या हता.
* श्री नियमसार परमागम (गुजराती भाषामां) छपाई गयुं छे; बाईन्डींग चाली रह्युं छे....
पर्युषण दरमियान प्रसिद्ध थई जशे. आ शास्त्र घणुं उत्तम अने घणुं सुंदर छे. लागत मूल्य लगभग रूा.
पांच होवा छतां तेनु मूल्य साडा त्रण रूपिया राखवामां आव्युं छे.
* बोटाद शहेरमां जिनमंदिरनुं खातमुहूर्त *
श्रावण सुद १३ ना मंगल दिने बोटाद शहेरमां श्री सीमंधरभगवानना
जिनमंदिरनुं खातमुहूर्त थयुं हतुं; पुजन वगेरे विधि थया बाद, बोटाद मुमुक्षुमंडळना
आमंत्रणथी पधारेला पोरबंदरना शेठ श्री नेमिदास खुशालभाई तथा तेमना धर्मपत्नी
कंचनबेने उत्साहपूर्वक जिनमंदिरनुं खातमुहूर्त कर्युं हतुं. अने आवुं पवित्र कार्य करवानुं
सौभाग्य पोताने प्राप्त थयुं तेना उल्लासमां रूा. ७५०२–बोटादना जिनमंदिर माटे अर्पण
कर्या हता. –रूा. ४००१–पोताना नामथी तथा रूा. ३५०१–तेमना धर्मपत्नी कंचनबेनना
नामथी जाहेर कर्या हता. आ उदार जाहेरात बदल बोटाद मुमुक्षुमंडळे तेमनो आभार
मान्यो हतो.
खातमुहूर्त विधि बाद, प्रासंगिक प्रवचन द्वारा पोतानो घणो उल्लास व्यक्त करतां
तेमणे जणाव्युं हतुं के:
‘बोटादना मुमुक्षुमंडळे जिनमंदिरनुं खातमुहूर्त करवानो लाभ अमने आप्यो ते
बदल हुं तेमनो आभारी छुं. मने परम पूजय सद्गुरुदेवश्रीनो प्रथम परिचय थवानी
अने तेओश्री प्रत्ये भक्ति जागृत थवानी आ भूमि छे अने आ ज भूमिमां पू.
गुरुदेवश्रीनी आमन्यामां जिनमंदिरनुं खातमुहूर्त मारा हाथे थाय छे ते मारा अहोभाग्य
छे. श्री जिनमंदिरमां प्रतिष्ठित थनारा प्रतिमाजीने आरसनी प्रतिमा तरीके तो सौ लोको
जाणे छे, पण जेवा महाविदेहक्षेत्रमां अस्त्र–वस्त्र–शस्त्र–स्त्री रहित वीतरागी ध्यान
मुद्रामां सीमंधर भगवान साक्षात् बिराजी रह्या छे तेवा ज भगवान अहीं जिनमंदिरमां
बिराजे छे–एम आपणे भक्तिना बळे स्थापना करवानी छे. चौद पूर्वनो सार जे
वीतरागता छे ते वीतरागता आ प्रतिमानी जिनमुद्रा, –अक्षरज्ञानवाळाने के
अनक्षरज्ञानवाळाने, –बोधी रही छे. एवा वीतरागी प्रतिमाजीने बिराजमान करवाने
माटे श्री जिनमंदिरनुं खातमुहूर्त मारा हाथे थयुं तेथी मारा हृदयमां हर्ष समातो नथी,
आवा पवित्र कार्यने माटे तन–मन–धन जेटलुं अर्पण करी शकाय तेटलुं ओछुं छे.
– परमपूज्य सद्गुरुदेवश्रीना पुनीत प्रभावे सौराष्ट्र देशमां सत्देव–गुरु–धर्मनी
प्रभावना दिन–प्रतिदिन खूब वधती जाय छे.... यथार्थ तत्त्वज्ञानमां अनेक जीवो रस लई
रह्या छे, अने लांबा काळमां नहि थयेली एवी जैनशासननी महान प्रभावना अत्यारे
उदय पामी छे.... सौराष्ट्रमां ठेर ठेर वीतरागी जिनमंदिरो थया छे ने थता जाय छे.
बोटादमां आ मंगळकार्यनी शरूआत करवा माटे त्यांना मुमुक्षुओने धन्यवाद! ’