: भादरवो : २४७७ : २२७ :
‘आत्मा कोण छे ने
कई रीते पमाय? ’
[२]
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां ४७ नयोद्वारा
आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे तेना उपर पूज्य
गुरुदेवश्रीनां विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
[प्रवचनमां आ परिशिष्ट एक वखत वंचाई गया बाद तुरत ज बीजी वखत तेनुं वांचन थयुं हतुं.
बीजी वखतना प्रवचनोनो सार पण पहेली वखतना प्रवचनोनी साथे उमेरी देवामां आव्यो छे.]
[वीर सं. २४७७ जेठ वद ३ थी शरू]
गतांकथी चालु
[३] अस्तित्वनये आत्मानुं वर्णन
आत्मद्रव्य अस्तित्वनये स्वद्रव्य क्षेत्र–काळ–भावथी अस्तित्ववाळुं छे; लोहमय, दोरी ने कामठाना
अंतराळमां रहेला, संधायेली अवस्थामां रहेला अने लक्ष्योन्मुख तीरनी माफक.
अनंत धर्मना पिंडरूप आखुं आत्मद्रव्य तो प्रमाणनो विषय छे, अने तेने ज अस्तित्वनये जोतां ते
अस्तित्ववाळुं छे. स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी आत्मा अस्तित्ववाळो छे, एम अस्तित्वनय स्वथी अस्तिने ज
लक्षमां ल्ये छे; परथी आत्मा नास्तित्वरूप छे ते वात नास्तित्वनयमां आवशे. अस्तित्वधर्मने जाणे ते
अस्तित्वनय. नास्तित्वधर्मने जाणे ते नास्तित्वनय; प्रमाणज्ञानथी आखी वस्तुना स्वीकारपूर्वक तेना एक
पडखांने मुख्य करीने जाणे तेनुं नाम नय छे. वस्तु पोताना अनंत भावोथी भरेली छे, भाव वगरनी कोई
वस्तु होय नहि. वस्तुने ओळखवा माटे तेमां रहेला भावोने ओळखवा जोईए. वस्तुना भावोने (–धर्मोने)
जाण्या वगर तेनी प्राप्ति थाय नहि. जेम बजारमां कांई वस्तु लेवा जाय तो तेना भावने जाणे छे तेम अहीं
चैतन्यवस्तुनी प्राप्ति करवा माटे तेमां रहेला तेना स्व–भावोने जाणवा जोईए. वस्तुमां अनंत स्वभावो छे
तेमांथी आ अस्तित्व स्वभावनुं वर्णन चाले छे. [स्वभाव एटले वस्तुनो धर्म.]
आत्मानुं अस्तित्व छे एम सामान्यपणे तो घणा माने छे पण तेनुं अस्तित्व कई रीते छे, तेना
स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव केवा छे? ते जाण्या विना यथार्थ आत्मानुं अस्तित्व जणाय नहि. आत्मानुं अस्तित्व
जेवा स्वरूपे छे तेवा स्वरूपे ओळखीने माने तो ते खरेखर आस्तिक कहेवाय, पण आत्माना अस्तित्वने जे
विपरीतरूपे माने ते परमार्थे नास्तिक छे.
आत्मा पोताना द्रव्यथी क्षेत्रथी काळथी ने भावथी अस्तिरूप छे. आत्माना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव
समजाववा माटे अहीं आचार्यदेवे तीरनुं द्रष्टांत आप्युं छे: जेम कोई तीर स्वद्रव्यथी लोहमय छे, स्वक्षेत्रथी दोरी
अने कामठाना वचगाळामां रहेलुं छे, स्वकाळथी संधान दशामां एटले के धनुष्य पर खेंचायेली स्थितिमां छे
अने स्वभावथी लक्ष्योन्मुख एटले के निशाननी सन्मुख छे; ए प्रमाणे ते तीर पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ ने
भावथी अस्तित्ववाळुं छे, तेम आत्मा पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावरूप स्वचतुष्टयथी अस्तित्ववाळो छे.
१. स्वद्रव्य: जेम बाण लोहमय छे ते तेनुं स्वद्रव्य