Atmadharma magazine - Ank 095
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARM Regd No. B, 4787
धन्य ते मुनिवरा!
आत्माना गुणनी चौद भूमिका छे. तेमां चोथी भूमिकामां अपूर्व
आत्मसाक्षात्कार, निर्विकल्प अनुभव थाय छे, त्यां यथार्थ स्वरूपनुं ज्ञान
थाय छे. पछी अंशे स्थिरता वधे ते पांचमी भूमिका छे. अंर्तज्ञानमां
विशेष स्थिर थई, कषायनी त्रण चोकडीनो अभाव करी, निर्विकल्प
ध्यानदशा प्रगटे तेने अप्रमत्त नामे सातमी भूमिका कहे छे; पछी
सविकल्पदशा आवे तेने छठ्ठुं प्रमत्तगुणस्थान कहे छे. मुनि आ बे दशा
वच्चे वारंवार झूल्या करे छे.
निर्विकल्पदशामां जो विशेष काळ टके तो मुनि अन्तर्मुहूर्तमां
केवळज्ञान प्राप्त करे छे. एम न थाय त्यां सुधी हजारो वार छठ्ठी–सातमी
भूमिका बदल्या करे छे. त्रणे काळे मुनिदशा आवी ज होय छे. ते मुनिदशा
बाह्य तेम ज अभ्यंतर परिग्रहथी रहित होय छे, आत्मज्ञान सहित नग्न–
दिगंबरपणुं होय छे. सातमे गुणस्थाने बुद्धिपूर्वक विकल्पो छूटी जाय छे
अने आत्मस्वरूपनी स्थिरतामां तद्न निर्विकल्प आनंदमां लीन थई जाय
छे, त्यां क्षणे क्षणे साक्षात् सिद्ध परमात्मा जेवो आनंद अंशे अनुभवाय
छे. ‘हुं आत्मा छुं, शुद्ध आनंदस्वरूप छुं’ एवा विकल्प पण त्यां होता
नथी, मात्र स्वसंवेदन होय छे. –आवी स्थिति–साधकदशा भगवान
कुंदकुंदाचार्यदेवनी हती, क्षणे प्रमत्त अने क्षणे अप्रमत्त दशामां तेओ झूलता
हता.
आचार्यदेवने केवळज्ञान प्रगट थवामां संज्वलन कषायनो अंश
जीतवानो बाकी रह्यो छे. क्षणमां छठ्ठी भूमिकामां आवतां आत्मस्वभावनी
वात करे छे, ने क्षणमां ते शुभ विकल्प तूटीने सातमी भूमिकामां मात्र
अतीन्द्रिय आत्मानंदमां ठरे छे, आवी ते उत्कृष्ट साधकदशा छे; ते तेमनो
निजवैभव छे. ते निजवैभवथी तेओ आत्मानुं वास्तविक स्वरूप जगतने
कहे छे के ज्ञायक नित्य एकरूप चैतन्यज्योति छे, ते वर्तमान क्षणिक
अवस्थाना कोई भेदरूपे नथी पण केवळ ज्ञायकपणे शुद्ध छे, अखंड
एकाकार ज्ञायकस्वभावमां अप्रमत्त–प्रमत्तना भेद परमार्थे नथी.
–समयसार प्रवचनो–१ पृ. १५७–८
प्रकाशक:– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली)
मुद्रक:– चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली) ता. २–९–५१