Atmadharma magazine - Ank 096
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष ८ मुं, अंक १२ मो, वीर सं. २४७७, आसो (वार्षिक लवाजम रूा. ३–०–०)
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वीतरागनां वचन
सर्वज्ञ वीतराग कहे छे के अमे स्वतंत्र अने जुदा छीए, ने तुं पण पूर्ण
स्वतंत्र अने जुदो छे; कोईनी मददनी तारे जरूर नथी. –आवां निस्पृही वचन
वीतराग विना बीजुं कोण कहे?
देव–गुरु–धर्म वीतरागी स्वतंत्र तत्त्व छे, तेम हुं पण स्वतंत्र अनंत
ताकातवाळो छुं, परना आश्रय विना हुं मारा अनंत गुणोने प्रगट करी शकुं
छुं. –आवी यथार्थ मान्यता ते सम्यग्दर्शन छे. आम होवा छतां जे एम माने
के देव–गुरु–शास्त्र मने तारी देशे, ते जीवे– ‘आत्मा अनंत पुरुषार्थ स्वतंत्रपणे
करी शके छे’ एम वीतरागे कह्युं छे ते वीतरागनुं वचन मान्युं नथी.
–समयसार प्रवचनो भाग १ पृ. ११७.