देशनालब्धि, सम्यक्त्वरूपे परिणमेला
एवा साक्षात् ज्ञानीना निमित्ते ज पमाय
छे. एकला शास्त्रथी के कोई मिथ्याद्रष्टिना
निमित्तथी देशनालब्धि पमाती नथी. जे
पोते मिथ्याद्रष्टि छे एवा जीवने जे
पोतानी देशनालब्धिना निमित्त तरीके
स्वीकारे ते जीवमां तो सम्यग्दर्शन
पामवानी पात्रता पण होती नथी.–आ
बाबत दरेक जिज्ञासुओने बहु जरूरनी
होवाथी ते संबंधी अगत्यनुं लखाण आ
अंकमां अपायुं छे, ते दरेक जिज्ञासुओए
बराबर समजवुं.