Atmadharma magazine - Ank 099
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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* भावना *
“अहो, एक चिदानंदी भगवान
सिवाय बीजा कोई भावने मनमंदिरमां
आणुं नहि, एक चैतन्यदेवने ज ध्येयरूप
बनावीने तेना ध्याननी लीनताथी
आनंदकंद स्वभावनी रमणतामां हुं कयारे
पूर्ण थाउं! एकला चैतन्यस्वभावनो ज
आश्रय करीने केवळज्ञान प्रगट करवुं ते
तीर्थंकरोना कुळनी टेक छे......अनंता
तीर्थंकरो जे पंथे विचर्या ते ज पंथना
चालनारा अमे छीए. हुं चिदानंद नित्य छुं
ने संसार बधो अनित्य छे; मारो आनंदकंद
चिदानंद स्वभाव ए ज मने शरण छे,
जगतमां बीजुं कांई मने शरण नथी. –
आवी भावना पण दुर्लभ छे. अहो! ज्यारे
आवी भावना भावीने तीर्थंकर भगवान
दीक्षा लेता हशे ते काळ अने ते प्रसंग केवो
हशे! जीवने आत्माना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्रनी भावना पण अनंतकाळमां दुर्लभ
छे.”
लाठीः दीक्षाकल्याणक प्रवचनमांथी.
*