Atmadharma magazine - Ank 099
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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पोषः २४७८ः ४७ः
* वढवाण शहेरना भाईश्री चुनीलाल लक्ष्मीचंद शाह कारतक वद २ना रोज स्वर्गवास पाम्या छे. तेओ
तत्त्वना जिज्ञासु होवा उपरांत वढवाण–मुमुक्षुमंडळना एक आगेवान सभ्य हता. पू. गुरुदेवश्री प्रत्ये तेमने
खास भक्ति हती, अने आंखोनी तकलीफ होवा छतां पोतानो घणो समय तेओ स्वाध्यायमां गाळता हता.
स्वर्गवास पहेलां बे दिवस अगाउ–कारतक सुद पूनमे मुमुक्षुमंडळने पोताने घेर बोलावीने आत्मसिद्धि वगेरेनी
स्वाध्याय करावी हती.
*
* लाठीना भाईश्री लालजी वालजी शेठ कारतक वद १० ना रोज सोनगढमां स्वर्गवास पाम्या छे. तेओ
लाठी–मुमुक्षुमंडळना एक आगेवान हता. पू. गुरुदेवश्री प्रत्ये तेमने भक्ति हती अने केटलाक वखतथी
सत्समागमनो लाभ लेवा माटे तेओ सोनगढ रहेता हता. मात्र दोढ दिवसनी ब्लड प्रेशरनी बीमारीमां तेमनो
स्वर्गवास थई गयो हतो.
*
* मात्र त्रेवीस वर्षनी भरयुवान वये राजकोटना भाई श्री हसमुखलाल चंदुलाल महेतानो (शेठ
नानालाल काळीदासना पुत्री विजयाबेनना सुपुत्रनो), मागसर सुद २ ना रोज रंगुनमां खटाराना अकस्मातथी
स्वर्गवास थई गयो छे. तेओ मोटरसाईकल उपर जता हता त्यां पाछळथी एक खटारो अथडातां तेओ ऊथली
पडया अने खटारानुं पैडुं तेमनी छाती उपर ज थंभी गयुं. आ अकस्मात बाद चारेक कलाकमां तेमनो स्वर्गवास
थई गयो. तेमना माता–पिताना तेओ एकना एक पुत्र हता. तेमनो स्वभाव नम्र अने हसमुखो हतो. पू.
गुरुदेवश्री प्रत्ये तेमने भक्ति हती अने अनेकवार तेओ सोनगढ आवता. तत्त्व समजवानो पण तेमने उल्लास
हतो.
तेमना स्वर्गवासनो आ प्रसंग आत्मार्थी जीवोने माटे घणो ज वैराग्यप्रेरक छे. आ प्रसंगना समाचार
सांभळतां ज पू. गुरुदेवश्रीने पण एवी घेरी वैराग्यप्रेरणा जागी हती के अनेक दिवसो सुधी तो प्रवचनमां पण
ते प्रसंगनुं उदाहरण आपीने वैराग्यप्रेरक उपदेश आपता हता; तेमां तेओ श्री कहेतां केः ‘अहो! जुओ तो
खरा.....आवी जुवानजोध वयमां देह छोडी छोडीने जीवो चाल्या जाय छे. जेणे जीवनमां देहथी जुदा चैतन्यनुं
भान कर्युं होय तेने तो समाधिमरणे देह छूटे छे. जेनी द्रष्टि आत्मा उपर छे तेनी द्रष्टिमां तो देहनो संयोग अने
वियोग ए बंने सरखां ज छे. आ मनुष्यजीवन पामीने चैतन्यनी संभाळ करवा जेवी छे. मनुष्यभव तो घणा
जीवो पामे छे ने आत्माना भान विना घणा मरे छे, पण जेणे आत्मानुं भान करीने समाधिमरणे देह छोडयो
तेनो मनुष्यअवतार सफळ छे. आवा प्रसंग उपरथी तो वैराग्य लेवा जेवो छे.....एक समय पण प्रमाद करवा
जेवो नथी. खरेखर ऊज्जवळ आत्माओनो स्वतः वेग तो वैराग्यमां झंपलाववुं ए ज छे.
भाई हसमुखना स्वर्गवासनो आ प्रसंग बन्या पछी, तेमना माता–पिताए पण हवे तो निवृत्ति लईने
आत्मार्थजीवन गाळवा जेवुं छे.
स्थूळ जीवोने आवा बनावोमां ‘अकस्मात’ जेवुं लागे, पण खरेखर अकस्मात कांई नथी; ए तो बधुं
जगतना क्रमबद्ध नियम प्रमाणे ज थाय छे. जे समये जे थवानुं छे ते बधुं सर्वज्ञना ज्ञानमां पहेलेथी भास्युं छे;
त्यां अकस्मात कोने कहेवो? करोडपति जेना कुटुंबीजनो होय, छतां शुं तेना मृत्युनी क्षणमां एम समयनो पण
फेरफार कोई करी शके तेम छे? उपरथी ईंद्र उतरे तो पण कोईने बचावी शके तेम नथी. ईंद्रने चार बाजु हजारो
अंगरक्षक देवोना टोळां हाथमां चामर लईने ऊभा होय.......पण ज्यां आयुष्य पूरुं थाय त्यां कोई ते ईंद्रने पण
बचाववा समर्थ नथी.
‘संसारनी स्थिति ज एवी छे. तेमां चैतन्य सिवाय बीजुं कोई शरण नथी; माटे पोते संसारनो मोह
छोडीने समयमात्रना पण प्रमाद वगर आत्मानुं शरण करी लेवा जेवुं छे.’