खास भक्ति हती, अने आंखोनी तकलीफ होवा छतां पोतानो घणो समय तेओ स्वाध्यायमां गाळता हता.
स्वर्गवास पहेलां बे दिवस अगाउ–कारतक सुद पूनमे मुमुक्षुमंडळने पोताने घेर बोलावीने आत्मसिद्धि वगेरेनी
स्वाध्याय करावी हती.
सत्समागमनो लाभ लेवा माटे तेओ सोनगढ रहेता हता. मात्र दोढ दिवसनी ब्लड प्रेशरनी बीमारीमां तेमनो
स्वर्गवास थई गयो हतो.
स्वर्गवास थई गयो छे. तेओ मोटरसाईकल उपर जता हता त्यां पाछळथी एक खटारो अथडातां तेओ ऊथली
पडया अने खटारानुं पैडुं तेमनी छाती उपर ज थंभी गयुं. आ अकस्मात बाद चारेक कलाकमां तेमनो स्वर्गवास
थई गयो. तेमना माता–पिताना तेओ एकना एक पुत्र हता. तेमनो स्वभाव नम्र अने हसमुखो हतो. पू.
गुरुदेवश्री प्रत्ये तेमने भक्ति हती अने अनेकवार तेओ सोनगढ आवता. तत्त्व समजवानो पण तेमने उल्लास
हतो.
ते प्रसंगनुं उदाहरण आपीने वैराग्यप्रेरक उपदेश आपता हता; तेमां तेओ श्री कहेतां केः ‘अहो! जुओ तो
खरा.....आवी जुवानजोध वयमां देह छोडी छोडीने जीवो चाल्या जाय छे. जेणे जीवनमां देहथी जुदा चैतन्यनुं
भान कर्युं होय तेने तो समाधिमरणे देह छूटे छे. जेनी द्रष्टि आत्मा उपर छे तेनी द्रष्टिमां तो देहनो संयोग अने
वियोग ए बंने सरखां ज छे. आ मनुष्यजीवन पामीने चैतन्यनी संभाळ करवा जेवी छे. मनुष्यभव तो घणा
जीवो पामे छे ने आत्माना भान विना घणा मरे छे, पण जेणे आत्मानुं भान करीने समाधिमरणे देह छोडयो
तेनो मनुष्यअवतार सफळ छे. आवा प्रसंग उपरथी तो वैराग्य लेवा जेवो छे.....एक समय पण प्रमाद करवा
जेवो नथी. खरेखर ऊज्जवळ आत्माओनो स्वतः वेग तो वैराग्यमां झंपलाववुं ए ज छे.
त्यां अकस्मात कोने कहेवो? करोडपति जेना कुटुंबीजनो होय, छतां शुं तेना मृत्युनी क्षणमां एम समयनो पण
फेरफार कोई करी शके तेम छे? उपरथी ईंद्र उतरे तो पण कोईने बचावी शके तेम नथी. ईंद्रने चार बाजु हजारो
अंगरक्षक देवोना टोळां हाथमां चामर लईने ऊभा होय.......पण ज्यां आयुष्य पूरुं थाय त्यां कोई ते ईंद्रने पण
बचाववा समर्थ नथी.