Atmadharma magazine - Ank 099
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः ४८ः आत्मधर्मः ९९
शक्तिओ
(२)
* चिति शक्ति *
*
जडत्वस्वरूप चितिशक्ति छे; अजडत्व एटले चेतनत्व ते चितिशक्तिनुं स्वरूप छे.–आवी चितिशक्ति
आत्माना ज्ञानमात्रभावमां ऊछळे छे.
पुद्गल ते जडस्वरूप छे ने आत्मा अजडत्वस्वरूप छे; जेम जडस्वरूप पुद्गलमां चेतनपणुं जराय नथी
तेम अजडत्वस्वरूप आत्मामां जडपणुं जराय नथी. राग पण परमार्थे आत्मानुं स्वरूप नथी तेथी ते पण जड
छे. रागमां के शरीरादिमां अटकवानुं आत्मानुं स्वरूप नथी. आत्मामां चेतनपणुं पूरेपूरुं छे, तेमां रागनो के
जडनो अभाव छे.–आवी आत्मानी चितिशक्ति छे.
आ चितिशक्ति आत्माना द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापी छे, एटले आत्माना द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे
चेतनरूप छे, तेमां जडपणुं नथी. जडना द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे जडरूप छे, तेमां चेतनपणुं नथी. आत्मामां
जडपणुं बिलकुल नथी एम कहेतां जडना लक्षे थयेला भावो पण आत्माना स्वरूपमां नथी–ए वात तेमां आवी
जाय छे. चैतन्यमूर्ति आत्माना द्रव्य–गुण के पर्याय कोईनुं एवुं स्वरूप नथी के रागमां अटके. जे रागमां अटके
तेने आत्मानी पर्याय गणी नथी. चैतन्य तरफ वळीने अभेद थाय ते ज आत्मानी पर्याय छे, रागमां अटके ते
चैतन्यनी पर्याय ज नथी.
आ तो अंतरनी द्रष्टिनी वात छे. ज्यां अंतर स्वभावमां द्रष्टि थई त्यां धर्मी जीव रागमां अटकतो ज
नथी; रागने ते पोतानुं स्वरूप मानतो ज नथी, तेनी द्रष्टि तो अखंड चैतन्यबिंब आत्माने ज स्वीकारे छे.
आत्मानी चैतन्यशक्ति छे, ते रागमां अटके एवो तेनो स्वभाव नथी.
पहेलां आत्मानी जीवत्वशक्ति बतावी, तेनाथी आत्मा अनादिअनंत जीवे छे. ते जीवत्वनी साथे जो आ
चैतन्यशक्ति न होय तो आत्मा जड थई जाय; माटे आ चितिशक्ति जुदी वर्णवी छे. चितिशक्ति वडे ज
आत्मानुं जीवत्व जणाय छे. आत्मा चितिशक्तिने लीधे सदा जागृतस्वरूप छे. पुद्गलमां तो जीवत्व पण नथी
अने चैतन्यपणुं पण नथी, आत्मामां जीवत्व छे अने ते जीवत्व चैतन्यमय छे. जीवत्वशक्तिनुं लक्षण
चितिशक्ति छे; आत्मानुं जीवत्व केवुं छे?–के चित्शक्तिमय छे. ए
अहो! अत्यारे तो पू. गुरुदेवश्री जेवा महान संत आपणने आत्मानुं शरण बतावीने
अपूर्व कल्याणपंथे प्रेरी रह्या छे. आवो उत्तम अने मंगल योग तारी समक्ष मोजूद होवा छतां,
अरे जीव! आवा प्रसंगे आर्त्तध्यान करीने तारा आत्माने पापबंधनथी शा माटे बांधवो
जोईए? ? ? आ टाणे तो खरेखर आत्मा तरफनो उल्लास प्रगट करीने संसारना समस्त
प्रसंगनो उल्लास तोडी नाखवा जेवुं छे.
अहो! संसारमां उग्रमां उग्र संकट प्रसंगे पण जे संतोए पोताना सहज वैराग्यने
छोडयो नथी पण ऊलटी तेमां वृद्धि करी छे ते संतोना चरणमां नमस्कार हो! *