रीते चितिशक्तिथी जीवत्व ओळखाय छे अने जीवत्वथी आखुं द्रव्य लक्षमां आवे छे. बधी शक्तिओना पिंडरूप
द्रव्यने ओळखवानुं लक्षण ‘ज्ञान’ छे, ते ज्ञानमात्रभावमां आ बधी शक्तिओ भेगी ज परिणमे छे.
द्रव्यनुं अस्तित्व ज सिद्ध थई शकतुं नथी.
आत्मा जड थई जाय ने जीवनशक्ति पण जडनी थई जाय. माटे आत्माने ज्ञानमात्र कहेतां आवी चितिशक्ति
पण भेगी आवी ज जाय छे.
थाय छे के ‘आ करियावर आ बाईनो छे.’ पण जो ते कन्या ज मरी गई होय तो करियावर कोनो? तेम अहीं
शक्तिओनुं वर्णन छे ते बधो जीवनो करियावर छे, जीवनी ऋद्धि छे, ते जीवनी जाहेरात करे छे. आ शक्तिओ
वडे ते शक्तिने धारण करनार एवा जीवने जो न ओळखे अने जडऋद्धिवाळो के रागवाळो ज जीवने माने तो ते
जीवे चैतन्यमय जीवने मरी गयेलो मान्यो छे. एटले के तेने शुद्ध अनंतशक्तिसंपन्न जीवनी श्रद्धा नथी.
जीवत्वशक्ति, चितिशक्ति वगेरे शक्तिओ छे ते तो जीवताजागता जीवनी जाहेरात करे छे. जीव वगर शक्तिओ
कोनी? शुद्ध जीवनी प्रतीत वगर आ शक्तिओनी ओळखाण थाय नहि.
थती नथी, पण अनंतधर्मना पिंडरूप आत्माना आश्रये ज आ शक्ति रहेली छे तेथी तेनी सामे जोईने ज आ
शक्तिनी यथार्थ कबूलात थई शके छे.
सदा जागतो–स्वपरप्रकाशक छे.
अने जुओ, अमारो व्यवहार!–ते करतां करतां केटलो धर्म थाय?’ ज्ञानी तेना व्यवहारनो उपहास करे छे के
अरे! हाल रे हाल, जोई तारी क्रिया, अने जोयो तारो व्यवहार! आत्माना स्वरूपमां तेनुं अस्तित्व ज कोण
गणे छे? तें मानेली शरीरनी क्रिया तो जड छे, तेनो आत्मामां तद्न अभाव छे अने क्षणिक रागरूप व्यवहारनी
लागणी ते पण चैतन्यनो स्वभाव नथी; ए रीते तारी मानेली क्रियानुं अने व्यवहारनुं अस्तित्व ज
आत्मस्वभावमां नथी, तो पछी तेनाथी आत्मानो धर्म थवानी वात ज कयां रही?
आश्रये रहेली छे, ते आत्माना आश्रये ज धर्म थाय छे.
चेतनपणुं नथी, एटले चितिशक्ति तो आत्मामां रागनो अभाव बतावे छे. आत्मा अजडत्वस्वरूप छे एटले के
परिपूर्ण चैतन्यस्वरूप छे–एम कह्युं तेमां परनो, विकारनो अने अल्पज्ञतानो आत्माना स्वभावमांथी निषेध
थई ज गयो.–आत्मानी अनंत शक्तिमां आवी एक चितिशक्ति छे. आत्माने ओळखीने तेना आश्रये
ज्ञानमात्रभावनुं परिणमन थतां आ शक्ति पण तेमां भेगी ज परिणमे छे. अखंड आत्माना आश्रये तेनी बधी
शक्तिओ एक साथे ज परिणमे छे. तेमांथी बीजी चितिशक्तिनुं वर्णन पूरुं थयुं *