Atmadharma magazine - Ank 099
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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पोषः २४७८ः ४९ः
रीते चितिशक्तिथी जीवत्व ओळखाय छे अने जीवत्वथी आखुं द्रव्य लक्षमां आवे छे. बधी शक्तिओना पिंडरूप
द्रव्यने ओळखवानुं लक्षण ‘ज्ञान’ छे, ते ज्ञानमात्रभावमां आ बधी शक्तिओ भेगी ज परिणमे छे.
आत्मद्रव्यमां अनंत शक्तिओ छे. जो एक ज शक्ति होय तो तो ते शक्ति पोते ज द्रव्य थई जाय, एटले
शक्तिनो अभाव थाय, अने शक्तिनो अभाव थतां द्रव्यनो पण अभाव थाय. अनंत शक्तिना स्वीकार वगर
द्रव्यनुं अस्तित्व ज सिद्ध थई शकतुं नथी.
आत्मानी चितिशक्ति द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां छे एटले के द्रव्य–गुण ने पर्याय त्रणेय चैतन्यस्वरूप
छे. चितिशक्ति वगर ‘जीवनशक्ति जीवनी छे’–एम कई रीते ओळखाय? जो आत्मामां चितिशक्ति न होय तो
आत्मा जड थई जाय ने जीवनशक्ति पण जडनी थई जाय. माटे आत्माने ज्ञानमात्र कहेतां आवी चितिशक्ति
पण भेगी आवी ज जाय छे.
अनंती शक्ति बतावीने अहीं आत्मानो महिमा बताव्यो छे. चैतन्यमूर्ति जागृतज्योत आत्मानी सामे
जोवा माटे आ शक्तिओनुं वर्णन छे. जेम लोको करियावर पाथरे छे तेमां खरेखर तो जीवती कन्यानी जाहेरात
थाय छे के ‘आ करियावर आ बाईनो छे.’ पण जो ते कन्या ज मरी गई होय तो करियावर कोनो? तेम अहीं
शक्तिओनुं वर्णन छे ते बधो जीवनो करियावर छे, जीवनी ऋद्धि छे, ते जीवनी जाहेरात करे छे. आ शक्तिओ
वडे ते शक्तिने धारण करनार एवा जीवने जो न ओळखे अने जडऋद्धिवाळो के रागवाळो ज जीवने माने तो ते
जीवे चैतन्यमय जीवने मरी गयेलो मान्यो छे. एटले के तेने शुद्ध अनंतशक्तिसंपन्न जीवनी श्रद्धा नथी.
जीवत्वशक्ति, चितिशक्ति वगेरे शक्तिओ छे ते तो जीवताजागता जीवनी जाहेरात करे छे. जीव वगर शक्तिओ
कोनी? शुद्ध जीवनी प्रतीत वगर आ शक्तिओनी ओळखाण थाय नहि.
पूर्वे जीवत्वशक्तिमां कह्या हता ते पांच बोल अहीं पण लागु पाडवा के आ चितिशक्ति कोई परना,
विकारना, पर्यायना के एकेक शक्तिना आश्रये नथी माटे ते कोईनी सामे जोवाथी आ शक्तिनी यथार्थ कबूलात
थती नथी, पण अनंतधर्मना पिंडरूप आत्माना आश्रये ज आ शक्ति रहेली छे तेथी तेनी सामे जोईने ज आ
शक्तिनी यथार्थ कबूलात थई शके छे.
अनंत अनंत शक्तिओनां पिंडरूप चैतन्यतत्त्व छे, ते कोई निमित्तथी के रागथी ओळखातुं नथी पण
चैतन्यप्रकाशथी ओळखाय छे. राग तो आंधळो छे, तेनामां चितिशक्ति नथी, आत्मा पोतानी चितिशक्तिवडे
सदा जागतो–स्वपरप्रकाशक छे.
जुओ! आत्मानी अनंतशक्तिओमां कयांय पण बहारनी क्रिया के व्यवहारनो शुभराग आवता नथी;
आत्मानी अनंती शक्तिमां कयांय तेनी तो किंमत ज करता नथी. अज्ञानी कहे छे के ‘जुओ, अमारी क्रिया!
अने जुओ, अमारो व्यवहार!–ते करतां करतां केटलो धर्म थाय?’ ज्ञानी तेना व्यवहारनो उपहास करे छे के
अरे! हाल रे हाल, जोई तारी क्रिया, अने जोयो तारो व्यवहार! आत्माना स्वरूपमां तेनुं अस्तित्व ज कोण
गणे छे? तें मानेली शरीरनी क्रिया तो जड छे, तेनो आत्मामां तद्न अभाव छे अने क्षणिक रागरूप व्यवहारनी
लागणी ते पण चैतन्यनो स्वभाव नथी; ए रीते तारी मानेली क्रियानुं अने व्यवहारनुं अस्तित्व ज
आत्मस्वभावमां नथी, तो पछी तेनाथी आत्मानो धर्म थवानी वात ज कयां रही?
अहीं तो आत्मामां त्रिकाळ रहेनारी आत्मानी शक्तिओनुं वर्णन छे; तेमां एकेक शक्ति सामे जोवाथी
पण धर्म थतो नथी तो पछी शरीरनी क्रियाथी के रागथी धर्म थाय ए वात केवी? बधी शक्तिओ आत्माना
आश्रये रहेली छे, ते आत्माना आश्रये ज धर्म थाय छे.
आ जीवत्वशक्ति, चितिशक्ति वगेरे बधी शक्तिओ आत्मामां भावस्वरूप छे, ते बधी शक्तिओनो
एकरूप पिंड ते आत्मद्रव्य छे. चितिशक्ति चेतनद्रव्यने ओळखावनारी छे, पण रागादिने करनारी नथी. रागमां
चेतनपणुं नथी, एटले चितिशक्ति तो आत्मामां रागनो अभाव बतावे छे. आत्मा अजडत्वस्वरूप छे एटले के
परिपूर्ण चैतन्यस्वरूप छे–एम कह्युं तेमां परनो, विकारनो अने अल्पज्ञतानो आत्माना स्वभावमांथी निषेध
थई ज गयो.–आत्मानी अनंत शक्तिमां आवी एक चितिशक्ति छे. आत्माने ओळखीने तेना आश्रये
ज्ञानमात्रभावनुं परिणमन थतां आ शक्ति पण तेमां भेगी ज परिणमे छे. अखंड आत्माना आश्रये तेनी बधी
शक्तिओ एक साथे ज परिणमे छे. तेमांथी बीजी चितिशक्तिनुं वर्णन पूरुं थयुं *