Atmadharma magazine - Ank 099
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः प०ः आत्मधर्मः ९९
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’
(प)
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां ४७
नयोद्वारा आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे तेना
उपर पूज्य गुरुदेवश्रीनां विशिष्ट अपूर्व
प्रवचनोनो सार
(अंक ९८ थी चालु)
*
(जिज्ञासु शिष्य पूछे छे केः ‘प्रभो! आ आत्मा कोण
छे ने तेनी प्राप्ति कई रीते थाय छे?’ तेना उत्तरमां
आचार्यदेव कहे छे के आत्मा अनंत धर्मोवाळुं एक द्रव्य छे अने
अनंत नयोवाळा श्रुतज्ञान–प्रमाण वडे स्वानुभवथी ते जणाय
छे. प्रमाण वडे जणाता आत्मानुं अहीं ४७ नयोथी वर्णन चाले
छे. तेमां द्रव्यनय, पर्यायनय तेम ज सप्तभंगीना अस्तित्व–
नास्तित्व आदि सात नयो–एम कुल नव नयोथी जे वर्णन कर्युं
तेनुं विवेचन अत्यारसुधीमां आवी गयुं छे, त्यारपछी
आगळनुं अहीं आपवामां आवे छे.)
(१०) विकल्पनये आत्मानुं वर्णन
त्मद्रव्य विकल्पनये, बाळक, कुमार अने वृद्ध एवा एक पुरुषनी माफक, सविकल्प छे.
अहीं विकल्पनो अर्थ भेद छे. जेम एक पुरुषमां बाळक, कुमार अने वृद्ध एवा भेद पडे छे तेम भेदनयथी
आत्मा गुण–पर्यायना भेदवाळो छे. वस्तुमां अनंत गुणो छे तेमने परस्पर कथंचित् भेद छे अने तेनी क्रमेक्रमे
थती पर्यायोमां पण परस्पर भेद छे. वस्तुमां दर्शन–ज्ञान–चारित्र इत्यादि जे भेद छे तेने विकल्प कहेवाय छे.
विकल्प एटले राग नहि पण विकल्प एटले भेद. एक आत्मा ज एक समयमां भेदवाळो छे. विकल्पनयथी जोतां
आत्मा अनंत गुण–पर्यायोना भेदपणे भासे छे, एवो तेनो धर्म छे. जेम पुरुष एक होवा छतां ते बाळक,
युवान वगेरे भिन्न भिन्न अवस्थाओरूपे जणाय छे, तेम आत्मा वस्तुपणे एक होवा छतां तेनामां गुण–
पर्यायना भेद पण छे. गुण–पर्यायना भेद पडे छे ते कांई उपाधि नथी, विकार नथी, दोष नथी, पण वस्तुनुं
स्वरूप ज छे. द्रष्टांतमां तो पुरुषनी बाळ, युवान ने वृद्ध दशा एम साथे नथी पण क्रमे छे, बाळपणा वखते
युवानपणुं नथी ने युवानपणा वखते वृद्धपणुं नथी; परंतु सिद्धांतमां ते प्रमाणे नथी; सिद्धांतमां तो आत्मामां
अनंत धर्मो एक साथे ज कथंचित् भेदरूप रहेला छे, एक धर्म पहेलो ने बीजो धर्म पछी–एवा प्रकारनो भेद
नथी, पण दर्शन ते ज्ञान नहि, ज्ञान ते दर्शन नहि–एवा भेदथी दर्शन–ज्ञान–चारित्र वगेरे अनंतधर्मो एक साथे
ज रहेला छे. एक समयमां अनंता गुणो छे; ‘अनंता गुणो’ एम कहेतां