ज कथंचित् भेद सिद्ध थई जाय छे. एक धर्मने बीजा धर्मथी जो भेद न होय तो अनंता धर्मो ज न रहे.
द्रव्य एक छे ने प्रदेशो असंख्य छे; तेमांथी एक प्रदेश बीजा प्रदेशपणे नथी एवो भेद छे.
द्रव्य एक अने पर्यायो अनंत; एकेक गुणनी एकेक पर्याय, ए रीते अनंत गुणोनी अनंती पर्यायो एक
त्रणकाळनी अनंत पर्यायो छे, तेमांथी एक समयनी पर्याय ते बीजा समयनी पर्यायथी भेदवाळी छे.
प्रकारे भेद पडे छे.
–आवो आत्मानो भेद धर्म छे; विकल्पनयथी जोतां आत्मा भेदवाळो जणाय छे. पण ए ध्यान राखवुं के
कहेवाय. ते तो एकांत मिथ्या मान्यता छे.
एम न समजवो. परथी तो तद्न भेद ज छे–जुदापणुं ज छे, पण अहीं तो पोतामां ने पोतामां ज कथंचित् भेद–
अभेदपणुं छे, तेनी आ वात छे. आ भेद ते अशुद्धता नथी, दोष नथी पण वस्तुनो धर्म छे; शुद्ध आत्मामां पण
आवो भेदधर्म छे. सिद्धना आत्मामांथी ज्ञान–दर्शन–चारित्र इत्यादिना भेदो नीकळी जता नथी, सिद्धना
आत्मामां पण तेवा भेद छे, तेने विकल्प कहेवाय छे. सिद्धने रागरूप विकल्प नथी पण आवो गुण–भेदरूप
विकल्प छे.–आम विकल्पनयवाळो साधक जाणे छे, सिद्धने कांई नय होता नथी.
वस्तुनो स्वभाव छे. सिद्धने पण दरेक समये नवी नवी आनंदमग्न पर्यायो थया करे छे. आत्मानी अपूर्ण
पर्यायनो नाश थईने पूर्ण पर्याय प्रगट थाय, पण पछी ते पूर्ण पर्यायनो नाश थईने फरीने अपूर्ण पर्याय थाय
एम कदी न बने. अने पूर्णदशा प्रगटी गया पछी परिणमन बंध थई जाय–एम पण नथी, पूर्णदशा थया पछी
एवी ने एवी पूर्णदशापणे सदाय परिणमन थया ज करे छे. त्यां पण गुणभेद अने पर्यायभेद रहे छे, आवो
आत्मानो भेदधर्म छे. आ धर्म दरेक पदार्थमां अनादिअनंत छे.
आत्मद्रव्य अविकल्पनये, एक पुरुषमात्रनी माफक अविकल्प छे. जेम एक पुरुष बाल–युवान–वृद्ध एवा
अनंत थई जता नथी, आत्मा तो एक ज छे. जेम बाल, युवान ने वृद्ध त्रणे अवस्थामां रहेनारो पुरुष तो एक
ज छे, जे बाल अवस्थामां हतो ते ज युवान अवस्थामां छे,–ए रीते पुरुषपणे तेमां भेद नथी पडता, पुरुषपणे
तो एक ज छे; तेम गुण–पर्यायना भेद होवा छतां द्रव्यपणे तो आत्मा एक अभेद छे. अभेदनयथी आत्माने
जुओ तो तेमां भेद नथी, आवो आत्मानो अभेदधर्म छे. वस्तुमां जो भेद न होय तो अनंत धर्मो न होई शके,
अने जो अभेद न होय तो वस्तुनी एकता न होई शके अथवा दरेक गुण पोते ज स्वतंत्र वस्तु ठरे. गुणो अनंत
होवा छतां तेनो धरनार गुणी तो