Atmadharma magazine - Ank 099
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः प२ः आत्मधर्मः ९९
एक ज छे. शक्तिओ अनंत अने शक्तिमान एक–ए रीते वस्तुमां भेद–अभेद धर्म छे. अभेदनयमां तो
निगोदथी सिद्ध सर्व अवस्थामां रहेलो एक अभेद आत्मा ज भासे छे, निगोद अने सिद्ध एवी पर्यायना भेदो
तेमां भासता नथी. जेम बाल, युवान, वृद्ध दशामां पुरुष तो पुरुष ज छे तेम अशुभ, शुभ के शुद्ध सर्वे
अवस्थामां आत्मा तो ते ने ते ज छे; अवस्थाना के गुणना भेद पाडया वगर एक अभेद आत्माने लक्षमां ल्ये
तेनुं नाम अभेदनय अथवा अविकल्पनय छे.
वस्तुमां भेदधर्म अने अभेदधर्म बंने एक समयमां एक साथे छे; आत्मा त्रणेकाळे आवा धर्मवाळो छे;
आवी अनंत धर्मवाळी वस्तुनुं ज्ञान ते अनेकान्त छे. आवा ज्ञान वगर आत्मानो अनुभव थाय नहि.
जेम राजाने तेना विशेषणोथी संबोधन करीने अरजी करे तो जवाब आपे, तेम चैतन्यस्वरूप आत्मा
त्रणलोकनो राजा छे–त्रणलोकमां श्रेष्ठ पदार्थ आत्मा छे, तेने तेना अनंतधर्मोथी जेम छे तेम संबोधे–जाणे तो ते
जवाब आपे एटले के तेनो अनुभव थाय. अनंत धर्मोवाळा आत्माने जेम छे तेम जाण्या वगर ज्ञान साचुं
थाय नहि, ने ते ज्ञान वगर आत्मानी प्राप्ति–अनुभव–थाय नहि. माटे जेणे धर्म करवो होय तेणे आत्माना
धर्मो वडे आत्माने ओळखवो जोईए.
११ नयोथी आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं; हवे नाम, स्थापना, द्रव्य अने भाव–एवा चार नयोथी
आत्मद्रव्यनुं वर्णन करशे.
(–क्रमशः)
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राजकोट दि. जिनमंदिर संबंधे
राजकोट दि. जैनसमाजना कोई पण भाईने आ मंदिरमां भगवानना
भक्तिपूर्वक दर्शन–पूजन करवा संबंधमां ट्रस्टीओ तरफथी कोईपण प्रकारनो
प्रतिबंध करवामां आव्यो नथी अने आजे पण तेवो कोई प्रतिबंध नथी.
राजकोट दि. जैनसमाजना सौ कोई भाई–बहेनो भक्तिपूर्वक दर्शन–पूजन
करवा खुशीथी आवी शके छे. पूजा वखते पूजननी सर्व सामग्री मंदिरमांथी
हर्षपूर्वक पूरी पाडवामां आवे छे.
पूज्य श्री कानजी स्वामी दिगंबर जैनधर्मनो जे परमसत्य उपदेश आपी
रह्या छे तेने अनुसरीने, आ जिनमंदिरमां नियत करेला वक्ताद्वारा स्वाध्याय
(–प्रवचन) पद्धतिसर चाले छे अने तेनो लाभ लेवा माटे पण कोई उपर
प्रतिबंध करवामां आव्यो नथी, अने आजे पण तेवो कोई प्रतिबंध नथी.
पूज्य श्री कानजी स्वामी दिगंबर जैनधर्मनो जे परमसत्य उपदेश आपी
रह्या छे तेनाथी विरुद्ध जेनी मान्यता होय तेने, तथा मानादि कषाय पोषवा
मागती व्यक्तिने, के बीजा कारणे ट्रस्टीओने योग्य न लागे तेवी व्यक्तिने आ
मंदिरमां प्रवचनादि कार्य करवानी रजा ट्रस्टीओ आपी शके नहि, केम के
ट्रस्टीओ ट्रस्टना नियमोने अनुसरवा बंधायेला छे.
रामजी माणेकचंद दोशी
प्रमुखः राजकोट–मंदिर ट्रस्ट.
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