एक ज छे. शक्तिओ अनंत अने शक्तिमान एक–ए रीते वस्तुमां भेद–अभेद धर्म छे. अभेदनयमां तो
निगोदथी सिद्ध सर्व अवस्थामां रहेलो एक अभेद आत्मा ज भासे छे, निगोद अने सिद्ध एवी पर्यायना भेदो
तेमां भासता नथी. जेम बाल, युवान, वृद्ध दशामां पुरुष तो पुरुष ज छे तेम अशुभ, शुभ के शुद्ध सर्वे
अवस्थामां आत्मा तो ते ने ते ज छे; अवस्थाना के गुणना भेद पाडया वगर एक अभेद आत्माने लक्षमां ल्ये
तेनुं नाम अभेदनय अथवा अविकल्पनय छे.
जवाब आपे एटले के तेनो अनुभव थाय. अनंत धर्मोवाळा आत्माने जेम छे तेम जाण्या वगर ज्ञान साचुं
थाय नहि, ने ते ज्ञान वगर आत्मानी प्राप्ति–अनुभव–थाय नहि. माटे जेणे धर्म करवो होय तेणे आत्माना
धर्मो वडे आत्माने ओळखवो जोईए.
प्रतिबंध करवामां आव्यो नथी अने आजे पण तेवो कोई प्रतिबंध नथी.
राजकोट दि. जैनसमाजना सौ कोई भाई–बहेनो भक्तिपूर्वक दर्शन–पूजन
करवा खुशीथी आवी शके छे. पूजा वखते पूजननी सर्व सामग्री मंदिरमांथी
हर्षपूर्वक पूरी पाडवामां आवे छे.
(–प्रवचन) पद्धतिसर चाले छे अने तेनो लाभ लेवा माटे पण कोई उपर
प्रतिबंध करवामां आव्यो नथी, अने आजे पण तेवो कोई प्रतिबंध नथी.
मागती व्यक्तिने, के बीजा कारणे ट्रस्टीओने योग्य न लागे तेवी व्यक्तिने आ
मंदिरमां प्रवचनादि कार्य करवानी रजा ट्रस्टीओ आपी शके नहि, केम के
ट्रस्टीओ ट्रस्टना नियमोने अनुसरवा बंधायेला छे.