Atmadharma magazine - Ank 099
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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पोषः २४७८ः प३ः
सम्यक्त्वना निमित्तो
जिनसूत्र बहिरंगनिमित्त अने ज्ञानी अंतरंगनिमित्त
श्री नियमसार शुद्धभावअधिकार गा. प३ उपर पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन
(वीर सं. २४७८ कारतक सुद प–७)
*
जिनसूत्र समकितहेतु छे, ने सूत्रज्ञाता पुरुष जे
ते जाण अंतर्हेतु, द्रग्मोहक्षयादिक जेमने. प३.
अर्थः सम्यक्त्वनुं निमित्त जिनसूत्र छे; जिनसूत्रना जाणनारा पुरुषोने (सम्यक्त्वना) अंतरंगहेतुओ कह्या छे,
कारण के तेमने दर्शनमोहना क्षयादिक छे.
टीकाः आ सम्यक्त्वपरिणामनुं बाह्य सहकारी कारण वीतराग–सर्वज्ञना मुखकमळमांथी नीकळेलुं समस्त
वस्तुना प्रतिपादनमां समर्थ एवुं द्रव्यश्रुतरूप तत्त्वज्ञान ज छे. जे मुमुक्षुओ छे तेमने पण उपचारथी
पदार्थनिर्णयना हेतुपणाने लीधे (सम्यक्त्वपरिणामना) अंतरंग हेतुओ कह्या छे, कारण के तेमने
दर्शनमोहनीयकर्मना क्षयादिक छे.
पोताना शुद्ध कारणपरमात्मानी श्रद्धा करीने सम्यग्दर्शन प्रगट करनार जीवने निमित्तो केवां होय ते अहीं
बतावे छे. सम्यग्दर्शन तो पोताना आत्मस्वभावना आश्रये ज थाय छे, कांई निमित्तना आश्रये सम्यग्दर्शन
थतुं नथी. पण ज्ञाननो स्व–परप्रकाशक स्वभाव छे तेथी सम्यग्दर्शनमां निमित्तो केवा होय ते पण जाणवुं
जोईए. निज कारणपरमात्मानी सन्मुख थईने अपूर्व सम्यक्त्व प्रगट करनार जीवने, शुद्ध कारणपरमात्मानुं
स्वरूप बतावनारां जिनसूत्र ते बाह्य निमित्त छे. अने, ते जिनसूत्रनो आशय समजावनारा ज्ञानी पुरुष वगर
एकला जिनसूत्र सम्यक्त्वनुं निमित्त थता नथी,–एम बताववा माटे साथे साथे ए वात पण करी के जिनसूत्रने
जाणनारा ज्ञानी पुरुषो सम्यक्त्वनुं अंतरंग निमित्त छे. निमित्त तरीके शास्त्र करतां ज्ञानीनी मुख्यता बताववा
माटे शास्त्रने बाह्य निमित्त कह्या छे अने ज्ञानीने अंतरंग निमित्त कह्या छे. अंतरंग निमित्त पण पोताथी पर छे
तेथी ते उपचार छे.
वीतरागनी वाणी शुद्ध कारणपरमात्माने उपादेय बतावनारी छे, ते जिनसूत्र छे. ते जिनसूत्र
सम्यग्दर्शननुं बहिरंग निमित्त छे. जे पोते अंतर्मुख थईने शुद्ध कारणपरमात्माने उपादेयपणे अंगीकार करे तेने
ते वाणी बाह्यनिमित्त छे. जुओ, जिनसूत्र केवां होय ते वात पण आमां आवी गई, के पोताना शुद्ध आत्माने
ज जे उपादेय बतावतां होय, पोताना शुद्ध कारणपरमात्माना आश्रये ज जे लाभ कहेतां होय ते ज जिनसूत्र छे;
अने एवा जिनसूत्र ज सम्यक्त्वमां बाह्यनिमित्त छे. ए सिवाय जे शास्त्रो पराश्रयभावथी लाभ थवानुं कहेतां
होय ते खरेखर जिनसूत्र नथी अने ते सम्यक्त्वमां निमित्त पण नथी. शास्त्रोनुं तात्पर्य तो वीतरागता छे, अने
ते वीतरागता अंतरना शुद्ध आत्माना ज अवलंबने प्रगटे छे; तेथी तेवा शुद्ध आत्मानुं अवलंबन करवानुं
बतावनारी जिनवाणी ते ज सम्यक्त्वमां निमित्त छे.