ईंडा नीचे एक लाख सोनामहोर दाटी छे’ तेनो
आशय छोकरो समजे नहि अने मंदिरनुं ईंडुं तोडवा
मांडे तो सोनामहोर मळे नहि ने लक्ष्मीवाळो थाय
नहि. पण पितानुं हृदय जाणनार तेना कोई मित्र
पासेथी ते लखाणनुं रहस्य जाणे के वैशाख सुद
बीजने दिवसे सवारे दस वागे ते मंदिरना ईंडानो
छांयो आपणा घरना फळियामां जे जग्याए आवे
त्यां सोनामहोर दाटी छे.–आम पिताना लखाणनो
ऊंडो आशय समजीने, जे जग्याए धन होय ते
जग्याए खोदे तो धननी प्राप्ति थाय. तेम परम
धर्मपिता श्री सर्वज्ञदेव प्रणीत शास्त्रोमां जे लख्युं छे
तेनी गंभीरता अने ऊंडपनुं रहस्य शुं छे ते अज्ञानी
समजतो नथी अने पोतानी द्रष्टि प्रमाणे अर्थ करीने
बहारमां आत्मधर्मने शोधे छे, तेने आत्मधननी
प्राप्ति थती नथी. जो ज्ञानी–सद्गुरु पासेथी तेनो
गंभीर आशय अने रहस्य समजे अने अंतरमां ज
आत्मधर्मने शोधे तो आत्मामांथी पवित्र धर्मदशा
प्रगटे. जेम डाह्यो पिता पोतानी लक्ष्मी पारका घरमां
दाटवा न जाय, तेम आत्मानो धर्म बहारथी–परना
आश्रयथी–मळे एम कदी भगवान कहे नहि. ज्यां
लक्ष्मी दाटी होय त्यां शोधे तो ते मळे; तेम आत्मानो
धर्म कयांय बहार नथी पण आत्मामां ज छे–एम
समजीने आत्मस्वभावमां शोधे तो आत्मधर्म प्रगटे.
मुद्रकः– चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली) ता. २९–१२–प१