सिद्ध भगवानने अनुभव होय छे
तेवो चोथे गुणस्थाने समकिती
जीवने अनुभव होय छे; सिद्धने
पूर्ण अनुभव होय छे ने
समकितीने अंशे अनुभव होय छे,
पण जात तो ते ज, समकिती
आनंदसागरना अमृतनो अपूर्व
स्वाद लई रह्यो छे, आनंदना
झरणामां मोज माणी रह्यो छे.
Atmadharma magazine - Ank 100
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).
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