Atmadharma magazine - Ank 100
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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सुवर्णपुरी–समाचार
पोष –पूर्णिमा
* परम पूज्य गुरुदेवश्री सुख–शांतिमां बिराजे छे. सवारना प्रवचनमां श्री नियमसार
वंचाय छे, तेमां ११प गाथा वंचाय गई छे, बपोरना प्रवचनमां नवमी वखत समयसार वंचाय छे,
तेमां ४७ शक्तिओनुं वर्णन चाले छे. आ उपरांत बपोरे भक्ति, रात्रे तत्त्वचर्चा वगेरे कार्यक्रम
नियमित चालु छे.
* सौराष्ट्रमां प्रथम मानस्थंभ–धर्मध्वज
गतांकमां जणावेल स्व. भाई हसमुखनी यादगीरीमां तेमना स्नेहीजनो तरफथी आशरे
२१०००, रूा. शुभ दानमां वापरवा माटे काढवामां आव्या छे; तेमांथी ११०००, रूा. सोनगढमां
‘मानस्थंभ’ कराववा माटे आपवामां आव्या छे. अने ए उपरांत बीजा रूा. १प०००, शेठ श्री
नानालालभाई तथा तेमना धर्मपत्नी जडावबेन तरफथी आपवामां आव्या छे. ए रीते एकंदर रूा.
२६०००, मानस्थंभ माटे मळ्‌या छे. आ उपरांत मानस्थंभ माटे रूा. प००१, राणपुरना शेठ
नारणदास करसनजी तरफथी मळ्‌या छे. ‘आत्मधर्म’ ना पहेला ज वर्षना आठमां अंकमां मानस्थंभ
करवा बाबतनी जाहेरात करी हती ते पवित्र कार्य हवे तुरतमां ज शरू थई जशे. ‘मानस्थंभ’ एटले
मानी जीवोना मानने गाळी नाखनारो, धर्मनो उन्नत स्थंभ. ए आकाशचुंबी धर्मस्थंभने दूरदूरथी
जोतां ज ख्यालमां आवी जाय के अहीं श्री जिनेन्द्रदेव अने जिनधर्मनी प्राप्तिनुं स्थान छे, एटले
मानस्थंभ ए खरेखर ‘जैनधर्मनो ध्वज’ छे, एवो पवित्र, उन्नत अने भव्य धर्मस्थंभ कराववानी
सुवर्णपुरीना भक्तजनोनी भावना हवे कार्यरूप परिणमशे. अत्यार सुधी सौराष्ट्रमां कयांय
‘मानस्थंभ’ न हतो, एटले सौराष्ट्रमां आ पहेलवहेलो मानस्थंभ–धर्मध्वज–रोपाशे.
* समयसारनुं प्रकाशनः पंचास्तिकायनुं भाषांतर
गुजराती समयसारनी पहेली आवृत्ति घणा वखतथी अप्राप्य हती, अने आ पवित्र
परमागमनी मागणी अनेक जिज्ञासुओ तरफथी रह्या करती हती. हवे ते समयसारनी बीजी आवृत्ति
छापवानुं शरू थयुं छे. आवृत्ति अमृतचंद्रसूरिनी मूळ संस्कृत टीका सहित छपाय छे. संस्कृत टीका
सहित समयसारनी बीजी आवृत्ति छपाववानी भावना आत्मधर्मना पहेला ज अंकमां जणावी हती,
अने ते भावना अनुसार समयसार छपावाना समाचार आ १०० मां अंके अपाय छे.
आ उपरांत भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवना पंचास्तिकाय परमागमनो गुजराती अनुवाद
करवानुं मंगलकार्य पण भाईश्री हिंमतलाल जेठालाल शाहे प्रारंभ करी दीधुं छे. आ रीते हवे
समयसार–प्रवचनसार–नियमसार अने पंचास्तिकाय ए चारे–‘कुंदकुंदप्रभुना रत्नचतुष्ट’ नो लाभ
गुजराती भाषामां मळशे.
*वैराग्य–प्रसंग
मागशर वद १३ ने बुधवारनी रात्रे अमरेलीना भाईश्री मूळजी भगवानजी खारा रंगुनमां
दमना दरदथी स्वर्गवास पाम्या छे; तेओ पू. गुरुदेवश्रीना भक्त अने तत्त्वाभ्यासना प्रेमी हता.
जगतमां हरहंमेश बनता आवा प्रसंगो उपरथी देहनी क्षणभंगुरता अने चिदानंदी चैतन्यनी नित्यता
लक्षमां लईने, जिज्ञासु जीवोए जीवनमां क्षणेक्षणे चैतन्यनी भावना अने देहादि प्रत्ये वैराग्य करवा
जेवुं छे.
*