छे तेना उपर पूज्य गुरुदेवश्रीनां
विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार
आत्मद्रव्य नामनये, नामवाळानी माफक, शब्दब्रह्मने स्पर्शनारुं छे. जेम नामवाळो पदार्थ तेना
साकर पदार्थ कहेवाय छे तेम ‘आत्मा’ एवा नामवडे आत्मपदार्थ कहेवाय छे. शब्दनो आत्मामां अभाव
छे, पण शब्दब्रह्म वडे कही शकाय–वाच्य थाय–एवो नामनयथी आत्मानो स्वभाव छे. आत्मा पोते शब्द
बोली शके छे–एवो आनो अर्थ नथी पण शब्दो बोलाय तेनाथी आत्मा वाच्य थाय एवो तेनो स्वभाव
छे, ते अपेक्षाए आत्मा शब्दब्रह्मने स्पर्शनारो छे. शब्दब्रह्म पोते तो जड छे, जीव पोते कांई शब्दब्रह्मनो
कर्ता नथी. जीव पोते शब्दब्रह्म वडे पोताने कहे छे–एम न समजवुं. शब्दब्रह्मनो कर्ता तो जड छे, पण
वाणीना शब्दद्वारा आत्मा वाच्य थाय छे, एटलो संबंध छे, तेथी आत्मा शब्दब्रह्मने स्पर्शे छे एम
नामनयथी कहेवामां आव्युं छे. आत्माने जाणे छे तो ज्ञान, कांई वाणीमां जाणवानुं सामर्थ्य नथी.
‘आत्मा’ एवो शब्द बोलातां आत्मा नामनो पदार्थ ज्ञानना लक्षमां आवे छे, माटे नामनये आत्मा ते
शब्दने स्पर्शे छे. ‘आत्मा’ एवो शब्द कहेवानी ताकात कांई आत्मामां नथी, शब्द कहेवानी ताकात तो
भाषावर्गणामां छे; ते वाणीथी वाच्य थाय एवो धर्म आत्मामां अनादिअनंत छे. सिद्धभगवानना
आत्मामां पण आ धर्म छे. सिद्धने पोताने वाणी नथी पण ‘सिद्ध’ ‘भगवान’ ‘परमात्मा’ एवा शब्दथी
ते कहेवाय छे; माटे नामनये सिद्धनो आत्मा पण शब्दब्रह्मने स्पर्शे छे.
वाच्य थाय एवा धर्मवाळो छे. आत्मामां वाणीनो अभाव छे, पण वाणीथी वाच्य थाय तेवा धर्मनो
अभाव नथी. ते धर्म तो आत्मानो पोतानो ज छे, कांई वाणीने लीधे ते धर्म नथी. ‘आत्मा’ एवो शब्द
छे माटे तेने लीधे आत्मानो वाणीथी वाच्य थवानो धर्म छे–एम नथी. वाणी अने आत्मा पृथक छे,
आत्माने पोताने वाणी नथी पण आत्मा वाणीथी वाच्य थाय छे. जो आत्मा शब्दब्रह्मने बिलकुल न
स्पर्शतो होय एटले के शब्दथी बिलकुल