वाच्य न थतो होय तो सर्वज्ञना दिव्यध्वनिनो उपदेश नकामो जाय! आत्मा सर्वथा वाणीथी अगोचर नथी, जे
जीव शब्द उपरथी आत्माने समजी जाय तेने कथंचित् वाणीगोचर कहेवाय छे. चैतन्यभगवान आत्मा ते
परमब्रह्म छे ने तेनी द्योतक वाणी ते शब्दब्रह्म छे. ते शब्दब्रह्मने आत्मा स्पर्शे छे एटले के ते शब्दब्रह्मथी
आत्मानुं वर्णन थाय छे.
चैतन्यमूर्ति, परमसुखी छे’–एटलुं पण वचनमां न आवी शके. आत्मा सर्वथा वचनातीत नथी. आत्मा शब्दने
जाणे छे, तेना वाच्यरूप पदार्थने पण जाणे छे, अने तेनुं जे ज्ञान थयुं ते ज्ञानने पण जाणे छे; ए रीते शब्द,
अर्थ अने ज्ञान ए त्रणेने आत्मा जाणे छे.
शब्दनुं परिणमन थतां असंख्य समय लागे छे, शब्दमां एक समयमां कहेवानी ताकात नथी, ‘आत्मा’ एटलुं
कहेतां असंख्य समय वीती जाय छे. वस्तुमां अनंतधर्मो एक साथे छे ने तेने एक समयमां जाणवानी ज्ञाननी
ताकात छे. दरेक आत्मामां एवी ज्ञानताकात भरेली छे; ते ज्ञानसामर्थ्यनो विश्वास करीने समजवा मांगे तो बधुं
समजाय तेम छे. ज्ञान सामर्थ्यनो अविश्वास करीने ‘मने नहि समजाय’ एम मानी ल्ये तो तेना ज्ञाननो
पुरुषार्थ कयांथी ऊछळे?
तेनाथी वाच्य थवानो धर्म छे–एम नथी अने आत्मानो धर्म छे माटे वाणी छे–एम पण नथी, आत्मा सर्वथा
अवक्तव्य नथी. ‘आत्मा अवक्तव्य छे’ एम कहेनारे पण आत्माना अवक्तव्य धर्मनुं तो कथन कर्युं के नहि?–
माटे आत्मा वक्तव्य सिद्ध थई गयो; छतां आत्माने सर्वथा अवक्तव्य कहे तो ते स्ववचनबाधित छे.
‘आत्मानो स्वभाव अवक्तव्य छे’ एम पोते कहेतो होवा छतां आत्माने सर्वथा अवक्तव्य माने तो ते, ‘मारा
मोढामां जीभ नथी’ एम कहेनारनी जेम जूठो छे. आत्मानो स्वभाव नामनये वाणीथी वक्तव्य छे अने
वाणीमां ते कहेवानो धर्म छे. कोई पण शब्द होय ते वाच्य वगरनो न होय. जो पदार्थमां वाच्य थवानो स्वभाव
न होय तो वाणी बतावे कोने?–वाणीए कह्युं शुं? ‘सत् प्ररूपणा’ होय छे एटले के जे सत् होय तेनुं ज
प्ररूपण–कथन होय. सर्वथा असत् होय तेनुं वाचक पण न होय. नाम छे तेनुं वाच्य पण छे, नाम सर्वथा
निरर्थक नथी. ‘भगवान’ एवो शब्द, ‘भगवान’ एवो पदार्थ अने ‘भगवान’ एवुं ज्ञान–ए त्रणे सत् छे;
‘भगवान’ एवो शब्द भगवान पदार्थने बतावे छे अने ज्ञान तेम जाणे छे. ए रीते शब्दसमय, अर्थ–समय ने
ज्ञानसमय ए त्रणे सत् छे.
रहेलो नथी. लक्ष्मीचंद अने पानाचंद एवा नामना बे माणसो बेठा होय, त्यां ‘लक्ष्मीचंद’ एम कहेतां
लक्ष्मीचंद नामनो माणस ज आवे छे, ‘लक्ष्मीचंद’ कहेतां पानाचंद आवतो नथी, केम के लक्ष्मीचंद एवा
नामथी ओळखाय तेवो धर्म लक्ष्मीचंदमां छे पण पानाचंदमां नथी. अने पानाचंद एवा शब्दथी पानाचंद
ओळखाय छे, एवो तेनो धर्म छे. तेम ‘आत्मा’ एवो शब्द कहेतां आत्मा चैतन्यमूर्ति वस्तु ख्यालमां आवे
छे, पण कांई ‘आत्मा’ शब्द कहेतां लाकडानो कटको ख्यालमां नथी आवतो.–ए रीते नामनयथी आत्मद्रव्य
शब्दब्रह्मने स्पर्शनारुं छे.