थई जाय, अंतरमां ऊथलपाथल थई
अंतरनी ज्योत जागे तेनी दशानी
अंतरपलटो थाय तेने कोईने पूछवा
मारतुं साक्षी आपे के अमे हवे प्रभुना
आवी चूकया छे, हवे टूंका काळे सिद्ध
नहि, फेर पडे नहि.
Atmadharma magazine - Ank 101
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).
PDF/HTML Page 2 of 25