Atmadharma magazine - Ank 101
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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परमात्मानुं प्रतिबिंब
भगवाननी परम शांत वीतरागी प्रतिमा पासे समकीति एकावतारी ईंद्र–ईंद्राणी पण भक्तिथी
नाची ऊठे छे. नंदीश्वर नामना आठमा द्वीपमां रत्नना शाश्वत जिनबिंबो छे, त्यां कारतक, फागण अने
अषाड महिनामां सुद ८ थी १प सुधी देवो भक्ति करवा जाय छे. जेम आत्मामां परमात्मपणानी शक्ति
सदाय छे अने ते शक्ति प्रगटेला सर्वज्ञ परमात्मा पण जगतमां सदाय एक पछी एक थया ज करे छे एटले
परमात्मदशाने पामेला आत्माओ अनादिथी छे, तेम ते परमात्मपणाना प्रतिबिंब तरीके जिनप्रतिमा पण
अनादिथी शाश्वत छे. तेमनी पासे जईने ईंद्र–ईंद्राणी जेवा एकावतारी जीवो पण भक्तिथी थनगन करतां
नाची ऊठे छे.
–ते वखते अंदर तेमने भान छे के आ मूर्तिनुं अस्तित्व तेना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावमां छे, शरीरनी
ऊंचु–नीचुं थवानी क्रियानुं अस्तित्व तेना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावमां छे, मूर्तिमां के देहनी क्रियामां मारुं
अस्तित्व नथी, मारुं अस्तित्व मारा द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावमां छे. आवा सम्यक् भानमां स्वाश्रये पोतानो
स्वकाळ अंशे तो निर्मळ थयो छे ने अल्पकाळमां द्रव्यनी परमात्मशक्तिनो पूरो आश्रय करतां पूर्ण निर्मळ
स्वकाळ प्रगटी जशे, एटले पोते परमानंदमय परमात्मा थई जशे.
–पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनमांथी.
आत्माने राजी करवानी धगश
अज्ञानी जीवोनी बाह्य द्रष्टि होवाथी ते एम माने छे के हुं परनो आश्रय लउं तो धर्म थाय; पण
ज्ञानी कहे छे के हे भाई! ते बधानो आश्रय छोडीने तुं अंतरमां तारा आत्मानी श्रद्धा कर, आत्माने
प्रगटाववानो आधार अंतरमां छे. आत्मानी पवित्रता अने आत्मानो आनंद ते आत्मामांथी ज प्रगटे छे,
बहारथी कोई काळे पण प्रगटतो नथी.
जीवोने आ वात मोंघी पडे छे एटले बीजो रस्तो लेवाथी जाणे धर्म थई जशे! एम तेमने ऊंधुंं शल्य
पेठुं छे. पण भाई! अनंत वरस सुधी तुं बहारमां जोया कर तोपण आत्मधर्म न प्रगटे. माटे परनो आश्रय
छोडीने स्वतत्त्वनी रुचि करवी–प्रेम करवो.....मनन करवुं ते ज सत् स्वभावने प्रगटाववानो उपाय छे. माटे
जे पोतानुं हित चाहे ते आवुं करो–एम आचार्यदेव कहे छे.
जेने पोतानुं हित करवुं होय तेने आवी गरज थशे. जेने गरज नथी तेनी तो वात ज नथी; कारण के
जगतना जीवोए दुनिया राजी केम थाय अने दुनियाने गमतुं केम थाय–एवुं तो अनंतवार कर्युं छे पण हुं
आत्मा वास्तविक रीते राजी थाउं ने मारा आत्माने खरेखर गमतुं शुं छे–एनो कोई वार विचार पण नथी कर्यो,
एनी कोई वार दरकार पण करी नथी. जेने आत्माने खरेखर राजी करवानी धगश जागी ते आत्माने राजी कर्ये
ज छूटको करशे अने तेने राजी एटले आनंदधाममां पहोंच्ये ज छूटको छे. अहीं जगतना जीवोने राजी करवानी
वात नथी पण जे पोतानुं हित चाहतो होय तेणे शुं करवुं तेनी वात छे. पोते स्वभाव ज्ञान–आनंदथी भरेलो छे
तेनी श्रद्धा करे तो तेमांथी कल्याण थाय, ते सिवाय बीजेथी कल्याण त्रण काळ त्रणलोकमां थाय ज नहि.
–समयसार–बंधअधिकारना प्रवचनोमांथी.
आत्मज्ञानने ईंद्रियो के रागनुं आलंबन नथी.
आत्मा जाणकस्वभावी तत्त्व छे; जाणवानो तेनो स्वभाव ज छे; तेनुं ज्ञान कोई परना आश्रये थतुं
नथी, ईंद्रियो के रागना अवलंबनथी पण ते जाणतुं नथी पण पोताना ज्ञानस्वभावना अवलंबने ज ते जाणे
छे. ते प्रत्यक्षज्ञान छे. ते स्वसन्मुखी ज्ञान ‘रागना अवलंबने हुं जाणुं छुं’ एम पण जाणतुं नथी तो पछी
ईंद्रियो वगेरे परथी ज्ञान थाय एम तो ते माने ज शेनुं? जे ज्ञान रागथी पण पोतानी पृथकता जाणे छे ते ज्ञान
परथी तो पोतानी पृथकता जाणे ज, एटले हुं आंख वगेरे ईंद्रियोथी जाणुं छुं–एम ते माने नहि. ईंद्रियोथी मने
ज्ञान थाय छे एम जे माने तेणे तो परथी–अजीवथी पण ज्ञानने जुदुं नथी जाण्युं. तो पछी रागथी पण ज्ञानथी
पृथकता जाणीने तेनुं ज्ञान अंर्तस्वभावमां क्यांथी वळे? अंर्तस्वभाव तरफ वळेलुं स्वसन्मुखी ज्ञान तो
ईंद्रियो अने रागना अवलंबन वगरनुं छे; ईंद्रियो अने रागथी जुदुं पडीने अंतरमां वळ्‌या विना ज्ञान आत्माने
जाणी शके नहीं ने आत्माना ज्ञान विना कदी धर्म के मुक्ति सुख के शांति थाय नहि.
२४७६ अषाड सुद १० श्री समयसार गा. ६ उपरना प्रवचनमांथी