Atmadharma magazine - Ank 102
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः १२४ः आत्मधर्मः १०२
मुनिपद नथी, मुनिपद तो संवर–निर्जरारूप दशा छे अने ते दशा चैतन्यस्वभावना आश्रयथी ज प्रगटे छे. तेने
ज अहीं आचार्यदेवे निर्वाणनी भक्ति कही छे ने एवी भक्तिथी ज मुक्ति थाय छे.
अहो! नियमसारमां तो संतोए अमृतना दरियाने ऊछाळ्‌यो छे.
शुद्धरत्नत्रयनी भक्ति करनारा ते परम श्रावकोने तेमज परम तपोधनोने जिनवरोए कहेली
निर्वाणभक्ति एटले के अपुनर्भवरूपी स्त्रीनी सेवा वर्ते छे; अपुनर्भव एटले मोक्ष तेनी आराधना तेमने वर्ते
छे. आवुं तत्त्व समज्या विना ‘बहारमां छोडो छोडो’ एम करे तेथी कांई श्रावकपणुं के मुनिपणुं आवी जाय
नहि. आत्मामां अंतर्मुख थईने जे शुद्धरत्नत्रयनी आराधना करे तेने ज श्रावकपणुं अने मुनिपणुं होय छे, तथा
ते ज मोक्षनी खरी क्रिया छे. शरीरनी क्रिया तो जडनी छे अने रागनी क्रिया ते आस्रव छे, आत्मस्वभावना
आश्रये पर्याय पलटीने वीतरागी पर्याय प्रगटी जाय ते धर्मक्रिया छे. श्रमणो तेम ज श्रावको आवी क्रिया करे छे;
वच्चे राग होय तेने धर्मनी क्रिया मानता नथी, तेम ज बाह्यमां देहादिनी क्रियाने तेओ पोतानी मानता नथी.
अत्यारे महाविदेहक्षेत्रमां सीमंधरभगवान वगेरे वीस तीर्थंकरो विचरे छे, तेमज केवळीभगवंतोना
टोळेटोळां त्यां बिराजे छे, त्यां तीर्थंकरोनो अने केवळीभगवंतोनो कदी विरह नथी; आत्माना असंख्य प्रदेशे
तेमने अनंत चैतन्य दीवडा प्रगटी गया छे, एवा अनंत अनंत जिनेश्वरोए आवी शुद्ध रत्नत्रयनी भक्ति
करनारा श्रमणो तथा श्रावकोने निर्वाण–भक्ति कही छे. स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान–स्थिरतारूप शुद्ध रत्नत्रयनी
आराधना ते ज मुक्तिनी भक्ति छे एटले तेना वडे ज मुक्ति थाय छे एम जिनदेवो कहे छे. आवा शुद्ध
रत्नत्रयनी भक्ति करनारा श्रमणो तेमज श्रावको खरेखर भक्त छे....भक्त छे.
अहो! चिदात्माना भक्त ते श्रमणो अने श्रावको–नो जय हो.........तेमने भक्तिथी वंदन हो.
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मोरबीमां श्री जिनमंदिरनुं खातमुहूर्त
परम पूज्य गुरुदेवश्रीना प्रतापे सौराष्ट्रमां सत् देव–गुरु–धर्मनी प्रभावना दिन–प्रतिदिन खूब वधती
जाय छे अने ठेरठेर जिनमंदिर थवा लाग्या छे. फागण वद बीज ने गुरुवारना मंगल दिने मोरबी शहेरमां श्री
जिनमंदिरनुं खातमुहूर्त थयुं हतुं. खातमुहूर्तनो विधि कराववा माटे सोनगढथी ब्र. भाईश्री गुलाबचंदजी आव्या
हता.
सवारमां गाजते–वाजते प्रभातफेरी नीकळी हती अने पछी पूजनादि विधि बाद सेंकडो मुमुक्षुओना
घणा उल्लास वच्चे शेठ श्री मोहनलाल वाघजीभाई तथा तेमना धर्मपत्नी वृजकुंवरबेने जिनमंदिरनुं खात–
मुहूर्त कर्युं हतुं. आवुं मंगलकार्य करवानुं सौभाग्य पोताने मळ्‌युं ते बदल शेठ मोहनलालभाईए पोतानो
आनंद व्यक्त कर्यो हतो अने आजनी प्रभावना तथा स्वामीवात्सल्यनुं खर्च, तेमज जिनमंदिरना समस्त
प्रतिमाजीओनुं खर्च तेमणे पोताना तरफथी आपवानुं जाहेर कर्युं हतुं. आ उपरांत मोरबीना प्रसिद्ध
कार्यकर्ता डो. जयंतीलाल नरभेराम पारेखे पण आ प्रसंगमां उल्लासपूर्वक भाग लीधो हतो अने आ प्रसंगे
मंगल तरीके रू. १००१ पोताना तरफथी श्री जिनमंदिर–फंडमां आप्या हता. खातमुहूर्त बाद शेठ श्री
मोहनलालभाई तथा रतिलालभाई वगेरेए पोतानो उल्लास व्यक्त करतां जणाव्युं हतुं के ‘मोरबीना
आंगणे भगवान पधारे ते आपणुं अहोभाग्य छे! भगवान अने भगवानना जिन मंदिरने माटे जेटला
तन–मन–धन खरचाय ते सफळ छे.’
मोरबीमां आ मंगळ कार्यनी शरूआत करवा माटे त्यांनां मुमुक्षुओने धन्यवाद!
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सूचना
श्री जैन अतिथि सेवा समिति तेम ज श्री. जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट–सोनगढ संबंधी कांई पण वस्तुनुं
रेलवे पारसल, टपाल के बेंकना चेक वगेरे संस्थाना नामथी न मोकलतां ‘शांतिलाल पोपटलाल शाह ठे. जैन
स्वाध्याय मंदिर सोनगढ’ एवा नामथी मोकलवा. सरकारी कामोमां अरज–हेवाल वगेरेमां सगवडता रहे.